वसीयत ( भाग – 3 ) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अभी तक आपने पढ़ा कि विमल जी को एहसास हो रहा था कि वो अब इस दुनिया में ज्यादा दिन के मेहमान नहीं हैं.. यह देख उन्होने अपने दोनों बेटे नितिन, अनुज और बेटी राखी को अपनी वसीहत सुनाने के लिए बुलवा लिया…. सभी निर्धारित समय पर आ गए … विमल जी ने सभी परिवारजनों को आंगन में एक जगह बैठने को कहा …

अब आगे….

विमल जी अपनी पुरानी लकड़ी की कुरसी पर अपना डंडा संभालते हुए बैठे … उन्होने एक लम्बी सांस ली… बोले… पता हैं बच्चों तुम लोग जब छोटे छोटे थे तब तुम्हारी माँ की नौकरी का पत्र आया था… ख़ुशी के मारे तुम्हारी माँ फूली नहीं समा रही थी … पर अगले ही पल जैसे ही उसने दूध मुंहे अनुज की तरफ देखा ,, उसे उठा सीने से लगा लिया … उस पत्र को बक्से में डाल दिया… तुम तीनों की परवरिश में हम दोनों ने बहुत ही आर्थिक तंगी का सामना किया…मेरी छोटी सी क्लर्क की नौकरी में पूरी कोशिश करी कि तुम लोगों को किसी चीज की कमी ना हो… इसके लिए कितनी बार सुशीला ने अपने जेवर गिरवी रखे… किसी रिश्तेदारी में ब्याह होता तो बहाना लगा देती कि तबियत खराब हैं… नहीं तो बेचारी का सबके बीच मजाक बनता…. ज़ाती भी तो सबकी नजरों से बचने की कोशिश करती…

हाथ पर मुंह रखकर जम्हाई लेते हुए नितिन बोला…. पापा इसमें क्या नयी बात हैं ऐसा सभी माँ बाप करते हैं अपने बच्चों के लिए…. हम नहीं कर रहे अपने बच्चों के लिए… पैदा किया हैं तो पालना भी तो हमें ही हैं…

हां पापा….भईया सही तो कह रहे हैं… क्यूँ सबका टाइम वेस्ट कर रहे हैं… आपकी भी तबियत ठीक नहीं हैं… अपनी ज़रूरी बात करिये… फिर सभी लोग सोये .. सफर की थकान भी हैं हम सबको… अनुज थोड़ा रोष में बोला…

क्या बोला तू टाइम वेस्ट.. जब तुझे कोख में नौ महीने रखा … तब मेरा भी टाइम वेस्ट हुआ था … जब तुम बिमार पड़ते थे ,, तेरे पापा ऑफिस से आंधी , तूफान में अपने ऑफिस में छुट्टी चढ़ाकर अपनी सायकिल से हांफते हुए आते थे.. पूरी पूरी रात तुझे गोद में लेकर घुमाते थे … तेरा कोलेज में एडमिशन करवाने तेरे साथ दिल्ली गए … वहां चार दिन रहकर तेरे रहने सहने की व्यवस्था करके आयें थे … जब नितिन का अपने दोस्त के गलत काम में नाम आ गया था तो कैसे अपने बेटे को निर्दोष साबित करने के लिए दिन रात एक कर दिये थे तुम्हारे पापा ने … एक दिन ऐसा नहीं जाता था जब ये चैंन से सो पायें हो… तब हमारा भी टाइम ही वेस्ट हुआ था ना अनुज… आज सुशीला जी जीवन में पहली बार अपने बेटे से उसके विरोध में ऊँची आवाज में बोली थी …

दूसरी तरफ राखी और विमल जी की आँखों में आंसू तैर आयें थे…

भईया माँ सही रो कह रही हैं … पापा अपने मन का कुछ कहना चाहते हैं तो सुन लिजिये ना … ये हमारे माँ बाप जब हमसे बहुत दूर चले ज़ायेंगे तो इनकी आवाज को भी तरसेंगे हम कि कहीं से पापा आवाज लगा दे….

क्या ये ईमोशनल ड्रामा लगा रखा हैं दीदी आपने… बी प्रैक्टिकल… जो दुनिया में आया हैं उसे तो जाना ही हैं… ये सब तो नोर्मल बातें हैं जो माँ पापा ने की हैं… नितिन बोला….

तो ठीक हैं मैं अपनी बात पर आता हूँ बेटा… तुम लोगों का टाइम वेस्ट नहीं करूँगा …. तो मेरा पहला फैसला मेरे इस घर को लेकर हैं… 

विमल जी बोले… बच्चों मैने ये घर अपने पोतों के नाम किया हैं क्युंकि इस घर से मेरी और सुशीला की बहुत यादें जुड़ी हैं… मैं नहीं चाहता कि मेरे दुनिया से ज़ाते ही तुम लोग इस घर को बेचकर अपनी नौकरी वाली जगह पर बस जाओ … इसी बहाने तुम लोग, मेरे न्नहे मुन्ने इस घर में आते ज़ाते तो रहेंगे …. वैसे भी अच्छी विकसित कोलोनी में हैं हमारा घर … जमीन की कीमत बढ़ेगी ही, घटेगी नहीं…. मेरे पोतों को भी ये घर उनके 18 साल का होने पर ही मिलेगा…. जब तक सुशीला हैं वो रहेगी… फिर तुम लोग इसकी देखभाल कर सकते हो….

ये क्या पापा… इतने सालों में तो ये घर खण्डहर हो जायेगा…. और हम तो बेचेंगे ही इस घर को,,, जब हमें रहना ही नहीं हैं… नितिन बोला…

तो तूने पहले ही सोच लिया कि तू इसे बेचेगा …जब मैं इतने सालों तक इसे वैसे का वैसा ही संभाले रहा…तो क्या तुम लोग अपनी जेब से हर साल कुछ पैसा खर्चकर इस घर की मरम्मत, रंगाई ,पुताई नहीं करा सकते…ये बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं बेटा… मुझे पता हैं तुम लोगों की एशो आराम की ज़िन्दगी अंत समय में तुम्हारी जेब में एक पैसा नहीं रहने देगी… ये घर मेरे पोतों के लिए सोने की मुर्गी साबित होगा… फिर विमल जी आगे बोले… मेरी ज़ितनी आर.डी , एफ . डी हैं वो मैं सुशीला को दे रहा हूँ… अगर वो बिमार पड़े तो उसका अच्छे से अच्छा ईलाज हो सके… अगर इन पैसों की ज़रूरत ना पड़ी तो सुशीला इन्हे राखी , और तुम्हारे बच्चों के नाम कर सकती हैं… गांव का बाऊ जी के आशिर्वाद के रुप में मिलें चार कमरें और खेत मेरे जाने के बाद तुम लोगों के हो ही ज़ायेंगे पर तुम उसे बेचोगे नहीं इसका तुम्हे हलफनामा देना होगा… ये धरोहर हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों तक बनी रहे… यहीं चाहता हूँ…

हर बात पर आप शर्त क्यूँ रख रहे हैं… हमारे नाम हो गयी कोई चीज तो उसका हम कुछ भी करें… अनुज झल्लाता हुआ बोला…

तुझे मंजूर हो मेरा फैसला तो ठीक हैं नहीं तो मेरे पास और भी लोग हैं ज़िन्हे मैं दे सकता हूँ ये सब,, ज़िन्हे ज़रूरत हैं.. विमल जी रोष में बोले..

रहने दे छोटे… वो सब देखते रहेंगे… पापा बाकी इस घर का सामान , सोने चांदी के ज़ेवर और वो चौराहे वाली दो दुकानों का तो आपने बताया नहीं.. नितिन बोला..

जेवर की बात सुन दोनों बहुएं विमल जी के और नजदीक खिसक आयी…

कैसा जेवर … बहुओं की ज़रूरत का सब ज़रूरी जेवर तो उन्होने हर शादी ब्याह में,, ज़रूरी मौकों पर सुशीला से पहले ही निकलवा लिया…

वो पापा जी…. अभी तो हमने कुछ भी नहीं लिया… अभी तो बहुत सी चीजें मम्मी के पास ही हैं… छोटी बहू काजल तपाक से बोल पड़ी…

तू भूल गयी वो दिन जब सुशीला के कान के झुमके टूट गए थे ,, उसे रज्जो दीदी के बेटे के ब्याह में जाना था .. उसने तुझसे कितना कहा कि बहू जो झुमके तुझे दिये थे वो दे दे पहनने को … पर तू बहाने बनाती रही कि वो तो मेरे मायके में रखे हैं लाकर में .. बेचारी सुशीला कुछ ना कह पायी ,, चुपचाप आंसू बहाते हुए नकली झुमके साड़ी से ढककर पहनकर चली गयी … पूरी शादी में सबसे नजरें चुराती रही कि कहीं कोई पहचान ना ले… तुम्हारे ससुर की बनवायी हुई चीजों पर उसकी पत्नी हक नहीं दिखा सकती फिर तो मैं दुनिया का सबसे असहाय पति हुआ जो अपनी पत्नी की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता…

तो पापा जी मम्मीजी क्या ही इस उम्र में वो मांग टीका, झुमके, जेवर पहनी अच्छी लगेंगी… ये तो बहुओं पर ही शोभा देते हैं…

बड़ी बहू रानी बोली…

और क्या वो 10 तोले की पायल मम्मीजी पर क्या अच्छी लगेगी… मम्मी जी आप मुझे अपने झुमके और पायल दे दो और दीदी को मांग टीका … दीदी को तो वैसे ही पहले ही मुझसे ज्यादा मिल चुका हैं…काजल बोली…

छोटी हैं छोटी ही रह , समझी काजल… क्या ज्यादा मिल गया मुझे… झुमके तो मैं ही लूँगी …

दोनों बहुएं तू तड़ा पर उतर आयी…

ये सब देख नितिन तेज आवाज में बोला… चुप करो तुम दोनों…..एक भी शब्दअब आगे कहा तो…..

वसीयत भाग 1  – मीनाक्षी सिंह 

वसीयत ( भाग – 2 )

वसीयत ( भाग – 3)

वसीयत ( अंतिम भाग )

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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