“विरोध नहीं सही का आगाज़” ऋतु अग्रवाल

      “सम्यक! तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है। तू अपनी बड़ी बहन का विरोध कर रहा है। उस बहन का जो तुझे जान से भी प्यारी थी और वह बहन जो तेरे लिए कुछ भी कर गुजरे। आज तुझे अपनी बीवी इतनी प्यारी हो गई कि तू उसके लिए अपनी सगी बहन के खिलाफ बोल रहा है।” रीमा जी गुस्से में लगातार बोले जा रही थी।

       “प्रिया! जाओ, पहले मम्मी के लिए एक गिलास पानी लेकर आओ।” सम्यक ने प्रिया को इशारे से किचन में भेज दिया।

      “मुझे नहीं पीना पानी।” रीमा जी ने मुँह फेर लिया।

     इतने में प्रिया पानी का गिलास ले आई। सम्यक ने पानी का गिलास रीमा जी को थमा दिया और प्रिया को कमरे से बाहर भेज दिया।

       “मम्मी! मैं दीदी के खिलाफ नहीं बोल रहा हूँ। आप जानती हो कि मैं अपनी दोनों ही बहनों से बहुत प्यार करता हूँ पर मम्मी, यह बात आप मुझसे भी ज्यादा अच्छी तरह जानती हो कि आप वही गलती दोहरा रही हो जो कभी दादी ने की थी पर आप मानना नहीं चाहती। मम्मी, अब प्रिया भी हमारे घर का हिस्सा है। मैं यह तो नहीं कह रहा कि स्वरा की शादी में आप दीदी को महत्व मत दो बल्कि मैं तो आपको यह समझा रहा हूँ कि दीदी, स्वरा और प्रिया को समान महत्व दो। कोई भी कार्य आप चारों एक दूसरे की सहमति लेकर करो ताकि प्रिया को इस परिवार में रचने बसने और हम सबको अपना लेने में आसानी रहे।” सम्यक रीमा जी को समझा रहा था।



        “हाँ!हाँ! मुझे तो कुछ समझ ही नहीं है। अब तू ही मुझे समझाएगा। कल की आई लड़की को मैं अपनी बेटी की शादी की बागडोर थमा दूँ। तुझे पता भी है कि स्वरा और माधुरी की पसंद कितनी मिलती है। ना जाने प्रिया की पसंद से मैच हो ना हो। मैं नहीं चाहती कि उनमें आपस में कोई दरार पड़े या वाद-विवाद हो।” रीमा जी के मुँह से उनके मन की बात निकल गई।

      “मम्मी! मैं भी तो आपको यही समझाना चाह रहा हूँ कि उन्हें एक दूसरे से दूर दूर रखने से उनमें आपसी दूरी बढ़ेगी। आप खुद ही तो बताती हो कि दादी माँ ने कभी भी आपको परिवार का हिस्सा नहीं समझा। कभी भी परिवार के मसलों में आपको शामिल नहीं किया। हर बात पर सिर्फ बुआ जी की राय ली जाती थी। धीरे-धीरे इसी बात ने आपके और बुआ जी के रिश्ते खराब कर दिए। आज भी जब बुआ जी मायके आती हैं तो आप उन्हें मन से स्वीकार नहीं कर पाती हो। मैं नहीं चाहता कि यही दूरी मेरी बहनों और प्रिया के बीच भी 

जीवनपर्यंत बनी रहे। मम्मी!मेरी दोनों बहनें, आप और प्रिया सब समझदार हो। एक दूसरे के साथ समय बिताओगे तो एक दूसरे को ठीक से समझ भी पाओगे। एक दूसरे का विरोध करोगे तो एक दूसरे को सराहोगे भी। तभी तो एक दूसरे को सही गलत समझा पाओगे।” सम्यक अपनी बात कहता रहा।

     वर्षों पहले मन में जो काँटा गड़ा था,वह अपने बेटे की बात सुनकर रीमा जी के मन से निकल गया।

       “प्रिया! स्वरा! माधुरी! यहाँ आओ! कल सुबह सब जल्दी तैयार हो जाना। शादी की खरीदारी हम सब मिलकर करेंगे और दिन का खाना भी बाहर ही खाएँगे।” रीमा जी की बात सुनकर सब बच्चे मुस्कुरा दिए।

      “रीमा! जो बात मैं अपनी माँ को नहीं समझा पाया, वह बात तुम्हारा विरोध करके सम्यक ने सही रीति का आगाज कर दिया।” सम्यक के पापा उमंग ने सम्यक के सिर पर अपना हाथ रख दिया। 

 

मौलिक सृजन 

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!