प्यार – अनुज सारस्वत

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“अरे यार कसम से मौसम मस्त हो रखा ठंड है एक दो लड़कियाँ मिल जाये तो काम बढ़िया हो जायेगा।जम के प्यार किया जायेगा। साला अपना नसीब ही खोटा है। कोई मिली नही इतने दिन हो गये इस शहर में रहते हुए जब से गाँव छोड़कर आया”

उमंग ने शराब का जाम एक बार में सीधा अंदर डालते हुए पास बैठे सात्विक से कही। सात्विक पीता नही था।सात्विक बोला

“अबे जाहिल जिसे तू प्यार कह रहा ना उसे हवस बोलते हैं। और जैसे जैसे तू ये शराब ढकेलता जायेगा ना तेरे अंदर का हवसी बाहर आता जायेगा।और अच्छा हुआ नही मिली तुझे कोई “



इससे आगे सात्विक कुछ कह पाता उमंग बोला

“अबे पीने का मजा खराब मत कर , तुझे ज्ञान देने के लिये बोला मैनें? मेरा पैसे मेरी दारू, मैं चाहे नहाऊं दारू से,तुझे क्या फरक। तुझे नही पीना मत पी। “

यह कहकर एक और जाम अंदर ढकेलता गया।

सात्विक बोला

“एक बात मुझे बता तूने आज तक तूने सुना है, किसी की सेहत बनी है दारू से।अबे ढक्कन केमिस्ट्री तूने मैंने साथ पढ़ी। रहेगी तो एल्कोहल ही उसने तो नेचर नही बदली अपनी। जो तू पीकर अपनी नेचर बदल रहा।और होगा कुछ नही पीने के बाद तू फोन उठायेगा जितनी लडकियां तेरे वहाटसअप, फेसबुक अकाउंट पर होंगी उनमें उम्मीद डूंढेगा चैट शुरू कर देगा। हवस भरी उम्मीदों से। लेकिन होगा कुछ नही उल्टा तेरी ईमेज डाऊन हो जायेगी। क्योंकि ऊपर वाले ने बहुत सशक्त छठी इंद्रिय दी है इन लडकियों को। और मैं दूंगा ज्ञान तुझे उखाड़ ले कुछ भी। एक बार अपनी माँ बहन का चेहरा तो याद कर लिया कर कभी दारू पीकर उनसे क्यों नही बात करता। बता फिर क्यों नही वो फीलिंग्स रहती। अबे अपने पिताजी का ही सोच लिया कर कि कितना कलेजा काट कर तुझ इकलौते लड़के को यहाँ भेजा। “



बीच में रोकते हुए उमंग बोला

“अबे घर वालों को क्यों बीच में ला रहा तू। सब पीते हैं लडकियाँ पटाते मजे करते हम तो इसे ही प्यार समझते और करेंगे। क्यों सोचें हम ?इतना फालतू का ज्ञान दिलवा लो बस जिंदगी ना जियें हम।हाँ उस बात में दम है हम पीकर लड़कियों से बातें करते फिर सुबह लगता क्या कर दिये हम? वो शक की निगाहों से देखती एक बार तो आफिस की एच आर ही लपेट लिये हम “हाहाहा” पर सब चलता है “

फिर सात्विक बोला

“देख तुझसे बड़ा बेवकूफ ना कोई है। भुगत चुके हैं बाबूजी पर इरादे वही हैं। साले कुटोगे इन्ही कर्मो से।देश में 80% से ज्यादा रेप नशे में होते हैं और मर्डर भी।उठा लियो डेटा।

यह कैसा मजा है? जो कई  जिंदगी तबाह कर दे। दोस्त हूं तभी गलत रास्ते पर जाने से रोक रहा। दुश्मन होता साथ में बैठकर कलेजा जला रहा होता। चल जरा में साथ मेरे”

इतना कहकर

वो उमंग का हाथ पकड़कर ले गया बाहर सात्विक पूछता रहा। कार स्टार्ट की और पास की झुग्गी बसती में रोकी। वहाँएक झुग्गी के अंदर झरोखे से उसे दिखाया कि एक 75 साल की बूढ़ी अम्मा खाना बना रही थी । अपने 80-85 साल के पति के लिए और बूढ़े बाबा टूटे रेडियों की नाॅब पर उंगलिया घुमा रहे थे एफएम सेट करने के लिए मुस्कुराते हुए। और कमर भी मटका मटका कर कभी रेडियो लेकर बूढ़ी अम्मा के सामने आ जाते तो वो बिना दाँत की मुस्कुराहट बिखेर देती।

यह सब देखकर सात्विक बोला

“देख क्या बचा है इन लोंगों को शरीर में क्या शरीर का प्यार है इसे आत्मा  से आत्मा का प्यार कहते और इतने आभाव में भी जिंदगी जिंदादिली से जी रहे। अनमोल है यह।”

यह सब देखकर उमंग का नशा उतर चुका था और बाहर आकर बोला

” अबे तूने तो करंट दे दिया बे, ज्ञानी बाबा तेरी जय हो। हम तो थ्योरी समझकर हल्के में ले रहे। तू तो प्रेक्टिकल दिखा दिया रे। सच्ची आई लव यू जानैमन। और हाँ सच्चा वाला लव यू ।अब पूरा फोकस जाॅब और परिवार पर बता क्या पीयेगा”

सात्विक बोला

“कंचे वाली बोतल पिला दे काला नमक डालकर और 5 रूप वाली भुजिया के साथ। यही है अपनी दारू और चकणा “

दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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