मेरी माँ बनने की कोशिश मत करो …. सविता गोयल 

”  ओह मैं भूल कैसे गई कल निर्जला एकादशी  है  !!!  रश्मि के ससुराल फल मिठाईयाँ और शगुन भेजना है  …..। सुनिए… आप अभी ही जाकर सारा सामान ले आईये  सुबह देर हो जाएगी ।  ,,

” ओ हो मीरा… तुम बेकार में इतनी टेंशन लेती हो और साथ साथ मुझे भी देती हो  । ये छोटे- मोटे त्यौहार तो यूँ ही आते रहते हैं…. ये रोज रोज मुझे रश्मि के ससुराल जाना अच्छा नहीं लगता…।,,

  ” आप समझते नहीं हैं.. जब माँ जी थीं तो हमेशा ये सब शगुन रश्मि के ससुराल भेजती थीं… । उनके बाद यदि हमने ये सब छोड़ दिया तो रश्मि को बुरा लगेगा कि माँ के बाद मुझे कोई याद ही नहीं करता  … । अब आप बहस मत कीजिये  जल्दी से बाजार जाकर सामान ले आईये । ,,

  मीरा के कहने पर आफिस से आते ही अरुण वापस बाजार निकल गया…… उसे भी पता था कि यदि कोई कमी रह गई तो रश्मि सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.. ।

मीरा की सास रूकमणी जी को गुजरे दो साल हो गए थे  ….  उनकी छोटी और लाडली बेटी थी रश्मि जिसकी शादी को पांच साल हो चुके थे…… । हर छोटे बड़े त्यौहार पर रूकमणी जी रश्मि के ससुराल शगुन भिजवाना नहीं भूलती थीं ….।इसके लिए वो अपनी बहू मीरा पर भी विश्वास नहीं करती थीं..खुद ही सारी तैयारी करती थीं ताकि बेटी का ससुराल में ओहदा बना रहे…।

  रश्मि थी भी थोड़ी नकचढ़ी हमेशा अपनी मनमानी करने वाली… हर सामान अच्छे से अच्छा और उसकी पसंद का ही होना चाहिए था । थोड़ी भी कमी रह जाती तो सारे मायके को सर पर उठा लेती थी… हमेशा कहती, ” एक ही तो बेटी हूँ इस घर की इसलिए मेरा भी हक बनता है सब पर । ,,




अपने माता- पिता और भाई  सबकी लाडली थी इसलिए उसकी इन बातों का कोई बुरा नहीं मानता था  लेकिन उसकी ये आदत ससुराल वालों पर भारी पड़ती थी ।

  एक रात अचानक ही रूकमणी जी की तबियत बिगड़ गई । उनका बचना मुश्किल लग रहा था   …।

  उन्होंने अपनी बहू मीरा को पास बुलाकर कहा, ” बहू…… , लगता है मेरा समय पूरा हो गया है…..। तुझे एक जिम्मेदारी दे रही हूँ…. रश्मि को मां की कमी महसूस मत होने देना… । …हाँ उसमें थोड़ा बचपना है… लेकिन है तो हम सबकी लाडली…. जरूरत पड़े तो प्यार से समझा भी देना …… ।,, ये कहते – कहते उनकी सांसे उखड़ने लगीं । सुबह का सूरज भी उन्होंने नहीं देखा ।

  मीरा ने अपनी सासु माँ की आखिरी इच्छा समझते हुए उनकी बातों का पूरा मान रखा…. । वो रश्मि को कभी कोई कमी नहीं रखती थी….।  हमेशा अच्छे से अच्छी चीजें उसके लिए लाती लेकिन फिर भी रश्मि कोई ना कोई कमी निकाल ही देती.. ऊपर से ताने देने में भी पीछे नहीं रहती थी कि माँ होती तो अलग ही बात थी…..।

मीरा फिर भी उसकी इन बातों को नजरअंदाज करके अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती रहती …।

अपने तेज स्वभाव के कारण रश्मि की ससुराल वालों से कम ही बनती थी। … रश्मि के पति अपने माता-  पिता का इकलौता बेटा था  ।  ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी फिर भी रश्मि को अपने सास ससुर का साथ रहना बर्दाश्त नहीं होता था…।  वो उनसे अलग होना चाहती थी  इसी बात को लेकर अब आए दिन रश्मि के ससुराल में कहा- सुनी होने लगी थी ।




बात रश्मि के मायके भी पहूंच गई ।  मीरा ने अपना फर्ज समझकर रश्मि को समझाते हुए कहा, ” देखो रश्मि…, माता पिता का अपने बच्चों पर पहला हक होता है । अब इस उम्र में उन्हें अकेला छोड़कर तुम लोग अलग रहोगे तो वो किसके सहारे जियेंगे????  छोटी छोटी बातों पर यूँ झगड़ा करना तुम्हें शोभा नहीं देता….।  ,,

मीरा के इतना कहते ही रश्मि भड़क गई….  उसने गुस्से में आकर मीरा से कहा, ” भाभी… आपको कुछ नहीं पता मैं कैसे रहती हूँ ।  आपको माँ जैसी अच्छी सास मिल गई थी इसलिए आप ऐसा बोल रही हैं  । … और हाँ….मैं अपना भला बुरा जानती हूँ  …प्लीज आप मेरी माँ बनने की कोशिश मत कीजिये ….. ।,,

रश्मि के मुंह से ये शब्द सुनकर मीरा सन्न रह गई…। उसे लगता था कि अपनी छोटी ननद के प्रति यदि वो अपना फर्ज निभा सकती है तो उसकी गलती पर उसे समझने का हक भी  शायद उसे है … लेकिन वो गलत थी…..। आज उसे सच में लग रहा था कि एक भाभी कितना भी कर ले लेकिन वो माँ की जगह कभी नहीं ले सकती…।

  मीरा खुद को सम्भालते हुए बोली.., ” तुमने सच कहा रश्मि…. मैं तुम्हारी माँ नहीं हूँ.. लेकिन मैं तो बस माँ जी को दिया वादा निभाने की कोशिश कर रही थी… माँ बनने की नहीं…… ।  वैसे ठीक ही हुआ जो तुमने मुझे मेरी जगह बता दी  ….. आगे से मैं अपना वादा तो जरूर निभाऊंगी लेकिन भाभी बनकर…..। ,,

  इसके बाद मीरा से कुछ बोला नहीं गया और उसने फोन रख दिया….। लेकिन अब वो खुद को हल्का महसूस कर रही थी  ….. । रश्मि ने अपने कड़वे स्वभाव के कारण एक बार फिर अपनी माँ को खो दिया ….. ।

दोस्तों, रिश्ते दोनों तरफ से निभाए जाते हैं एक तरफ से नहीं…. यदि अपना समझकर हमारे प्रति कोई अपने कर्तव्य निभाता है तो थोड़ा हक जताना भी उनका हक होता है…. रिश्ते मन के होते हैं नाम के नहीं…  ।

मेरी ये रचना आपको कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं…  इंतजार में…

आपकी सखी…. ।

सविता गोयल 

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1 thought on “मेरी माँ बनने की कोशिश मत करो …. सविता गोयल ”

  1. Maine dekha hai aajkal ladhkiyan bahut arrogant ho gayee hain. Maa ke baad Bhabhi se banaker rakhni chahiye..aur zindagi mey kya rakha hai otherwise jo hai vo bhi haath se chhoot jaayega.

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