परिणय सूत्र (भाग 2) – डॉ. पारुल अग्रवाल

अपनी पसंद से शादी की बात चित्रा के माता-पिता को बहुत नागवार गुजरी। उन्होंने आनन-फानन में चित्रा के लिए लड़के खोजना शुरू किया। उधर अमन के परिवार को भी चित्रा के पिता जी और बिरादरी के लोगों ने वो मौहल्ला और घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। उनके घर में भी एक बेटी थी इसलिए वो रातों-रात उस जगह को छोड़कर कहीं चले गए। चित्रा के लिए रिश्ते ढूंढने का काम बहुत जोर-शोर से चल रहा था पर किसी रिश्तेदार ने पूरी बिरादरी में उसके और अमन के विषय में अनर्गल बातें नमक मिर्च लगाकर बता दी थीं। किसी तरह बिरादरी में एक लड़का रितेश मिला पर उसके दो छोटे छोटे बच्चे भी थे।

उसकी पहली पत्नी की करोना में मृत्यु हो गई थी। लड़के का व्यवसाय, घर परिवार बहुत अच्छा था। उसकी माताजी की भी आदत बहुत अच्छी थी। चित्रा के माता- पिता को यहां देहज भी नहीं देना पड़ रहा था। सब बातों को देखते हुए चित्रा का विवाह रितेश के साथ तय कर दिया गया। चित्रा इस तरह की शादी के लिए तैयार नहीं थी पर उसके पिताजी ने अपने ज़हर खाने की धमकी देकर उसका मुंह बंद कर दिया। 

अब चित्रा ने सब कुछ वक्त के हाथों छोड़ दिया। इस तरह वो शादी के बाद रितेश के घर आ गई। रितेश के दोनों बच्चे परिधि और निशांत बहुत ही प्यारे थे। मां के प्यार की कमी ने दोनों बच्चों को गुमसुम सा कर दिया था। उन दोनों बच्चों के मासूम चेहरे देखकर चित्रा को अपना गम बहुत कम लगने लगा। वो रितेश की मां के साथ मिलकर उन बच्चों की पसंद और नापसंद जानने की पूरी कोशिश करने लगी। धीरे धीरे दोनों बच्चे उसमें अपनी मां की छवि देखने लगे।

 इधर रितेश से पूछकर चित्रा ने अपनी रुकी हुई पढ़ाई के साथ-साथ बी. एड भी कर लिया था। ज़िंदगी अपनी रफ्तार से चल रही थी। एक रात रितेश अपने व्यवसाय से सबंधित मीटिंग करके वापिस आ रहा था,कब उसकी झपकी लग गई और उसकी कार सड़क के किनारे खड़े ट्रक में जा घुसी। उसकी सांसों की डोर वहीं थम गई। चित्रा को जब तक पता चला तब तक उसका सब लूट चुका था। रितेश ने अपने व्यवसाय और बैंक की कोई भी जानकारी चित्रा के साथ साझा नहीं की थी।

चित्रा को तो अफसोस मानने का भी समय नहीं मिला था। रितेश की मृत्यु के चार दिन बाद ही लेनदार लोगों की लाइन घर के आगे लग गई थी। चित्रा को तो व्यापार के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। किसी तरह रितेश के दोस्तों की मदद से कंपनी के शेयर बेचकर चित्रा ने सबका कर्ज़ चुकाया। ये अलग बात थी कि अगर किसी ने रितेश से पैसे लिए थे तो वो चित्रा के सामने नहीं आया। अपने जवान बेटे की मौत से रितेश की मां तो पूरी तरह टूट गई थी पर उन्होंने ऐसे समय में अपने गांव में जो ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा था उसको बेचकर चित्रा और बच्चों की मदद की। 




चित्रा को समझ आ गया था कि हाथ पर हाथ रखकर काम नहीं चलेगा। उसने बीएड तो किया हुआ ही था। एक स्कूल में उसको नौकरी मिल गई। शाम को भी ट्यूशन पढ़ाने लगी। इस तरह दोनों बच्चों को उसने अपने बलबूते पर पालना शुरू किया। धीरे-धीरे दोनों बच्चे भी समझदार हो गए थे। दोनों पढ़ाई में भी बहुत अच्छे थे। निशांत को एमबीए करने के बाद यूएस में अच्छे पैकेज पर जॉब मिल गई थी। परिधि का भी मास्टर्स के लिए यूएस में चयन हो गया था।

चित्रा जब परिधि को एयरपोर्ट पर छोड़ने गई तब किसी ने उसको पीछे से पुकारा। उसने मुड़कर देखा तो अमन था, जिसके साथ परिधि से उम्र में लगभग दो तीन साल छोटी लड़की भी थी। इतने सालों के अंतराल के बाद भी चित्रा और अमन की शक्ल में ज्यादा बदलाव नहीं था इसलिए दोनों एक दूसरे को आराम से पहचान गए। अमन भी उस लड़की को एयरपोर्ट पर छोड़ने आया था। चित्रा को इस बात से बहुत सुकून मिला कि वो भी यूएस में परिधि वाले विश्विद्यालय से ही पढ़ाई करने जा रही है। विदेश में कोई अपने ही देश के दो लोग मिल जाएं तो वैसे ही सोने पर सुहागा हो जाता है। इस तरह चित्रा और अमन ने दोनों बच्चियों को यूएस के लिए विदा किया। 

अब चित्रा और अमन अकेले रह गए। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कहां से बात शुरू करें तब अमन ने ही पास एक कॉफी साथ पीने का प्रस्ताव रखा।अब चित्रा ने अमन से उसकी पत्नी के विषय में पूछा क्योंकि उसको लगा कि वो भी उसकी तरह अपनी बेटी को छोड़ने एअरपोर्ट आया होगा। उसकी बात सुनकर अमन ने कहा कि तुम्हारे साथ ही शादी का फ़ैसला लेने के बाद और किसी लड़की से शादी करना मेरे लिए संभव नहीं था।ये तो मेरी बहन मीना की बेटी पीहू थी।

मेरा बैंक की परीक्षा में चयन हो गया था। ट्रेनिंग से वापिस आया,उसके कुछ दिन बाद ही मीना और उसके पति एक कार दुर्घटना में चल बसे थे इसलिए मैंने ही इसको एक बेटी की तरह से पाला। इस तरह दोनों ने इस तरह बहुत सारी बातें साझा की। चित्रा को भी बहुत दिनों के बाद अपने मन की बात कहने के लिए किसी दोस्त का सानिध्य प्राप्त हुआ था। अब तक तो चित्रा बिना कुछ कहे नियति के अनुसार चलते हुए सारे फर्ज़ पूरे करती जा रही थी। 




उधर दोनों लड़कियां परिधि और पीहू भी सकुशल यूएस पहुंच गई थी और साथ साथ ही रहने लगी थी। यूएस के दूसरे शहर में ही निशांत का भी ऑफिस था। सप्ताहांत पर वो भी उन दोनों के पास पहुंच जाता। तीनों बच्चे भाई बहन की तरह एक दूसरे के साथ दे रहे थे। तीनों के मन में एक अलग खिचड़ी भी पक रही थी जिससे चित्रा और अमन दोनों अनजान थे।

आज जब यूएस के समयानुसार निशांत का फोन आया तब उसने चित्रा से कहा कि मां मैं आपसे कुछ मांगना चाहता हूं आशा है आप इंकार नहीं करेंगी।चित्रा ने शादी के बाद से दोनों को बिल्कुल अपने कोख से जन्में बच्चों की तरह पाला था।उसने दोनों की हर इच्छा पूर्ण की थी। आज जब निशांत ने इस तरह से कहा उसको आश्चर्य हुआ।अब निशांत ने आगे कहा मां आप और अमन अंकल शादी कर लो। आप हम लोगों के लिए बहुत त्याग कर चुकी हो।

हम दोनों को आप व्यवस्थित कर चुकी हो। अब उम्र के इस मुकाम पर आपको भी एक साथी की जरूरत है। वो कुछ बोलती इससे पहले ही निशांत ने कहा कि उसकी अमन अंकल से भी बात हो गई है,बस आपकी हां का इंतजार है। इसके ये कहते ही परिधि और पीहू भी पीछे से निशांत की हां में हां मिलाने लगी। इस तरह जो काम एक समय पर चित्रा के माता पिता जातपात की रूढ़िवादिता में पड़कर नहीं कर पाए थे वो उसके बच्चों ने कर दिखाया।

वो यही सब सोच रही थी तभी निशांत और दोनों शैतानों का फोन था, कल की शादी की तैयारी के लिए बहुत उत्सुक थे।साथ साथ कह रहे थे कि वो वीडियो कॉल के द्वारा इस शादी की पल पल की खबर लेते रहेंगे। इस तरह चित्रा और अमन के परिणय सूत्र में बंधने की बेला आखिर आ ही गई थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।कई बार जिंदगी अप्रयाशित मोड़ ले लेती है जिससे हम सब भी अनजान होते हैं।

#जन्मोत्सव

चतुर्थ कहानी

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

2 thoughts on “परिणय सूत्र (भाग 2) – डॉ. पारुल अग्रवाल”

  1. बहुत अच्छी रोचक, जीवन से जुडी कहानिया है ,मै नियमित रूप से आपकी कहानिया पढती हू

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