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मैं इस बार मायके नहीं आऊंगी.!! – अर्चना खंडेलवाल  

निधि जल्दी से नीचे आओ, तुम्हारा फोन बज रहा है, निधि दौड़कर आती है, मां का फोन था, निधि को और भी काम थे, थोड़ी देर बाद बात करती हूं ये कहकर निधि अपने काम में लग गई,मनन का टिफिन बनाना था, उसके ऑफिस का समय हो रहा था, शिवम को भी स्कूल जाना था, सारा काम निपटाकर निधि ने मां को फोन लगाया।

अब मिली है तुझे फुर्सत, अपनी मां से दो घड़ी बात करने की फुर्सत नहीं है।

मां, आप नाराज मत हो, सुबह बहुत काम रहता है, अभी बात कर लेती हूं फिर से काम पर लगना है, सासू मां भी मन्दिर से आने वाली है। आप बताइये क्या हाल है? निधि ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

हाल तो ठीक नहीं है, तेरी भाभी मायके जा रही हैं,और मुझसे अब काम नहीं होता है, मैं थक जाती हूं, इतना बड़ा घर और सबका खाना अब मुझसे नहीं बनता है।

तू भी थोड़े दिनों के लिए आजा, मेरा भी मन लग जायेगा, अपने बाबूजी से भी मिल लेना, शिवम की भी गर्मी की छुट्टियां है, वो भी तो ननिहाल आयेगा।

ठीक है, मैं अपनी सास से पूछकर बताती हूं।

निधि की सासू मां गायत्री देवी मंदिर से आ गई थीं, निधि चाय दे दो, निधि ने फटाफट चाय दे दी। मुझे कुछ दिनों के लिए मायके जाना है। हां तो चली जाओ, अच्छा है दो दिन बाद चली जाओ, तब शिवम की भी गर्मी की छुट्टियां शुरू हो जायेगी। गायत्री देवी ने प्यार से कहा।

वो निधि को अपनी बेटी के जैसे ही मानती थीं, निधि के कोई ननद नहीं थीं और निधि घर में अकेली बहू थी, वो गायत्री देवी और ससुर जी की लाड़ली ही बनकर रहती थी।




निधि ने जाने की तैयारी शुरू कर दी, अपने और शिवम के कपड़े रख लिये, ससुराल में उसे सब तरह के कपड़े पहनने की आजादी थी पर मायके में वो हमेशा सूट में ही रहती थी, इसलिए अलग से सूट भी जमा लियें।

बाबूजी का बहू बेटी का वेस्टर्न कपड़े पहनना पसंद नहीं था। इधर ससुराल वाले आधुनिक और खुले विचारों के थे। निधि का ससुराल में बड़ा मन लगता था वो बार-बार मायके जाने की जिद नहीं करती थी क्योंकि वो ससुराल में भी बहुत ही खुश थी। मां जब ज्यादा ही जोर देकर बुलाती तो वो जाती थी, मां भी उसे तब ही बुलाती थी जब उसकी भाभी मायके चली जाती थी, निधि का मायके आकर रहना उसकी भाभी को पसंद नहीं था, ना ही वो निधि को मान सम्मान देती थी, ना ही ढंग से बात करती थी। निधि भी मां का मन रखने के लिए दो-चार दिन रहकर आ जाती थी।

जिस दिन निधि मायके सुबह जाने वाली होती है, उसी दिन उसकी गायत्री देवी बाथरूम में फिसल जाती है, और उनके पैर में भयंकर दर्द होता है, निधि घबरा जाती है, सब लोग उन्हें अस्तपताल लेकर जाते हैं। निधि भी अपनी मां को फोन कर देती है कि मैं इस बार मायके नहीं आ पाऊंगी, क्योंकि मम्मी जी बाथरूम में गिर गई है और उन्हें चोट आई है।

निधि की मां कहती हैं, निधि ज्यादा चोट नहीं होगी, तू मायके नहीं आ पाये, इसलिए बहाना बना रही हैं, ताकि उन्हें काम ना करना पड़े घर ना संभालना पड़े।

नहीं मां, मम्मी जी ऐसी नहीं है, और उन्हें सचमुच चोट आई है, मैं मानती हूं मां की जगह कोई ले नहीं सकता है पर उन्होंने मुझे मां से बढ़कर मां जैसा ही प्यार दिया है, मेरे दुःख और तकलीफ में हमेशा मेरा साथ दिया है, मम्मी जी ने डिलेवरी में मुझे पूरा सवा महीने आराम करवाया है, वो मेरी हर पसंद और नापसंद का ध्यान रखती है तो फिर मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं कि अपनी मां को दर्द में छोड़कर आ जाऊं, ये मुझसे नहीं होगा। आप भी अपनी सोच बदलिए, हर सास बुरी नहीं होती है। मम्मी जी के तो कोई बेटी भी नहीं है, उन्होंने मुझे ही अपनी बेटी माना है, तो मैं अपनी मां को परेशानी में छोड़कर नहीं आ सकती हूं।

अस्तपताल से मनन का फोन आया, मम्मी के पैर में फ्रेक्चर हो गया और डॉ ने आराम को बोला है।

घर आते ही निधि की गायत्री देवी ने कहा, मेरी वजह से तुम्हारी छुट्टियां खराब हो गई, तुम अपने मायके नहीं जा पाई इसका मुझे बड़ा खेद है।

मम्मी जी, मेरे लिए आपकी सेवा पहले है, आपने मुझे अपनी बेटी माना है , ये बेटी अपनी मां के साथ ही छुट्टियां बिताएंगी। शिवम और निधि  गायत्री देवी का बड़ा ध्यान रखते थे। निधि घर का और खाने-पीने का काम संभालती थी तो शिवम और गायत्री देवी के पति, तीनों मिलकर ताश, लूडो और शतरंज खेलते थे ताकि उनका समय बीत जाये।  दोनों के साथ और पास रहने से गायत्री देवी का मन भी लगा रहा। निधि की सेवा और पोते शिवम के साथ से गायत्री देवी जल्दी ठीक हो गई।

पाठकों, सास अगर बहू को बेटी मानें तो फिर बहू भी अपने फर्ज से कभी पीछे नहीं हटती है।

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धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल ✍️

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

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