तोहफ़ा – शैली गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “मां …….भाभी……..चिंटू…….भैया…….”, गेट से ही मीना के चहकने की आवाज़ आनी शुरू हो गई थी और उसका ये बचपना देख कर उसके पति निखिल हंस पड़े और मां मुस्कुराते हुए उन दोनों का स्वागत करते हुए बोली ,” अभी बचपना गया नहीं तुम्हारा”।

मीना अपनी मां और भाभी श्यामा के गले लगते हंसकर बोली,” क्या मां, शादी के चंद महीनों में ही आपको लगता है कि मैं अपना बचपना भुला दूं। ना बाबा ना मैं तो उम्र भर ऐसे ही रहूंगी, आप आदत डाल लो।”

उसकी बात पर सब हंस दिए और श्यामा ने उसे बोला,”मीना सच्ची तुम्हें बहुत मिस किया। अब तुम आ गई हो तो लग रहा है कि आज राखी है वरना तुम्हारे बिना तो त्योहार भी फीके लगने लगे हैं मुझे।”

“चलो अब जल्दी से पहले राखी बांध दो मीना , फिर चाय नाश्ता करते हैं सब”, मां के कहते ही श्यामा जल्दी से राखी की थाल सजा कर ले आई और मीना निखिल अपनी गाड़ी से सबके लिए तोहफ़े निकालने लगे। इतने सारे तोहफ़े देखते ही मीना की मां और भाई – भाभी एक दूसरे को देखने लगे। श्यामा ने जल्दी से अपना शगुन का लिफाफा खाली किया और सारे रुपए अपने पति के लिफाफे में डाल दिए और जल्दी से अपने कमरे की तरफ दौड़ी।

मीना ने अपने भाई, भाभी और भतीजे को राखी बांधी और सबको महंगे तोहफ़े पकड़ाए। मां और श्यामा लेने से मना करने लगी तो मीना और निखिल एक साथ बोल पड़े ,” ये मां ने बड़े प्यार से भेजे हैं, आप इन्हें मना मत करें।” सब चुप हो गए।

मीना के भाई ने शगुन का लिफ़ाफा मीना को दिया तो श्यामा ने मीना को सुंदर सा सोने का मांग टीका दिया। मीना मांग टीका हाथ में आते ही हैरान परेशान हो गई। उसने कहा,” भाभी!!!!”



” मीना बातें फिर होती रहेंगी पहले चाय नाश्ता चला दूं”, ये कहकर श्यामा मीना से नज़रें चुराकर रसोई में चली गई।

मीना चुपचाप उसे रसोई में जाता देखती रही और अपने मन में उठते प्रश्नों के साथ अपनी मां की ओर मुड़ी। मां को मीना की आंखों में उलझन और दुख साफ दिख रहा था तो वो उसको अपने साथ चलने का इशारा कर अपने कमरे में ले आई।

मां के कमरे में आते ही मीरा फफक पड़ी,” मां! भाभी ने ये मांग टीका मुझे उपहार में क्यों दिया? ये तो उनकी नानी का दिया आशीर्वाद था ना”।

मां ने मीना को गले लगा लिया और चुप कराते हुए बोली,” वो बेचारी भी क्या करती मीना। तेरे भाई के काम में दिक्कत आ रही थी तो बाकी ज़ेवर तो वो पहले ही गिरवी रख चुकी थी। अब तू इतने सारे उपहार ले आई तो तुझे भी तो कुछ देना था ना। यही बचा था उसके पास, दिल बड़ा कर उसने तुझे दे दिया।”

” पर क्यों मां? ना देती तो भी चल जाता ना।”

” नहीं बेटा! अभी तेरी नई नई शादी हुई है। अभी तुझे अच्छे से रिश्तों की समझ नहीं आई । धी – बेटी जो लाती हैं उस से ऊपर ही वापिस दिया जाता है।”

“पर मां अब समय बदल गया है। इन सब बातों का कौन ध्यान रखता है?”

” बेटा थोड़े समय अपनी ससुराल में रह परख के तो ये बात तू कह सकती थी पर तेरे नए रिश्तों में तेरी भाभी कोई कमी नहीं रखना



चाहती थी। अब चल जाने दे इस बात को”।

” पर मां इसका मतलब मैं ये टीका रखकर भाभी का दिल तोड़ दूं? हर दिवाली, करवा चौथ उनकी मांग में सजता था ये। मैं ये उनको वापिस दे कर रहूंगी “।

“बेटा तू इतना सारा सामान ले आई जिसके कारण तेरी भाभी आनन फानन में ये टीका अपनी अलमारी से निकाल कर लाई। वापिस जाकर तुझे भी तो अपनी सास को बताना पड़ेगा कि तू क्या लाई। अगर तू कम लाती तो ये नौबत न आती। अब आगे के लिए जब तक तेरे भाई का हाथ न खुल जाए तब तक कम ही तोहफ़े देना ताकि तेरी भाभी के सामने फिर ऐसी नौबत न आए”।

मीना कुछ बोलने लगी तो मां ने उसे रोक दिया,” जानती हूं मीना तू कम में भी खुश रहती पर बेटा कुछ रिवाज़ अभी नहीं बदले हैं। उन रिवाजों को बदलने में समय लगेगा और उस से ज्यादा अच्छा होगा अगर ये लेना देना ही कम हो जाए जिसके कारण त्योहार वाले दिन मेरी बेटी ,बहु दुखी हो गई। मीना तूने बदलना है तो लेना देना कम करने की पहल करना मेरा बच्चा। तेरी भाभी ने हमेशा तुझे बेटी की तरह माना है, वो तेरे उपहार रख कर तुझे कम सामान दे – ये वो नहीं कर पाएगी”।

“आप सही कह रही हो मां। आगे से मैं इस बात का ध्यान रखूंगी कि मेरे तोहफ़े ऐसे हो जिससे मेरे भाई भाभी के मन पर बोझ न आए। और अब तो मैं आप सबका मान रखने को ये मांग टीका ले जाऊंगी अपने साथ पर मां मैं भाभी को बोल कर जाऊंगी कि ये टीका उनकी अमानत की तरह मेरे पास रहेगा और पहला मौका देखते ही मैं इसे  वापिस कर दूंगी। मैं जाकर उन्हें ये बात कह देती हूं और साथ ही उनकी मदद भी कर देती हूं”। और मीना भीगी आंखों से रसोई की ओर चल दी, एक दृढ़ संकल्प के साथ कि धीरे धीरे ये लेने देने के रीति रिवाज को वो बदलकर रहेगी।

उम्मीद करती हूं आप सबको मेरी ये कहानी पसंद आएगी। आप सबके विचारों का मुझे इंतज़ार रहेगा।

धन्यवाद।

शैली गुप्ता

 

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