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रिश्ते – कंचन श्रीवास्तव 

सम्मान एक ऐसा शब्द है जिसपे सबका समान अधिकार है,फिर  पक्षपात क्यों? जबकि इंसान वो भी है और हम भी , अरे भाई उसके कम पढ़ाई की तो उसे उसी लायक काम भी ढूंढ़ना पड़ा और हमने ज्यादा तो हम किसी कंपनी, स्कूल या फैक्ट्री या कह लो सरकारी मुलाजिम है । जैसे की पापा, पर है तो हम भी नौकर ही ना फिर इस तरह झिड़क कर बात करना ,बात बात पर छुड़वा देने की धमकी देना,न आने पर पैसे काट लेना,वगैरा वगैरा और न जाने क्या क्या? ।

पर मम्मी कभी खुद को उसकी जगह रख कर देखती है कि अगर वो होती तो उन्हें क्या गुजरती।

उनके आफिस के लोग और बॉस बहुत अच्छे हैं वो ही बताती हैं,पापा भी कहते हैं। मेरा प्रिंसिपल बहुत सहृदय है।जो भी कहना होता है बहुत प्यार से समझा के कहता है।

यहां तक कि भैया भी बताते हैं फैक्ट्री में सब बहुत एक दूसरे का सहयोग करते हैं तभी तो फैक्ट्री अच्छी चल रही है।

और सही भी है कहते हैं ना कि ‘ जहां सुमति तहां सम्पत आना जहां कुमति तहां विपत्ति अजाना ‘। अर्थात बरकत और खुशहाली तो सह सहमति में ही है और एक दूसरे को समझने में ,  ये जहां नहीं है सुख शान्ति कोसों दूर रहती है।

सही भी है तभी तो आज दिन हमारे घर के नौकर बदलते रहते हैं।

आखिर वही कोमल आंटी के यहां देखो कितने पुराने पुराने नौकर है कि बाबा और काका का जर्दा पा गए ।

और हमारे यहां कोई टिकता ही नहीं जब टिकता नहीं तो रिश्ते कायम होने का सवाल ही नहीं उठता।

सभी को नाम से बुलाया जाता है और कोई पूछे तो नाम ही बताते हैं।

पर ये ग़लत है,अपने मन में ही सैकड़ों सवालों का राय मसवरा करते आखिर सुबह सुबह रसोई में बिखरे बर्तन को देखके मम्मी के पास सुधा पहुंच ही गई।




क्या हुआ मम्मी सुबह सुबह किससे भड़क रही हो सारा घर सिर पे उठा रखा है , सब गहरी नींद सो रहे हैं ,उठ जाएंगे।

दादी बाबा,जो दवाइयों के आदी हैं उन्हें बिना नींद की दवा खाए नींद नहीं आती।

भैया जो देर रात ओवर टाइम करके फैक्ट्री से आता है पापा भी ट्यूशन करके थके मांदे घर आते हैं और मैं अभी तेज बुखार से तप रही थी तो घंटे भर पहले सोई थी और तुम्हारे बड़बड़ से उठ गई।

तुम आखिर थोड़ा तो धैर्य रखा करो।सुनीता आ रही होगी।

जाने क्यों इतना परेशान हो जाती हो अरे अभी तो सुबह हुई है आ रही होंगी।

फिर तुम तो उनसे बिना बात के भी मीन मेख निकाल कर डांटती रहती हो।

तुम ये बताओ तुम सब लोग अपने अपने बॉस की तारीफ करते हो क्यों?

क्योंकि उन्हें काम लेना आता है और सबसे बड़ी बात वो इंसान को इंसान समझते हैं ,नौकर और मालिक का फर्क नहीं करते ।

फिर तुम ऐसा क्यों नहीं करती,आखिर क्यों भूल जाती हो कि कोई भी व्यक्ति पहले इंसान हैं फिर कुछ और ।

और सबसे बड़ी बात नौकर तो सभी है कोई फैक्ट्री में तो कोई आफिस में और कोई स्कूल में और कोई घर में फर्क सिर्फ और सिर्फ काम का है।

इसलिए किसी पर बरसने या झिड़कने का अधिकार किसी को नहीं है।

क्योंकि मूल भूत जरूरतों के लिए हम भी कमा रहे हैं और वो भी बस फर्क काम करने का है।

इसलिए भड़कना बंद करो।और प्रेम से काम लेना सीखो,

जानती हो इसी कारण हमारे यहां कोई काम वाली नहीं टिकती, आखिर सामने वाली आंटी के यहां भी तो नौकर है  उन्हें देखो तो एक रिश्ते मिले हैं दीदी,बूआ और काकी और एक  हमारे यहां नाम से बुलाया जाता है।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरजू

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