तिरस्कार – प्रेम बजाज

“सीमा, अरी ओ सीमा कब से बुला रही हूं, कहां मर गई” 

बड़बड़ाती हुई आरती कमरे से बाहर आई तो देखा सीमा रसोई घर में फर्श पर उकड़ू होकर बैठी है और उसकी आंखों से झर-झर आंसू बह रहे हैं।

“क्या हुआ ये टसुए क्यों बहा रही है, कोई मर गया है क्या तेरा जो इस तरह रो रही है”

” वो…वो भाभी ( रोते हुए) पेट में बहुत दर्द हो रहा है, आज महीना आया है ना” 

” तो…………… ये तेरा हर महीने का ड्रामा है, हर महीने दो दिन काम से छुट्टी करके आराम करने का तेरा बहाना बहुत अच्छा है” 

 

“भाभी मैं बहाना नहीं करती, सच में बहुत दर्द होता है” 

” अगर इतनी ही तकलीफ़ होती है तो घर से आई ही क्यों थी, घर पर ही रहना था ना, चल उठ अब ज्यादा ड्रामा मत कर, जल्दी से तेल गर्म करके ले आ मेरे पैरो में दर्द है, मालिश कर दे, फिर मुझे राघव को भी स्कूल से लेने जाना है” 

 

” भाभी प्लीज़ थोड़ी देर रूक जाईए, बहुत दर्द है, दवाई खा लूं फिर मालिश कर देती हूं” 




तड़ाक….. 

” तेरी इतनी हिम्मत, तू मुझे जवाब दे, तू एक नौकर है नौकर, समझी। हर महीने तेरे घर पैसे भेजते हैं, तेरा खाना- कपड़ा देते हैं, काम नहीं करेंगी तो क्या तेरी पूजा करेंगे, आराम करना है तो अपने घर वापिस चली जा” 

 

दर्द से तड़पती बेचारी सीमा आंसू बहाती हुई चुपचाप तेल गर्म करके आरती के पैरों की मालिश करती है।

पैरों की मालिश‌ करवा के आरती अपने बेटे को स्कूल से लेने चली गई, और‌ जाते-जाते उसे ताकीद कर गई।

“मेरे आने तक मेरे कमरे की अच्छे से सफाई करके रखना और हां मेरे लिए फ्रूट काट देना, और राघव के लिए जूस तैयार कर रखना, और ये बर्तन भी सारे मेरे आने मंजे होने चाहिए, समझ गई ना, सोने मत चली जाना” 

 

आरती की सास सुमित्रा जी, ” आरती बेटा पहले सीमा नाश्ता करके दवाई ले ले,  12 बजने को आए हैं, आज इसने सुबह भी चाय नहीं पी”

 

“सुबह चाय नहीं पी तो क्या हुआ, मर नहीं जाएगी, पहले मेरा कमरा साफ़ कर लें, बाद में कर लेगी नाश्ता, सुबह से इसने किया ही क्या है? एक नाश्ते में आपकी हैल्प की और कपड़े ही तो धुले हैं” 

आरती ऐसा कह कर निकल जाती है बेटे को स्कूल से लाने, और सावित्री जी चुप रहकर अपने काम में लग जाती है।




इस तरह रोज़ का यही काम था, आरती अक्सर सीमा को डांटती रहती, कभी- कभी तो उस पर हाथ उठा देती थी।

एक बार आरती राघव को स्कूल से लेकर आ रही थी तो उसकी कार से एक ट्रक टकरा गया और आरती और राघव दोनों ही बहुत बुरी तरह से चोटिल हो गए, यहां तक कि डाक्टर ने राघव को जवाब तक दे दिया।

 

सभी परिवार में आरती और राघव के लिए चिंतित है, सभी की आंखों में आसूं है, आरती दो दिन बाद ठीक हो गई मगर राघव अभी तक खतरे में है, ना जाने कब क्या हो जाए। किसी के अन्दर अन्न का दाना तक नहीं जा रहा।

तीसरे दिन सीमा खाना बना कर अस्पताल ले जाती है और जबरदस्ती सबको थोड़ा सा खिलाती है!

आरती,” आंटी जी, अंकल जी, भैया, भाभी आप विश्वास किजिए हमारे राघव को कुछ नहीं होगा, मेरा मन कहता है, ईश्वर इतना निर्दयी नहीं हो सकता, आप सब थोड़ा सा कुछ खा लिजिए, वरना आप सब भी बीमार पड़ जाएंगे। फिर राघव बाबा का ख्याल कौन रखेगा” 

इस तरह वो सबको खाना खिलाती है, ईश्वर की कृपा से 72 घण्टे बाद राघव खतरे से बाहर हो जाता है।





जब आरती और राघव को अस्पताल से डिस्चार्ज मिला और घर आने पर आरती ने  देखा कि सीमा बहुत ही ज्यादा कमज़ोर और कांतिहीन लग रही थी।

 

“मम्मी जी ये सीमा को क्या हो गया, अचानक इतनी कमज़ोर कैसे हो गई, बीमार तो मैं थी, कमज़ोर ये  हो गई”  ऐसा कह कर आरती हंसने लगी।

इतने में आरती के कमरे में उसकी बात सुनकर उसके ससुर जी आ गए, ” आरती बेटा जब तुम अस्पताल में थी, तब सीमा ने निर्जला व्रत लिया था कि जब तक भाभी और राघव ठीक नहीं हो जाते वो अन्न-जल नहीं लेगी, जब तुम कुछ ठीक हुई, तब उसने हम सबको तो खाना खिलाया लेकिन खुद तब भी नहीं खाया कि राघव भी पूरी तरह से होश‌ में आ जाए तब वो अन्न-जल ग्रहण करेंगी”

सावित्री जी,” और बेटा इसने मुझे किसी काम को हाथ तक नहीं लगाने दिया, मुझसे बोली, आंटी जी आप अस्पताल रहो भाभी के पास, मैं घर संभाल लूंगी आप चिंता ना करें। और उसने सारा घर संभाल भी लिया”

 

ये सुनकर आरती की आंखों में आंसू छलक गए, और सीमा को बुलाकर गले से लगाया।

” सीमा मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम्हे हर पल तिरस्कृत किया, और तुने हमारी जान बचाने के लिए इतना कठिन व्रत लिया, अगर तुझे कुछ हो जाता तो”?

 

“दोस्तों अमीर हो या गरीब, मालिक हो या नौकर , सभी इन्सान एक समान है, हमें किसी का तिरस्कार करने का कोई अधिकार नहीं”

 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

V M

1 thought on “तिरस्कार – प्रेम बजाज”

  1. कहानी बहुत अच्छी है लेकिन बुरे लोग कभी भी इतनी आसानी से व्यवहार में बदलाव नहीं लाते हैं।

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