भोर की सुनहरी रुपहली किरणें सदैव ही ‘रमा जी’ एवं उनकी प्रिय, खुशदिल बहू के लिए नित नए संदेश लेकर आती है।
‘सुधीर’ रमा का आज्ञाकारी बेटा है।
सुधीर के पापा की अचानक कार दुर्घटना में हुई मृत्यु ने उन दोनों मां बेटे को झकझोड़ कर रख दिया था उस समय सुधीर की आयु मात्र ग्यारह बर्ष की थी और रमा की उम्र बत्तीस बर्ष की
लेकिन फिर भी रमा ने अपने कदम मजबूती से टिकाए रख कर अपनी कर्मठता के बल पर उसे पाल पोष कर बड़ा किया है। उसे पिता की कमी नहीं अखरने दी है।
सुधीर को जितना पढ़ना था दम भर कर पढ़ाया।
लेकिन कहते हैं ना ,
‘जब तक बेटों के ब्याह नहीं होते मां को चैन नहीं मिलता और बेटों के लिए भी मां ही दुनिया में सबसे संस्कारी औरत होती है ‘
रमा को भी अपने बेटे सुधीर के ब्याह की जल्दी थी। सुधीर ने बचपन से ही अपनी मां को अपनी और घर की साज-संवारमें चक्की की तरह पिसते हुए देखा है।
कभी-कभी तो सुधीर को लगता है जैसे मां चक्की नहीं पीस रही है बल्कि पापा की असामयिक मृत्यु से जिंदगी की तमाम उलझनें उन्हें चक्की की तरह पीस रही हैं।
लिहाजा उसने बिना ना नुकुर करते हुए अपनी शादी के लिए हामी भर दी है।
रमा ने आनन-फानन में अपने दूर-दूर तक के परिवार में यह बात फैला दी थी कि,
‘ उसे अपने बेटे सुधीर के लिए सुशिक्षित, प्यारी सी बहू चाहिए ‘
सुधीर की किस्मत से रमा की बहन की ससुराल वालों की तरफ से स्मिता का रिश्ता आया था।
स्मिता स्वभाव से शांत और बहुत ही प्रसन्नचित लड़की थी जो बाद के दिनों में काफी समझदार बहू भी निकली।
शादी के बाद उसे ससुराल में सभी कुछ वैसा ही मिला जैसा उसने सोच रखा था। हर वक्त उसे पलकों की छांव में बिठा कर रखने वाले सुधीर के रूप में प्यारा हमसफ़र एवं उसे सिर्फ बेटी-बहू सी ही नहीं बल्कि दोस्त जैसा व्यवहार रख बेहतरीन सोच वाली रमा जैसी सासु मां भी मिलीं।
जिन्हें स्मिता से सिर्फ एक ही दिक्कत थी ,
वो दिक्कत उन्हें स्मिता के ‘नौन वेजेटेरियन’ रहने से थी।
रमा के किचन में कभी मांस-मछली नहीं बनती है।
यह देख कर स्मिता ने परिवार में सुखद सामंजस्य बनाए रखने के लिए मांस-मछली का सेवन ही छोड़ दिया ।
ऐसा कर के एक तरफ़ तो वो अपने माायकें और ससुराल के परिवार में सबों की चहेती बन गयी थी। तथा दूसरी ओर परिवार में बेहतरीन संतुलन बनाए रखने में भी सहज सफल हुई।
अपनी इसी सार्थक सोच से वह परिवार में आए परिवर्तन को नित नये रूप में निखारती है।
अब वह दो बच्चों की मां बन गई है बच्चों के साथ उसका मातृत्व और भी निखर गया है।
बहरहाल दिन अपने के लिए होते हैं कट रहे हैं।
लेकिन समय के साथ बढ़ती उम्र में भी रमा का सादगीपूर्ण सौन्दर्य पहले की तरह ही जगमग करता रहता है।
इधर कुछ दिनों से वह थकी-थकी रहती है।
जिसे देख कर रमा परेशान हो उठी है। एक दिन मौका देख कर उसने पूछ लिया ,
“क्या बात है स्मिता ? तुम इन दिनों कुछ बदल सी गयी हो “
” नहीं तो मम्मी जी “
“अब मैं सत्तर साल की हो गई हूँ इतना भी नहीं समझ पाऊंगी “
रमा जी गौर कर रही हैं इन दिनों उनकी सदा से खुश रहने वाली खुशदिल बहू स्मिता चिड़चिड़ी सी रहने लगी है ।
उसके गोरे मुखड़े पर हर वक्त पीली सी आभा छाई रहती है।
“पहले हम दोनों कितनी बातें किया करती थीं। मिलजुल कर बागवानी भी किया करते थे “
“सारे मुहल्ले में हमारी दोस्ती की मिसाल दी जाती है “
“कुछ तो नहीं मम्मी बस वैसे ही”
” सुधीर से कुछ अनबन हो गई है क्या ?”
” नहीं माँ… , स्मिता आवेश में कुछ बोलने ही जा रही थी पर फिर उसने खुद को बहुत मुश्किल से रोक लिया।
आखिर किस प्रकार मम्मी जी को बताए वह ?
” कि हर महीने के उन चार-पाँच दिनों में आजकल उसे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है”
“उसका दिल आजकल कितना बुझा- बुझा और विविध आशंकाओं से घिरा रहता है।
“अपनी मां रहती तो बिन बताए ही सब समझ जाती”
इधर रमा सोच रही है,
” बहू ५२ बर्ष की होने जा रही है बच्चे भी बड़े हो गए हैं …फिर ? “
अचानक उनके दिमाग की बत्ती मानों जल गयी।
“उफ्फ … इस ओर मेरा ध्यान पहले क्यों नहीं गया। यह तो उसके मेनोपॉज का समय है।
मैं किस तरह नहीं समझ पाई ?’
आजतक तो बहू ने खुशी-खुशी सारी जिम्मेदारी निभाई है।
” रेगुलर रूप से मेरा बी.पी टेस्ट और शुगर टेस्ट बिना नागा करती आई है अब जब मेरी बारी आई तो मैं नादान बन कर अन्जान बनी बैठी हूँ”
“इन दिनों तो बहू का कोई खास ध्यान ही नहीं रख पाई मैं “
रमा खुद ही बड़बड़ा उठी उसे सभी पुरानी बातें एक एक कर के याद आने लगी है।
रमा ग्लानि से भर उठी और स्मिता को साथ लेकर डॉक्टर के यहाँ परामर्श लेने जा पहुँची।
स्मिता यह देख कर अत्यंत संतुष्ट हुई ,
“चलो मैं तो संकोच वश सुधीर से भी कुछ कह नहीं पा रही थी मम्मी जी खुद ही समझ गयीं “
शाम में सुधीर के घर आने पर रमा बोली, ” बेटा, डॉक्टर के परामर्श अनुसार इन दिनों स्मिता को आराम और पौष्टिक आहार की आवश्यकता है “
मैंने अंडे वाले को नियम से दे जाने के लिए बोल दिया है अब ये घर में नियम से आया करेगें”
सुधीर चौंक गया ,
” क्या कह रही हो मम्मी आपको याद तो है ना?
स्मिता को नाॅनवेज कितना पसंद था जब वो शादी कर के घर में नई-नई आई थी,
” लेकिन उसने आपके कहने पर ही सब कुछ छोड़ दिया था “
रमा हँसती हुई…
” हाँ-हाँ ज्यादा सयाना ना बन सब याद है मुझे तभी तो कह रही हूँ ,
” उस वक्त इसने खुशी-खुशी मेरा मान रखा अब मैं अपनी जान से प्यारी बहू के लिए अपनी जिद छोड़ रही हूँ समझा कुछ “
सुधीर को हैरत में डूबा देख कर दोनों सास-बहू एक साथ मुस्कुरा उठी हैं।
साथियों !
यह कहानी एक नहीं सैंकड़ों सुखी परिवार की हो सकती है। अगर हर कोई अपनी सहज जिम्मेदारियों को जान और मान कर सामंजस्य बना उसके अनुरूप चलने का प्रयास करें
सीमा वर्मा /नोएडा