वक्त भी सास नंदों के यातनाओं पर धूल नहीं डाल पाता  – सुल्ताना खातून

मेरा नौवां महीना चल रहा होता था, तब भी इतना बड़ा पेट लेकर अकेले मैं पूरे परिवार के लिए खाना बनाती थी, मेरी नंद तो एक काम में भी हाथ नहीं बटाती थी, और तो और इंतजार करती खाना पकने का बस खाना पकते ही खाने पहुंच जाती,ये आजकल कि बहुएं हैं जिन्हे डॉक्टर बेड रेस्ट बोल देता है, हमसे तो ये सब चोचले नहीं होते थे। आज सहाना मायके आई थी, भाई बहनों में वह बड़ी थी, उससे छोटे भाई की शादी साल भर पहले ही हुई थी अब भाभी उम्मीद से थी, थोड़ी कमज़ोर थी तो डॉक्टर ने उसे एहतियात से रहने को बोल दिया था, सहाना अच्छे मिजाज़ की थी, जब भी आती,आते ही किचन का मोर्चा संभाल लेती, यह काम तो वह भाभी के आने से पहले भी किया करती, क्योंकि घर में मां को काम करते देखना उसे अच्छा नहीं लगता, तब तो अम्मा को तकलीफ़ ना होती, पर भाभी के आने के बाद यही बात अम्मा को अखर जाती, घर में बहू के होते व्याहता बेटी काम करे अम्मा ताने कसने शुरू कर देतीं। और आज अम्मा जैसे शुरू हुईं बहू ने धड़ाम से दरवाजा जाकर अंदर से बंद कर लिया, सहाना ने सब देखा पहले तो ऐसा नहीं होता था, अम्मा के शुरू होते ही बहु किचन से सहाना को निकाल दिया करती थी,

कहती– “आपा आप जाएं नहीं तो अम्मा की जली कटी बातें मुझे सुनने को मिलेंगी अम्मा बात बात पर खुद पर गुजरी बातें सुनाकर मेरा जीना मुहाल कर देंगी।” पर आज तो बहू ने बर्दास्त नहीं किया अम्मा के मुंह पर दरवाजा बंद क्या हुआ अम्मा ने वाबेला मचा दिया, अरे मेरी सास नंदों ने कितनी तकलीफ़ दी मुझे, एक ये आज की बहुएं हैं, जरा सी बात बर्दास्त नहीं होती, पर आज तो अम्मा की बातों को भाई ने भी हवा में उड़ दिया। खैर बात आई गई हो गई पर सहाना को ये सब अच्छा नहीं लगा रात को जब अम्मा फिर बहु की बुराइयां लेकर बैठ गईं तो सहाना ने कहा– देखो अम्मा जो ये तुम अपने पर बीती यातनाओं का राग अलापती हो, इसे मैंने भी देखा है, कैसे आप पर दादी और बुआ जुल्म किया करती थीं, और आप चुप चाप बर्दास्त किया करती थीं



तब अब्बा भी आपका साथ नहीं दिया करते थे,पर ये जमाना दूसरा है अब खुद पर कोई जुल्म बर्दास्त नहीं करता, आप भले ही खुद पर बीती बड़े से बड़ा दुख भूल गईं पर सास नंदों की दी यातनाओं पर #वक्त भी धूल नहीं डाल पाया, वही न भूलने वाला दुःख आप भाभी को भी देना चाहती हैं, वह उम्मीद से है, भाई भाभी को कितनी उम्मीदें होंगी अगर डॉक्टर ने एहतियात को कहा है, तो ऐसे ही तो नहीं कहा होगा, जरा सी गलती बड़ा नुकसान दे सकती है, आप अपने लिए नहीं लड़ी, भाभी अपने लिए लड़ सकती है, क्योंकि वह अपना अच्छा बुरा समझती है, आपको उसका साथ देना चाहिए, मैं तो पहले भी काम किया करती थी तब तो आपको बुरा नहीं लगता था।

आप हालात को समझिए थोड़ा उसका साथ दीजिए, आप भी छोटे मोटे कामों में हाथ बटा दिया कीजिए, और छोटी को भी काम के लिए कहिए, वरना बेटा बहु की नजरों में अपनी कदर खो देंगी। और वैसे भी भाभी इतनी अच्छी है, पहले तो वह खुद ही मुझे काम नहीं करने देती थी, कुछ एक साल हम सभी उसका ख्याल नहीं कर सकते क्या? अम्मा को सोच में डूबे देख सहाना कमरे से निकल गई, उसे नहीं पता था अम्मा को बातें समझ आई की नहीं पर सुबह माहौल थोड़ा शांत लगा किचन में सभी मिलकर काम कर रहे थे, अम्मा बड़ा सा मुंह फुलाकर बैठी थीं– भाभी छोटी के कान में फुसफुसा रही थी–शुक्र है अम्मा का बस मुंह ही फुला है, जबान से अंगारे नहीं बरस रहे, उनकी बातें सुनकर सहाना मुस्कुरा दी।

#वक्त

मौलिक एवं स्वरचित

सुल्ताना खातून

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