वसीयत ( भाग – 2 ) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अभी तक आपने पढ़ा विमल जी अपनी दिन प्रतिदिन बिगड़ती हुई तबियत देखकर अपनी पत्नी सुशीला से कहकर अपने दोनों बेटों अनुज और नितिन को बुलवा लेते हैं.. बच्चों को देख विमल जी भाव विभोर हो ज़ाते हैं… तभी अचानक से फिर से उनकी तबियत बिगड़ती हैं… पत्नी से बेटी राखी के बारें में पूछते हैं… तभी घर की बड़ी बहू रानी तपाक से बीच में बोल पड़ती हैं कि दीदी को बुलाने की क्या ज़रूरत… हम सब आ तो गए हैं… तभी विमल जी दहाड़ती हुई आवाज में बोलते हैं…. खबरदार अब आगे एक भी शब्द बोला तो….

अब आगे…..

बहू… राखी ,,तुम्हारी ननद , इस घर की सबसे बड़ी बेटी हैं…. इस घर के लिए जाने वाले फैसलों को जानने का हक उसे भी उतना ही हैं ज़ितना तुम्हे हैं… इसलिये उसे भी बुलाना उतना ही ज़रूरी हैं ज़ितना तुम लोगों को…

वो पापा जी…. मैं तो बस इसलिये बोली कि दीदी को भी काम होंगे… हम हैं तो सही आपकी देखभाल के लिए…. आप कह रहे हैं तो मैं कर देती हूँ दीदी को फ़ोन… इसी बहाने सब मिल लेंगे … सकपकाती हुई आवाज में रानी बोली…

ठीक हैं बहू….उसे आ जाने दो…फिर बात करता हूँ…विमल जी बिल्कुल नारियल के स्वभाव के थे … ऊपर से सख्त , अंदर से मुलायम …

अनुज, नितिन घर की दोनों बहुएं दूसरे कमरे में गए….. भईया ,, अब दीदी का इंतजार करेंगे… मुझे तो दो दिन की ही छुट्टी मिली हैं..कब पापा अपनी बात बतायेंगे…. मेरा टाइम वेस्ट हो रहा हैं… अनुज उदास होते हुए बोला…

हां हम तो बहुत फ्री हैं ना .. हमें तो जैसे 1 महीने की छुट्टी मिली हैं..तू भी कैसी बात करता हैं…हम भी दो दिन की छुट्टी पर ही आयें हैं.. रानी, राखी दीदी कब आ रही हैं ?? तुमने फ़ोन किया ??

हां कह रही,, रात तक पहुँच जायेंगी …

तभी सुशीला जी की आवाज आयी… नितिन सुनना ज़रा ..

दोनों बेटे आंगन में आयें … इनकी दवाईय़ां खत्म हो गयी हैं…. अभी तक तो सामने वाली नीता आंटी का बेटा ले आता था … पर अब तुम लोग आ गए हो तो ले आओ …अच्छा नहीं लगता उनसे कहना…जब घर में दो दो बेटे हैं…सुशीला जी दवाई का पर्चा नितिन के हाथ में थमाती हुई बोली….

नितिन ने पर्चा देखा… उस पर पिछला बिल 7000 का बना था .. इतने पैसों का बिल देख नितिन अनुज से बोला… अभी सफर की थकान हैं.. सर दर्द हो रहा हैं.. तू ले आ दवाई…

अनुज ने पर्चा देखा.. वो भी सकपका गया…. वो कुछ कहने ही वाला था तब तक सुशीला जी अंदर से आयी… ये ले नितिन पैसे… इतने में आ जायेंगी दवाई… तब जाकर दोनों भाईयों की सांसों में सांस आयी… ऐसा लगा जैसे किसी ने उनका कलेजा मांग लिया हो… माँ बाप बच्चों के लिए कुछ भी करते हैं.. पर ये बच्चे… चलिये आगे बढ़ते हैं…

शाम के समय घर की बड़ी बेटी राखी दोनों बच्चों के साथ आ गयी… आते ही अपने पापा के गले लग काफी देर तक रोती रही… शिकायत करती हुई बोली… बताया क्यूँ नहीं पापा… इतनी तबियत खराब कर ली आपने अपनी… भाभी ग्लास लेकर आईये… जूस लेकर आयी हूँ… पापा को अपने हाथों से पिलाऊंगी… तन्दरुस्त करना हैं पापा को …

तू मेरी फिकर छोड़…मेरे तो कब्र में पैर रखे हैं… इतना लम्बा सफर करके आयी हैं…. पहले चाय नाश्ता कर ले… विमल जी कंपकपाते हुए बोले…

बोला तो जा नहीं रहा … पहले आप जूस पीजिये तभी मैं कुछ खाऊंगी … अपने हाथों से बिटिया रानी ने उन्हे जूस पिलाया .. यह सब देख बेटे बहू एक दूसरे को देख इशारे करने लगे…

खाना पीना खा सभी लोग अपने कमरे में चले गए … राखी बोली… मैं पापा के पास ही सोऊंगी ….

तू यहां मत सो री … जा कूलर में सोना… मेरे बलगम की बदबू आती हैं मेरे कमरे से… तेरी सोना भी तेरे बिना नहीं सोती … विमल जी बोले…

तो भईया आप सो जाईये … इतने दिनों से माँ,,पापा का ख्याल रख रही हैं… अब हमें उन्हे थोड़ा आराम देना चाहिये … राखी नितिन से बोली….

इतना सुन नितिन बोला..पापा मैं सो जाऊंगा आपके पास… पर अब सब लोग आ गए हैं … आपको कोई ज़रूरी बात करनी थी ना … कर लिजिये ….

ये सुन विमल जी ने सब बच्चों को आंगन में इकठ्ठा होने को कहा….

वसीयत भाग 1  – मीनाक्षी सिंह 

वसीयत ( भाग – 2 )

वसीयत ( भाग – 3)

वसीयत ( अंतिम भाग )

मीनाक्षी सिंह की कलम से….

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