संस्कार – पूजा मिश्रा

  मैं अपने दूर के रिश्ते के भाई अशोक के यहाँ कानपुर अपने इलाज के लिये आई थी ,भाई डाक्टर है सही राय देगा और अगर रुकने को कहेगा तो रुक जाऊंगी यही सोचकर आई थी ।

  अशोक ने बहुत प्यार से मेरी पूरी बात सुनकर

इलाज के लिये सही राय दी टेस्ट बगैरह के लिये दो दिन रुकने को कहा जिससे सही बीमारी का पता चल सके। उसने अपनी पत्नी सुगंधा से परिचय कराया – ये मेरी दीदी हैं गाँव से हमारे पास आई है दीदी की दो दिन खातिर करो

दीदी के चरण स्पर्श कर  सुगंधा आदर भाव से उन्हें अंदर अतिथि कक्ष में ले गई ।

दीदी आप आराम करिए आप चाय पियेंगी तो आपको भिजवाती हूँ 

 नही बेटी मैं चाय नही पीती पानी पी लूंगी तुम परेशान मत हो ,

 दीदी परेशानी की क्या बात है आप इसे अपना घर समझिये

लोग कहते हैं कि शहर में कोई किसी को नही पूछता ,पर ये तो हमे अपनो से ज्यादा सम्मान दे रही ,मैं मन मे सोच रही थी तभी एक नौकर नास्ता पानी लेकर आया  -दीदी आप पानी वगैरह ले लीजिये और कोई जरूरत हो तो मुझे कह दीजिये ।

सुखमनी तेरे लिये इस घर मे इतना स्वागत मैं हृदय

,सेअशोक को बहुत आशीर्वाद दे रही थी और भाव विभोर थी मुझे अपनी भाभी कमला की याद आ गई वह भी घर से किसी को विना मुह जुठारे न जाने देती थी ,अशोक और रीना बिटिया को भी वही संस्कार दिये ।

     परंतु बहू भी उसी मर्यादा का पालन करती है ये देखकर मैं खुश थी ।

 अगले दिन बहू सुगन्धा की रसोई में मदद करते हुए पूछा -बेटी तुम क्या सब आने वाले मेहमानों का इतना ध्यान रखती हो यहाँ तो रोज ही कोइ न कोई गांव से हमारी तरह  आता रहता है अपनी बीमारी लेकर ।

सुगंधा ने हंसते हुए कहा ,अरे दीदी ऐसा कुछ नही मैं तो ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उसने इन्हें इस योग्य बनाया की वह लोगों के काम आते हैं और मुझे भी सेवाकार्य में लगाये रखते हैं ।

धन्य है कमला भाभी पुत्र को ऐसे संस्कार दे गई जो आज भी अतिथि सेवा की भावना रखता है और लोगों की मदद करता है ।

           ।।    पूजा मिश्रा  ।।

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