वसीयत ( अंतिम भाग ) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

अभी तक आपने पढ़ा कि विमल जी अपने बच्चों को अपनी वसीहत में किये गए फैसले सुनाते हैं… हर फैसले पर बेटों , बहुओं को कुछ ना कुछ आपत्ति होती हैं… जैसे ही घर के जेवरों की बात चलती हैं तो दोनों बहुएं रानी और काजल बिल्लियों की तरह लड़ने लगती हैं… तभी बड़ा बेटा नितिन चिल्लाते हुए कहता हैं… चुप करो तुम दोनों , अगर एक दिन भी शब्द अब आगे कहा तो….

अब आगे….

अगर अब एक भी शब्द आगे कहा हैं तो जो भी घर की सोने की चीजें तुम्हे मिली हैं.. उसे वापस माँ के पास आने में समय नहीं लगेगा…

दोनों बहुएं नितिन की तेज आवाज से डर ज़ाती हैं… घुंघट लम्बा कर पीछे की ओर खिसक ज़ाती हैं… पापा अब जो भी जेवर माँ के पास हैं उसे उन्ही के पास रहने दिजिये… मुझे नहीं पता था कि ये दोनों पहले ही माँ से सब ले चुकी हैं… नितिन सरल भाव में बोला…

हां पापा मुझे भी नहीं पता था…. माँ चाहे तो राखी दीदी को दे सकती हैं…. क्युंकि उनकी शादी तंगी हालत में हुई थी ,, तब हम उन्हे कुछ नहीं दे पायें थे … मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं…. छोटा बेटा अनुज बोला…

हां पापा,, मुझे भी कोई समस्या नहीं हैं…. नितिन बोला…

पर हमें तो हैं…. दोनों बहुएं तपाक से बोल पड़ी…. हमारे आगे भी बेटी हैं… उसे क्या देंगे…

अगर तुम्हे आपत्ति हैं तो अपने अपने घर का रास्ता नाप सकती हो… अपनी बेटियों के लिए उनका बाप हैं ,, तुम लोगों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं… नितिन बोला…

तू कैसे बात कर रहा हैं बहुओं से… यहीं सिखाया हैं हमने तुझे…अब दुबारा कभी हमारी बहुओं से इस लहजे से बात कि तो समझ लेना … विमल जी कंपकपाती आवाज में बोले…

भईया…. मुझे कुछ नहीं चाहिए…. आप सबके आशीर्वाद से मेरे ससुराल में मुझे किसी चीज की कमी नहीं…. बस आप लोग अच्छे से रहो… राखी बोली….

तो मैं अब तुम लोगों का ज्यादा समय नहीं लूँगा.. रही बात दुकानों की तो वो मैने अपनी पोतियों और नातिन के नाम की हैं… जब उनकी पढ़ाई य़ा ब्याह य़ा किसी भी आड़े समय में ज़रूरत हो तो तुम लोग बिना संकोच के खर्च कर सकों.. ये ना सोचना कि ये तो लड़की हैं… इन्हे नहीं पढ़ाना ज्यादा … समझे … इतना बोलते बोलते विमल जी की खांसी उखड़ने लगी…सांसे तेज होने लगी…. फिर भी वो बोलते रहे.. इस घर का सामान मेरे और सुशीला के बाद तुम लोग आपसी समझ से बांट सकते हो….

पर अब उन पर बोला नहीं जा रहा था … वो जमीन पर गिरने ही वाले थे कि नितिन ने दोनों हाथों का सहारा दे विमल जी को कांधे पर ले लिया… छोटे गाड़ी की चाभी ला … तुरंत गाड़ी में सहारा दे बैठाया .. तुम दोनों (काजल और रानी) बाकी पापा की ज़रूरी सामान और दवाई लेकर बैठो… माँ तुम बच्चों के पास रहो…

क्यूँ परेशान हो रहा हैं तू …. अब समय नहीं हैं मेरे पास … वो डॉक्टर मुझे मशीन पर डालकर लाखों रूपये बना देंगे… विमल जी लम्बी लम्बी सांस लेते हुए बोलते रहे…

अब आप चुप रहो पापा…. इतनी सस्ती जान नहीं आपकी पापा… अनुज बोला…

जल्दी से सब अस्पताल पहुँचे …. डॉक्टर ने वेंटिलेटर पर लिया…

.बचने की उम्मीद बहुत कम थी …. पर सभी बच्चों की और सुशीला जी की दुआओं से विमल जी ठीक हो गए… कुछ दिन उन्हे आराम करने की ही सलाह दी गयी… दोनों बेटे उन्हे गोद में उठाकर निवृत्त कराते , नहलाते …. यह सब देख विमल जी और सुशीला जी की आँखों से आंसू स्वतह ही निकल आते …

अब मैं ठीक हूँ… तुम लोगों को आयें एक सप्ताह हो गया … अब अपनी अपनी नौकरी पर जाओ…. कमाओ , खाओ … नहीं तो कहीं तुम्हारा मालिक गुस्सा ना हो जायें …

अभी आपकी हालत बिल्कुल ठीक नहीं हैं… आप और माँ मेरे साथ चल रहे हो…नितिन बोला… रानी भी बोली… हां पापा जी,,, बच्चे भी अपने दादी दादू के साथ बहुत खुश रहेंगे ….

मैं भी पास में ही हूँ… वीकेंड पर आ जाया करेंगे … अनुज बोला…

हां ये सही हैं छोटे…

तो पापा अब मैं चलती हूँ… आपके बहू बेटे आपकी सेवा बहुत अच्छे से कर रहे हैं…. जब ज़रूरत हो बता दिजियेगा… राखी डबडबायी आँखों से बोली…

नितिन ने राखी के सर पर हाथ फेर दिया … दीदी आप इतनी बड़ी हो फिर भी छोटे बच्चों की तरह रोती हो….

बच्चों का आपसी प्रेम देख विमल जी की उम्र खुद ब खुद बढ़ गयी…. अब वो दुनिया से निश्चिंत होकर जा सकते थे …. सुशीला जी से बोले… हमारी घर की गठरी मजबूती से बंधी हैं… इसे कोई नहीं खोल सकता…

विमल जी को वसीहत सुनाये दस साल हो गए हैं… वो पहले से भी ज्यादा हट्टे कट्टे हो गए हैं….

सच में पाठकों ये बच्चें ही होते हैं जो माँ बाप की उम्र को घटा य़ा बढ़ा सकते हैं…. ना कोई लेकर आया हैं ना कोई लेकर जायेगा … यहां कमाया य़हीं रह जायेगा…. तो काहे की चिंता करता हैं रे इंसान …रिश्तों को सहेजकर रखो…. मुट्ठी बंद हैं तो कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता… अकेले इंसान को बाहर के कौवें भी नहीं छोड़ते … कड़वा है मगर सच हैं….

कहानी कैसी लगी … अच्छी य़ा बुरी प्रतिक्रिया ज़रूर दिजियेगा….

समाप्त

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

वसीयत भाग 1  – मीनाक्षी सिंह 

वसीयत ( भाग – 2 )

वसीयत ( भाग – 3)

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