स्वाभिमान और अभिमान –  कविता भड़ाना

आखिरकार आज “स्वाभिमान” और “अभिमान” का टकराव हो ही गया था। अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल अपने परिवार को देने के बाद “मनीषा” ने जब अपनी खुशी और पहचान के लिए कुछ करना चाहा तो अभिमानी “अजय” को ये सहन नही हो पा रहा था। 

रिश्ता बेशक दोनो का पति – पत्नी का है पर दिलों में दूरियां लगातार बढ़ती ही जा रही है। कहते है समय के साथ रिश्तों में पूर्णता आती है परंतु मनीषा के जीवन में खालीपन अपने पैर पसारता ही जा रहा था। 

परिवार में दो बच्चो( एक बेटा और एक बेटी) और ऊंची पोस्ट पर कार्यकृत पति अजय के अलावा और कोई नही था, सास ससुर बहुत पहले ही स्वर्गलोक को प्रस्थान कर चुके थे और मनीषा के पीहर में भी कोई नही था, सिर्फ एक बड़ी बहन है वो भी अपने बेटे बहु के साथ कनाडा रहती है।  दोनो बहनों की मुलाकात भी तीन चार साल में एक बार ही होती है, अब तो बस दोनो बहने फोन पर ही अपना सुख दुख सांझा कर लेती है।

बच्चे जब तक छोटे थे और सास ससुर भी साथ थे तो अपने घर परिवार को ही मनीषा ने हमेशा प्राथमिकता दी और कभी किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया। 

अजय अधिकतर विदेश दौरे पर रहता था और जितने भी दिन घर में होता तब भी कभी ऑफिस तो कभी अपनें यार दोस्तों में मगन रहता। मनीषा को अजय के साथ वक्त बिताने का बहुत मन होता , अपना दुख सुख अपनी परेशानियां बांटना चाहती थी वो अजय के साथ, परंतु पति के प्यार को तरसती मनीषा का तन और मन दोनों ही प्यासे रह जाते।।

अजय  काम के सिलसिले में अधिकतर बाहर ही रहता था तो घर के साथ बाहर की जिम्मेवारियां भी मनीषा ने बाखूबी निभाई, परंतु अब हालात पहले जैसे नहीं रहे , दोनो बच्चे बड़े हो चुके है बेटी कॉलेज में है और बेटा हॉस्टल जा चुका है, सास ससुर भी नही रहे तो पारिवारिक दायित्व से मुक्त मनीषा को अब अकेलापन बहुत कचोटने लगा था।

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अजय को अब भी घर से अधिक बाहर वक्त गुजारना पसंद था, कभी मनीषा कहती भी की अब तो मुझे अपना समय और प्यार दो अजय… में पूरा दिन घर में अकेले कैसे वक्त काटू?…. 

तो अजय सिर्फ एक ही बात दोहराता “क्या यार इतना बड़ा घर है, नौकर ड्राइवर, रुपए पैसे सब तो है तुम्हारे पास तो घूमो फिरो खूब शॉपिंग करो अपनी जिंदगी अपने तरीके से गुजारो और मुझे मेरे तरीके से गुजारने दो…. तब मनीषा यही कहती की एक स्त्री इन सब से क्षणिक खुशी तो पा सकती है परंतु सुकून नहीं… सुकून तो पति के साथ में ही मिलता है.. 

परंतु अजय को कभी कोई फर्क नहीं पड़ता..

पर आज एक स्लम एरिया में अपनी पूरी टीम के साथ दौरे पर निकले अजय ने जब उस गंदी बस्ती में मनीषा को छोटे छोटे बच्चो को पढ़ाते देखा तो गुस्से से आग बगुला हो गया और उसे ये अपना अपमान लगा की उसके जैसे उच्च अधिकारी की बीवी गंदी बस्ती में, गंदगी में लिपटे बच्चो को और वहा की औरतों को पढ़ा रही है…किसी तरह अपने गुस्से पर काबू रखकर अजय बस्ती के निरीक्षण के बाद अपनी टीम के साथ निकल गया…

कभी समय से घर ना आने वाले अजय को आज मनीषा ने अपना इंतजार करते पाया और गुस्से से फट पड़ा…तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसी गन्दी बस्ती में जाने की, क्या मिला तुम्हे वहा जाकर बताओं मुझे, जोर से चीखते हुए अजय ने मनीषा से पूछा…..



“मेरा मान सम्मान और मेरा स्वाभिमान” बेहद शांत मगर दृढ़ शब्दो में मनीषा ने जवाब दिया… तुमने कभी मेरी कदर नहीं की , कभी मुझ से मेरी परेशानी नहीं पूछी और ना ही कभी मेरे मन की कोई बात जानने की कोशिश की… हमेशा अपने मां बाप को, अपने बच्चो को प्यार अपनापन देने वाले आप क्या कभी अपनी बीवी को भी वो प्यार और अपनापन दे पाए?…… नोटों की गड्डियां भौतिक सुख तो देती थी परंतु मेरे मन का आंगन तुम्हारे प्यार के बगैर बंजर ही रह गया… 

पूरा जीवन दूसरो की खुशी के लिए ही जी हूं मैं…….

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परंतु अब में अपने स्वाभिमान के साथ और समझौते नही कर सकती और इसीलिए मैंने गरीब बच्चो, औरतों के लिए काम करने वाली एक संस्था को ज्वाइन कर लिया है और पूरी लगन से काम भी करूंगी…. दूसरी बात आपकी जीवनशैली में कभी दखल ना देने वाली में आशा करती हूं की आप भी मेरे काम में आगे से दखल नहीं देंगे… 

अजय की आंखों में देखते हुए गंभीरता से मनीषा ने जब ये बात कही तो अजय एक शब्द ना बोल पाया और स्वाभिमान से ओत प्रोत अपनी जीवनसंगिनी को जाते हुए देखता रह गया।…

 आखिरकार आज अभिमान पर स्वाभिमान की जीत हो ही गई…

 दोस्तों आज के बदलते जमाने में जहां पति पत्नी दोनो एक दूसरे का साथ देते हुए आगे बढ़ते है, वही अभी भी कुछ परिवारों में पुरुष प्रधान मानसिकता देखी जाती है… कहानी काल्पनिक और स्वरचित है जिसका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है।… 

 #स्वाभिमान

 कविता भड़ाना

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