स्त्री का साथ – आरती झा आद्या

अरे ओ रतन की बहुरिया… चांदनी .. इतना सुन्दर नाम धरा तेरे बाप ने कि ईद का चांद ही हो गई है तू तो। कहां रहती है आजकल… रतन के बगल वाले घर में रहने वाली एक बुजुर्ग औरत जिसे सब बुआ कहते थे उन्होंने चांदनी को देख रोकते हुए पूछा।

प्रणाम बुआजी.. बोलती हुई चांदनी कतरा कर निकलने की कोशिश करती है।

कहां जा रही है हड़बड़ी में। रतन कह रहा था कि तूने स्कूल में पढ़ाना भी छोड़ दिया है और घर बैठ गई है.. बुआ जी चांदनी के बिल्कुल सामने आती हुई कहती है।

वो बुआजी समय नहीं मिलता है। अपनी हथेली साड़ी के आंचल से ढ़कती हुई चांदनी कहती है।

तेरी हथेली में क्या हुआ.. बुआजी चांदनी का हाथ पकड़ती हुई कहती है।

किसने किया ये.. पूरी हथेली पर सिगरेट का दाग देख बुआ जी ने पूछा।

वो वो बुआजी.. चांदनी हाथ खींचती हुई हकलाने लगती है।

समझ गई। तू ईद का चांद का नहीं अमावस का चांद है। अच्छा करती है बहुरिया जो तू घर में ही बंद रहती है। बाहर आकर पढ़ी लिखी होकर भी तू औरतों को मार खाना ही सिखाएगी। जा जहां जा रही थी, जा वहां.. चांदनी के रास्ते से हटती हुई बुआजी कहती है।



कहां जा रही है तू.. भूल गई मार क्या.. चांदनी को सुबह सुबह तैयार देख रतन चीखता है।

स्कूल जा रही हूं फिर से ज्वाइन करने। मेरी प्रिंसिपल मैम से बात हो गई है.. चांदनी रतन की आंखों में देखती हुई कहती है।

रुक जा तू ऐसे नहीं मानेगी.. हाथ उठाता हुआ रतन कहता है।

बस बहुत हो गया.. मैं ना ईद का चांद हूं और ना अमावस का। चांदनी हूं मैं और अब चांदनी की उज्जवलता फैलाने से और खुद से ही परास्त औरतों को राह दिखाने से चांदनी को कोई रोक नहीं सकता है… दरवाजा खोल चांदनी अपने पग बाहर निकालती उससे पहले ही रास्ता रोक रतन सामने खड़ा हो गया।

बेहया हो गई है तू..मत भूल तेरा पति हूं मैं। पति मतलब जानती है स्वामी हूं तेरा। मेरे अलावा कोई तेरा अपना नहीं हो सकता.. रतन चांदनी का हाथ पकड़ मरोड़ता कटु मुस्कान के साथ कहता है।

मैंने कहा ना बस बहुत हो गया। अपना वो नहीं होता जो दिन रात विश्वास को छलनी करे। मिस्टर रतन अपने वो होते हैं जो जीने की राह दिखाए ना कि शूल बन चुभे..रतन के हाथ को मजबूती से झटकती दरवाजा खोल बुआजी की ओर देख स्वाभिमान की लाली चेहरे पर लिए चेतना जाग्रत करने का आभार व्यक्त करती बुआजी से आशीर्वाद लेकर मुस्कुराती चांदनी स्कूल की राह लेती है और चांदनी के पीछे पीछे चीखता हुआ बाहर आया रतन एक स्त्री को दूसरी के लिए खड़ा देख हारे हुए जुआरी की तरह वापस लौट जाने के लिए विवश हो गया।

#अपने_तो_अपने_होते_हैं 

आरती झा आद्या

दिल्ली 

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