नाम ही कहां,जो डुबाऊंगी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : शांति रोती हुई काम पर आई सुबह-सुबह।मैंने पूछा “क्या हुआ? सुबह-सुबह रो रही है।फिर पति से झगड़ा हुआ क्या?”

“नहीं दीदी,आप लोगों की कॉलोनी में सभी बड़े और इज्जत दार लोग रहतें हैं।प्रमिला दीदी ने मुझे काम से निकाल दिया।उनकी देखा देखी और लोग भी मना कर देंगें।कैसे खर्चा चला‌ पाऊंगी घर का?यही सोचकर रो रही हूं दीदी।”

मैंने अवाक होकर पूछा”पर निकाला‌ क्यूं काम से उन्होंने तुझे,?”

“दीदी ,मैंने आपको बताया था ,बड़ी बेटी ड्रायविंग सीख रही थी एक साल से।अब उसने एक टैक्सी किराए पर लेली है, उसे चलाती है।”

“हां तो क्या बुरा‌ काम कर रही,टैक्सी ही तो चला‌रही है।इस वजह से काम से निकालना तो सही नहीं है।”मैं अपना विचार रख सकती थी,पर औरों के बारे में हम क्या बोल सकते थे।मेरे कहने से शांति को निकाला तो नहीं ,पर ताना देने में कभी कमी नहीं की।शांति को रोज सुनना पड़ता”देख,इज्जत जितनी भी बची खुची है तेरी,सब पर धूल डाल देगी तेरी बेटी।

रात देर तक टैक्सी चलाकर आधी रात घर वापस आएगी,तो तुम्हारे परिवार का नाम नहीं डूबेगा।”शांति यही बातें जब अपनी बेटी शालू से कहती,तो वह सुंदर तरीके से जवाब देकर मां का मुंह बंद कर देती।एक दिन सड़क पर और कोई टैक्सी नहीं मिली।खड़ी थी बारिश में,तभी शालू अपनी टैक्सी चलाकर आई और रुकी।मुझे सम्मान के साथ अपनी टैक्सी में बिठाया।

उसी टैक्सी‌में कुछ और पैसेंजर भी बैठे,जो शालू को छेड़ रहे थे,लड़की ड्राइवर देखकर।कुछ समय तक‌ तो शालू सुनती रही फिर उसने एक‌ लड़के को ऐसा जवाब दिया कि मैं कायल हो गई।उस लड़के ने तीन बजे की बुकिंग करनी चाही,एक होटल के लिए।शालू ने मना कर दिया।अलग से डबल किराया भी देना चाहता था वह,शालू ने मना कर दिया।मैं भी बैठी थी शालू के बगल में।

एक लड़के ने फब्तियां कसी “बड़ी स्त्री सावित्री बनती है।काम तो टैक्सी चलाना ही है।फिर किस बात का भाव खाती है।शालू ने टैक्सी रोक दी और उन्हें बाहर निकाला।शेरनी जैसे दहाड़ कर बोली”तुम लोग जो चोरी छिपे अपनी गर्लफ्रेंड को होटल, पार्क,सिनेमा ले जाते हो, घरवालों से छिपकर,तो तुम्हारे परिवार का ,खानदान का नाम नहीं डूबता।

मैं इज्जत के साथ टैक्सी चलाकर लोगों को गंतव्य तक पहुंचाती हूं।इसमें मेरे माता-पिता का नाम कैसे डूबेगा?मैं चोरी नहीं करती, क्लबों में नाचती नहीं,कोई ग़लत काम नहीं करती,तो मैं अपने परिवार का नाम नहीं डुबाती ।अपने खानदान का नाम तुम जैसे रईस घरों के बच्चे ही डुबाते हैं।”

सभी लड़कों को उतारकर शालू अब मुझसे बोली”आंटी ,कुछ महीनों में पैसे जमा करके,अपनी ख़ुद की टैक्सी खरीद लूंगी।”मैंने भींगीं आंखों से उसे आशीर्वाद दिया,सफल होने का।

हमारे कॉलोनी में प्रमिला जी को दिल की बीमारी थी।अचानक रात को उन्हें अटैक आया।घर पर कोई मर्द नहीं थे।पति और बेटे कार से किसी बिजनेस टूर पर गए थे।आस -पास से कैब बुकिंग कर तो ली,पर उन्हें आने में समय लगेगा।मैंने चुपचाप शांति को फोन पर बताई सारी बातें।

शालू उतनी रात में अपनी टैक्सी में प्रमिला जी को सही समय हॉस्पिटल लेकर पहुंची। प्रमिला जी तीन चार दिन बाद घर वापस आईं,शालू की टैक्सी में ही।अब पूरी कॉलोनी में लोगों वंआवने यह प्रण लिया कि,शालू के बिजनेस को बढ़ाने की सभी मदद करेंगे।

जिस शालू के टैक्सी चलाने से नाम डूब रहा था,घर,परिवार, जान पहचान वालों का,वही आज गौरवान्वित हो रहे थे।

शालू ने अपनी ख़ुद की तीन टैक्सी खरीद ली।अच्छे से संभाल लिया उसने अपने परिवार की ग़रीबी और नाम को।

शुभ्रा बैनर्जी

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