तलाक हमेशा बुरा नहीं होता है’ – प्रियंका सक्सेना

पड़ोस के घर से आती रोज़ रोज़ की मार-पीट चीखने रोने की आवाज़ों से गरिमा बहुत परेशान हो चुकी थी। माॅ॑ के मना करने पर भी आज उसने पड़ोसियों का दरवाजा खटखटा दिया।

गरिमा के पापा का स्थानांतरण इस शहर में हुआ है। कुछ ही दिन हुए हैं उन लोगों को इस घर में शिफ्ट हुए।गरिमा

काॅलेज में पढ़ती है  एम ए मनोविज्ञान की छात्रा है और उसका भाई बारहवीं कक्षा में पढ़ता है। पापा बैंक में नौकरी करते हैं  हर तीन साल में नया शहर देखना पड़ता है।

गरिमा की माॅ॑ गृहणी हैं। संयुक्त परिवार है घर में बाबा दादी और चाचा रहते हैं।

कई बार खटखटाने पर दरवाज़ा खुला और एक आंटी ने जरा सा दरवाज़ा खोलकर पूछा “कौन हों तुम? क्या बात है?”

गरिमा ने कहा “हम लोग अभी दस दिन पहले साथ वाले घर में आएं हैं।”

“अच्छा! क्या काम है?” उपेक्षा से आंटी ने कंधे उचकाते हुए  पूछा

“आपके घर में किसी की तबीयत खराब है क्या? रात भर रोने की आवाज़ें आ रही थी।”गरिमा ने पूछा

“नहीं तो! वैसे भी अपने काम से काम रखो  दूसरों के घर में तांका-झांकी मत करों।  समझी!”आंटी ने मुंह पर दरवाज़ा जोर से बंद करते हुए कहा।

गरिमा अपना सा मुंह लेकर लौट आई।

कुछ हफ्तों बाद अड़ोस-पड़ोस में जान-पहचान हुई तो उन लोगों ने बताया कि पड़ोसी आंटी के बेटे की शादी दो महीने पहले हुई है बहू के पिता का स्वर्गवास हो गया था घर में माॅ॑-बेटी थीं और एक दुकान थी। ससुराल वालों ने यह समझकर शादी कर ली कि दुकान और मकान दोनों उनके लड़के को मिल जाएगा क्योंकि इकलौती लड़की है परंतु शादी के दहेज के सामान को जुटाने में दुकान बिक गई और घर किराए का था। अब यह लोग बहू को परेशान करते हैं कि माॅ॑ से पैसे लेकर आ। वह मना करती है कि माॅ॑ छोटी सी नौकरी से अपना पेट भरने लायक मुश्किल से कमा  पाती है तो यह लोग आएदिन बहू के साथ मार-पीट करते हैं।

गरिमा दोपहर में छत पर गई तो दो चार बार बहू कपड़े फैलाती मिली। सिर पर पल्लू को ऐसे ढककर रखा था कि बमुश्किल से मुंह की बस झलक दिखाई दी। उसने उससे बात करने की कोशिश की  पहले तो वह घबराई  फिर ‌बात करने पर पता चला उसका नाम मालती है  एम ए  बी एड किया है  शादी से पहले एक स्कूल में पढ़ाती थी। कुछ दिन बीत गए तब  गरिमा ने उसके चोटों और निशानों के बारे में पूछा  रात को रोने की आवाज़ों के बारे में पूछा तो वह रोने लगी।




मालती बोली “इन‌ लोगों ने सोचा था कि इकलौती बेटी हूं  पापा नहीं है तो शादी के बाद दुकान मकान सब मिल जाएगा। बेरोजगार बेटे की शादी अफसर कहकर करवा दी जिसका पहले से ही प्रेम संबंध था। दुकान शादी के सामान-दहेज जुटाने में बेचनी पड़ी। मकान तो किराए का था। अब ये लोग मुझे कहते हैं माॅ॑ की गांव में जमीन बिकवा कर पैसे लाऊं, इन‌ लोगों को कार खरीदनी है। माॅ॑ ने दुकान बेचने के बाद नौकरी कर ली  बहुत मुश्किल से उसका गुजारा चलता है  गांव की जमीन ही उसका एकमात्र सहारा है। हमने सोचा था कि जमीन बेचकर एक छोटा सा घर यहीं ले लेंगे‌ ताकि मैं शादी के बाद भी  माॅ॑ की देखभाल कर सकूं।”

गरिमा ने कहा “दीदी  आप तो जाॅब करती थीं फिर इतना क्यों सह रही हो?”

मालती ने बताया “वो तो इन लोगों ने छुड़ा दी  घर की कामवाली की मेरे आते ही छुट्टी कर दी। माॅ॑ से मिलने नहीं जाने देते। “

गरिमा ने कहा “दीदी  आप पढ़ी लिखी हो  क्या आप इस शादी में रहना चाहती हो?”

मालती ने बताया “अखिल हर रोज उस लड़की से मिलने जाते हैं। मना करो तो कहते हैं कि तुझसे दहेज के लिए ब्याह किया था  घर के काम काज कर और कोने में पड़ी रह। हर रात पीटते हैं  माॅ॑ की जमीन बेचने के लिए कहते हैं। मैं माॅ॑ का सहारा छीन नहीं सकती  चुपचाप मार खाने के अलावा मेरे पास चारा नहीं है।”

“दीदी, आप के लिए इस रिश्ते में कुछ नहीं है फिर क्यों बंधकर रहना?”

“अगर मैं अलग हो जाऊं तो समाज क्या कहेगा?”

“समाज जब आज आप की चीखें दर्द पुकार सुन कर कानों में बत्ती देकर बैठा है तो आप उसकी परवाह क्यों कर रही हो? अपनी नहीं तो माॅ॑ की सोचो और इस गले-सड़े रिश्ते से बाहर निकलो  अपने पैरों पर पुनः खड़ी हो कर देखो  हो सकता है भविष्य के गर्भ में आपके लिए कुछ अच्छा छिपा हों! इस तरह तिरस्कृत हो कर‌ रहने से क्या मिल रहा है आपको? परन्तु प्रयास तो आपको ही करना होगा।”

“मुझे भी तिरस्कार पूर्ण जीवन नहीं जीना है, पल‌-पल‌ शारीरिक और मानसिक तौर पर मर रही हूॅं मैं! मैं भी इस रिश्ते से बाहर आना चाहती हूॅ॑।” मालती ने पहली बार अपने मन की परतें खोलीं

यह सब सुनकर गरिमा अंदर तक हिल गई। उसने मालती की आपबीती घर में बताई।

गरिमा ने अगले दिन में मालती से उसकी माॅ॑ का फोन नंबर और घर का पता ले लिया। उनको जाकर वस्तुस्थिति से परिचित कराया।

मालती की माॅ॑ की ऑ॑खों से आंसू बहने लगे। सबने मिलकर कुछ तय किया।

उस रात फिर मारने पीटने की और रोने की आवाज़ें आईं तो गरिमा ने मालती की माॅ॑ को फोन कर दिया।

मालती की माॅ॑ ने पुलिस में जाकर कम्पलेंट की साथ ही वे एक लोकल‌ नारी संस्था की एनजीओ कार्यकर्त्ताओं को साथ ले गईं।

जब महिला पुलिस व एनजीओ मालती के ससुराल पहुंचे तो उसके पति अखिल ने दरवाज़ा खोला। पुलिस देखकर हड़बड़ा गया।




“क्या बात है , मैडम?”

“तुम्हारी पत्नी कहां है?”लेडी इंस्पेक्टर ने दमदार आवाज़ में पूछा

“मैडम, आज वह सीढ़ी से गिर गई थी तो पैर में मोच लगी है, बड़ी मुश्किल से सोई है।”

“अच्छा! मालती सो रही है?”

“जी मैडम, पर आप यहां कैसे?”

“हमें पता चला है आप अपनी पत्नी से दुर्व्यवहार करते हैं।”

अखिल की माॅ॑ बोली,” मैडम, हम तो पलकों पर बिठा कर रखते हैं अपनी बहू को।”

मालती की माॅ॑ को उसकी सास घूरते हुए बोली,”आप ही बताइए इनको हमने आपकी बिना बाप की बेटी से‌ अपने इकलौते बेटे की शादी की।”

इतने में एक लेडी पुलिस अंदर से मालती को सहारा देकर लाई।‌

वह बोली,” मैडम के पैरों में तकलीफ़ है, चल-फिर नहीं पा रहीं हैं।”

“देखा! मैंने कहा था ना पैर में मोच आ गई थी।” सास बोली

“आप चुप रहें, मालती तुम बताओ और सिर से घूंघट हटाओ।”

“मैडम, हम संस्कारों वाले परिवार से हैं हमारे घर की बहू दूसरों के सामने मुंह नहीं उघाड़ती है।” मालती के ससुर ‌बोले

” चुप रहिए आप! मुंह दिखाओ, मालती!”

मालती के मुंह से पल्ला हटाते ही सबकी चीख निकल गई। गुस्से से भवें तरेर कर  इंस्पेक्टर ने कहा ,”सबको लाॅकअप में डालो।”

दूसरी महिला पुलिस से कहा,” जल्दी से मालती को लेकर चलो, इनका मेडिकल कराओ, दवा दिलवाओ।”

मालती के मुंह पर जगह-जगह सिगरेट से जलाने के दाग़ थे , होंठ कटा हुआ था जिससे खून रिस रहा था। पैरों पर बेल्ट से पिटाई के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। गले को और पीठ को भी सिगरेट से दागा गया था।

मालती का साथ देने फिर सभी पड़ोसियों आ गए। सभी ने मालती के ससुराल वालों के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी। लड़ाई लम्बी थी! गरिमा के माता-पिता ने मालती का भरपूर साथ दिया।

दो साल लगातार लड़ाई के बाद मालती को जीत मिली।

मालती को एक बेवजह के रिश्ते से छुटकारा, अखिल से तलाक और अखिल व सभी ससुराल वालों को सात वर्ष कैद और मालती को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के हर्जाना स्वरूप दस लाख रुपए देने पड़े।




इन दो सालों में मालती ने गरिमा के पापा, जिन्हें अब वह चाचाजी कहती थी, की गाइडेंस में बैंक की प्रोबेशनरी ऑफिसर की परीक्षा पास कर ली , उसकी पोस्टिंग दूसरे शहर हो गई। मालती और उसकी माॅ॑ दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए। गरिमा ने बी एड कर लिया, उसकी सरकारी इंटर कॉलेज में प्रवक्ता की नियुक्ति हो गई।

आज गरिमा सपरिवार मालती के शहर जा रही है और क्यों न जाए, उसकी बड़ी दीदी मालती का विवाह होने जा रहा है , मालती के सहकर्मी दीपांकर ने उसका हाथ स्वयं आगे बढ़कर मांगा है।

मालती की पिछली सारी बातें जानकर दीपांकर ने यही कहा था कि अच्छा हुआ तुमने हिम्मत की और उस रिश्ते से बाहर आ गई। तलाक हमेशा ही बुरा नहीं होता!

 

गरिमा के माता-पिता और मालती की माॅ॑ ने  मालती की शादी धूमधाम से की। सबसे ज्यादा खुश आज गरिमा है…

दोस्तों, अक्सर ऐसा है कि हम ऑ॑खें मूंद लेते हैं कि पड़ोसी के घर से हमें क्या मतलब?अपने इर्द-गिर्द नज़र पैनी रखिए, हो सकता है कि किसी को हमारी मदद की जरूरत हो। और हां याद रखिएगा कि तलाक हमेशा बुरा नहीं होता है! तिरस्कार पूर्ण जीवन जीने से बेहतर है कि सिर उठाकर सम्मान से जिया जाए।

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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

#तिरस्कार

 

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