वारिस – कमला अग्रवाल

बच्चे का मुख चूमते हुए सुधीर ने आवाज दी , ” रुपा मैं चला ,सलोने का ख्याल रखना “।

” अरे ! आज तो चाय पी के जाइए “

  ” नहीं रुपा ! तुम जानती हो ,घर पर सुप्रिया मेरा इन्तजार कर रही होगी ,चाय उसी के साथ पिऊंगा ।”

रुपा के चेहरे पर शिकन  साफ नजर आ रही थी।

। सुप्रिया सुधीर की ब्याहता और उसका

प्यार दोनों थी ,इधर रूपा के साथ उसका एक समझौता हुआ था । सुधीर रुपा की व्यथा को समझ चुका था। उसने धीरज का परिचय देते हुए कहा ” अच्छा चाय ले आओ रुपा ! ”  रूपा चाय बना करके  ले आई लेकिन चाय  खामोशी के वातावरण में समाप्त हुई । सुधीर आज आने वाली  स्थिती पर चुप  था ,उसका मन खिन्न था ।घर पहुंच कर उसने सुप्रिया से भी बात नहीं की ,सुप्रिया का स्वभाव सौम्य था उसने भी सुधीर से कुछ न पूछा । सुधीर तैयार हो कर कार्यालय के लिए निकल पड़ा । जैसे -तैसे लंच तक का काम निपटा कर आधी छुट्टी लेकर कार्यालय से बाहर आ गया  ।पैर घर की तरफ न जाकर पार्क की तरफ बढ़ गये । वहाँ बच्चों के शोर में उसका मन खो गया । बीते दिनों की यादें उस पर हावी हो गयीं ।

सुप्रिया के जन्म पर वह अपने माता पिता के साथ अंकल सिंह के घर गया था छोटी सी गुड़िया देखने । यह क्या ? छोटा सा सुधीर  एकटक  नवजात गुड़िया को देख रहा था प्रताप सिंह  ठ -ठा कर हँस पड़े  “सुधीर को …हमारी गुड़िया के साथ.. पुरानो रिश्तो लागो है ।” प्रताप सिंह  की उस दिन की बात में छिपी बहुत बड़ी सच्चाई आज सुधीर को समझ में आ रही थी ।

वह और सुप्रिया साथ -साथ खेलते -पढ़ते उम्र के पड़ाव को पार करते जा रहे थे ।सुप्रिया बारह वर्ष की और सुधीर सोलह वर्ष का हो   चुका था । स्कूल जाते समय सुधीर सुप्रिया के साथ अभिभावक जैसा व्यवहार करता  था।सुप्रिया की सुरक्षा ,जैसे उसकी जिम्मेदारी हो ।दोनो के परिवार भी बच्चों के आपसी मेल -जोल से खुश थे । हंसी मजाक में  कभी कदास बात बच्चों के शादी तक पहुँच जाती ।दोनो परिवार ठ -ठा के हँस पड़ते ।




  अचानक सुप्रिया  सुधीर से  कटने लगी ,बात -बात पर सुघीर पर झुझंला उठती ,बहुधा वह स्कूल न आती । सुप्रिया के घर जाने पर सुधीर को पूरे परिवार की अवहेलना मिलती ।सोलह वर्ष के सुधीर को बात समझ में नही आयी ।उसने  प्रताप अंकल के यहांँ आना-जाना कम कर दिया ।वक्त बीता और सुधीर डाक्टरी की पढ़ाई करने अमेरिका चला गया । वह बराबर सुप्रिया को याद करता रहा ,  जब  लौटकर  आया ,सब कुछ बदल चुका था । पता चला सुप्रिया पढ़ाई पूरी कर इंजिनियर बन चुकी है ।

आज कल किसी कम्पनी में कार्यरत है सुप्रिया को देखने और मिलने कि  इच्छा वह दबा न सका ।लेकिन लाख कोशिश के बाद भी सुप्रिया  बात करने को तैयार न हुई । सुधीर के पिता ने बताया कि प्रताप सिंह ने उनसे बहुत दूरी बना ली है ।सुधीर ने बात की तह तक जाने की ठानी ।वह सुप्रिया के कार्यालय के सामने खड़ा रहता सुप्रिया उसे देखती और निकल जाती । महीनों  तक यही सिलसिला चलता रहा ।   उन दिनों को याद कर  सुधीर की आँखें भर आई ,फिर वो विचारों में खो गया ,आखिर एक दिन सुप्रिया का मन पिघला और वह सुधीर के पास आयी ….

  ” कैसे हो सुधीर ?”

”   ठीक हूँ , तुम कैसी हो ?” 

  ”  बस …ठीक ही हूं”

  “मेरी उपेक्षा का कारण बता दो “

  कुछ क्षण तक सुप्रिया चुप रही फिर बोली

  ” हाँ सुधीर आज मन हल्का करने को जी चाह रहा है ।”

सुधीर को याद आया , दोनों पहले भी बातें करने इसी पार्क में आते थे ।सुप्रिया ने जो बताया वो दर्दनाक था……




“एक दिन अचानक माँ  (हेमलता) को पता चला  कि  कुदरत ने मेरी काया में कुछ कमी छोड़ दी ।मैं एक किन्नर …  माँ  और पापा  एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जमीन पर ही बैठ गये । पल भर में हम सब की सारी खुशियों को ग्रहण लग गया । दोनों ने इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनकी बेटी किन्नर है ।मेरा बाल मन कुछ न समझ सका ,किन्तु धीरे -धीरे सारी बातें समझ में आने लगीं ।

मैने किन्नरों को कभी -कदास ताली बजाते देखा था ।मैं सिहर उठी मैं भी …  ये बातें मेरे माता पिता के अलावा आज तुम जान रहे हो ।माँ -पापा ने इस बात को गुप्त रखने का फैसला किया और मुझे ऊँची शिक्षा और तमाम गुण दिए  ।मैं आज  जो भी हूँ उन्हीं की वजह से हूँ । अब तुम मेरा पीछा छोड़ दो ।”

सुधीर और सुप्रिया दोनों अपने-अपने घर को चले गये ।रात भर सुधीर सो ना सका हमेशा सुप्रिया के रक्षा को तत्पर उसका अभिभावक मन बेचैन हो उठा  । उसने अपने माता पिता से बात करने का फैसला किया ।सुबह होते ही सारी स्थिति से अपने माता पिता को  अवगत कराया और कहा   .. 

  “मैं सुप्रिया से शादी करुँगा” ।

चौधरी और चौधराइन यह सुनकर अचंभित थे ।लेकिन वे उसके हठीले स्वभाव को जानते थे ।कई दिनों तक घर में कलह होती  रही  ।बात खानदान के वारिस पर आ रुकी । उसका उपाय डाक्टर बने सुधीर की नजरों में था ।

  वह सुप्रिया के माँ -पापा से मिला और उनके सामने ,सुप्रिया के साथ घर बसाने की बात रखी । प्रताप सिंह और हेमलता इस बात को सुन कर आश्चर्यचकित थे  ।विश्वास नहीं हुआ




बोले ..”..वारिश .! “

दोनों  परिवार के बीच सुप्रिया और सुधीर की शादी के बाद ,दो वर्ष के लिए एक और कांट्रेक्ट मैरेज की बात तय हुई ।अखबार में विज्ञापन दिए गए रुपा वही दूसरी लड़की थी  ।अनाथ रुपा को आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए पैसों की जरुरत थी ।वह अस्पताल में सुधीर से मिली और कांट्रैक्ट मैरेज के लिए तैयार हुई ।  कोर्ट के जरिए सभी बातें तय की गई । इधर समय अपनी रफ्तार से गुजरता रहा । सभी की इच्छा पूरी हुई । रुपा ,सुधीर और सुप्रिया तीनों की जिंदगी बीत रही थी ।धीरे -धीरे वह वक्त  भी आया कि रुपा का अनुबंध  का समय खत्म हो गया ।अब वो आगे कि पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाली है ।आज सुधीर सुप्रिया  को लेकर रुपा के घर जाने वाला था । अपने ही जाते बच्चे के साथ आज रुपा का आखिरी दिन था । सुधीर हाथ ‌‌ झाड़ते हुए बुदबुदाया   ” रुपा , तुम्हें सच का सामना करना ही होगा।”

घर पहुंच कर सुप्रिया को साथ लेकर रुपा के घर पहुंचा । रुपा सामान पैक कर तैयार खड़ी थी।

अपने शरीर के हिस्से  सलोने को ,नम आँखों से सुप्रिया की गोद में देते हुए वह बोली  ,

” लो सुप्रिया ! सुधीर का वारिस । ” बिना मुड़े अपनी जीवन यात्रा पर निकल पड़ी ।

       

               कमला अग्रवाल

                       गाजियाबाद   ।

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