Moral stories in hindi : हेलो अंकित बेटा..! तेरे पापा लगातार बीमार चल रहे हैं… घर और अस्पताल के लगभग हर दूसरे दिन चक्कर लगाने पड़ रहे हैं… मेरे तो घुटनों का दर्द भी बढ़ गया है… बेटा..! मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा है, तो भाग-दौड़ कहां से करूं..? तू अगर कुछ दिनों के लिए आ जाता तो, बड़ी सहूलियत होती…
सुधा जी ने अपने बेटे अंकित से फोन पर कहा…
अंकित: मां…! अभी तो 2 हफ्ते में बहुत बिजी हूं…
सुधा जी: ठीक है…! कम से कम बहू को ही भेज दे…
मां: ठीक है..! मैं साधना से पूछ कर बताता हूं… यह कहकर अंकित फोन रख देता है… सुबह से शाम होती है और फिर शाम से अगली सुबह… पर अंकित का कॉल नहीं आता… इस पर सुधा जी वापस अंकित को कॉल करती है…
अंकित: क्या है मां…? जब देखो तब कॉल कर देती है… क्या बात है…?
सुधा जी: बेटा…! तूने कुछ बताया नहीं कि, बहू कब आ रही है…?
अंकित: वह मां…. साधना चली जाएगी… तो मुझे खाने पीने की दिक्कत हो जाएगी.. वैसे भी मामाजी तो है ही वहां… आप उनसे क्यों नहीं कहती…?
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देखिए मां…! अब हर छोटी-छोटी बातों के लिए हम इतनी दूर से तो नहीं आ सकते ना…? मामा जी तो उसी शहर में रहते हैं, वह थोड़े ही ना मना करेंगे…
सुधा जी और कुछ नहीं कह पाती, बस अपने भरे हुए आंखों से अंकित की बातें सुनती रहती हैं…
फिर सुधा जी ने कभी मदद के लिए, अंकित को कॉल नहीं किया और अंकित भी पूरे दिन में एक बार ही कॉल करता… एक बार ही रिंग करता… सुधा जी उठाए ना उठाएं, उसका दोबारा कॉल नहीं आता… जब दो दिनों तक सुधा जी ने कॉल नहीं उठाया, अंकित ने भी कॉल करना बंद कर दिया… इसी तरह तीन चार महीने गुज़र जाते हैं, पर मां बेटे में कोई बात नहीं होती है..
एक रोज़ सुबह-सुबह अंकित और साधना घर में अचानक ही धमक पड़ते हैं.. सुधा जी उन्हें हैरानी से देख रही थी…
अंकित: मां…! आप हमसे नाराज़ हो क्या..? मां मेरी गलती थी, मुझे समझ आ गया है… माफ कर दीजिए मुझे…
सुधा जी तो सोच रही थीं कि, सच में उनका बेटा अपनी गलती पर पछताकर, हम से माफी मांगने यहां आया है… पर वह बहुत जल्दी सच्चाई से रूबरू होने वाली थी…
सुधा: चलो बेटा…! तुम्हें अपनी गलती तो समझ आई…
अंकित: हां मां…! आ गई…! मां…! अब से कुछ महीनों तक साधना यही रहेगी…
सुधा जी: कुछ महीने पर क्यों…? अभी तो तुम्हारे पापा भी ठीक है…
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अंकित हिचकिचाते हुए…. वह मैं उस दिन ऑफिस गया था… और साधना घर पर चक्कर खाकर गिर गई थी… वह तो शुक्र है मुझे कॉल करने की हालत में थी… वरना उस दिन हमारे बच्चे को कोई नुकसान पहुंच जाता… यहां पर सब एक दूसरे के साथ रहेंगे और साथ देंगे तो, मुझे भी कोई टेंशन नहीं होगी… कम से कम डिलीवरी तो सही से हो जाएगा… आपको तो पता ही है… साधना की मम्मी नहीं है, जो वह वहां जाकर रहे…
यह सारी बातें सुनकर सुधा जी को समझते देर न लगी, कि आज उनका बेटा नहीं, बल्कि एक पति और पिता आया है…
सुधा जी ने आज यह सोच लिया था कि वह अपने बेटे को आईना दिखाएंगी… फिर उन्होंने कहा… अरे बेटा..! हमें भी कहां फुर्सत है..? हम तो इसी हफ्ते तीर्थ के लिए निकलने वाले हैं… उसके बाद फिर दूसरा तीर्थ है और आगे अगले 3 महीने भी कुछ ना कुछ तो पक्का है…
अंकित: पर मां… पापा अभी अभी बीमारी से उठे हैं, उनके लिए इतना घूमना सही नहीं…
सुधा जी: अरे बेटा..! आज तो पापा की बड़ी फिक्र हो रही है…? अभी वैसे वह एकदम तंदुरुस्त है और हमारी उम्र भी तो हो गई है…. कब जाने भगवान का बुलावा आ जाए…? तो सोचा मरने से पहले चारों धाम के दर्शन कर ले…
अंकित: पर मां… आप दादी बनने वाली है और यह भी किसी धाम से कम नहीं… आप के पोते या पोती को आपकी जरूरत है, तो ऐसे में आपका तीर्थ परिवार से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्या..?
सुधा जी: हां… क्योंकि यह मेरे बेटे से ही मैंने सीखा है… अपनी ज़रूरत पहले देखो, बाकी परिवार बाद में… जब मैंने तुझे बहू को यहां भिजवाने की बात कही, तब तो तुझे तेरे खाने-पीने की टेंशन थी… फिर अब जब बहू यहां महीनों रहेगी, तब तू कैसे खाएगा…?
अंकित की बोलती है बिल्कुल बंद थी और वह अब तो सुधा जी से नज़रें भी नहीं मिला पा रहा था…
सुधा जी: बेटा…! मैं तेरी मां हूं, मैं तुझे तकलीफ में नहीं देख सकती, शायद इसलिए मैं आज साधना को रख भी लूं… पर जो तकलीफ तूने उस दिन मुझे दी थी, वह मैं भूल भी नहीं सकती…. तू अगर किसी खुशी के मौके पर नहीं आता तो चलता, पर दुख में..? उस वक्त भी तूने अपना पीठ दिखा दिया..? वक्त कैसा भी हो, अपनों के साथ और सहारे से गुज़र ही जाता है… कल हमें तेरी ज़रूरत थी और आज तुझे हमारी… और परिवार से मदद के लिए गिड़गिड़ाया नहीं जाता… वह तो एक दूसरे की जिम्मेदारी होती है…
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अंकित: माफ कर दीजिए मां..! सच कहा आपने, हम बहुत स्वार्थी हो गए थे और आज भी अपने स्वार्थ से ही यहां आए थे… पर अब आप लोगों से वादा करता हूं, आप लोगों को शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा…
साधना: और मां जी..! अब से आप लोगों को हमारे साथ चलकर ही रहना होगा, ताकि हमारा बच्चा अपने दादा दादी के संस्कार ले, ना कि अपने मम्मी पापा के..
सुधा जी: कहीं इस बार भी स्वार्थ तो नहीं छिपा हैं ना तुम दोनो के मन में..? ऐसे मीठी मीठी बातें करके, दादा-दादी के संस्कार के नाम पर, उन्हें बच्चे की देखभाल के लिए तो नहीं ले जाना चाहते..?
साधना और अंकित हैरानी से सुधा जी को देखने लगे… तभी सुधा जी हंस पड़ती है और कहती है… मजाक कर रही थी और वैसे भी ऐसा हुआ तो, फिर तीर्थ तो है ही…
इस बात सभी हंस पड़ते हैं…
#वक्त
धन्यवाद😊🙏
रोनिता कुंडू