माँ बाप का अपमान कैसे सहूं – संगीता अग्रवाल 

” बहु आ गई… बहु आ गई.. ” किसी ने आवाज़ दी और नई बहु के स्वागत की तैयारी होने लगी!

बहु के आगमन के साथ ही उसके साथ आये सामान को नापा तोला जाने लगा.

” बहु सोने का सेट तो बड़ा हलका बनवाया माँ ने तुम्हारी ” ये बुआ सास की आवाज़ थी!

” और तो और ये पायल भी कितनी हल्की है जीजी ” ताई सास ने सुर मे सुर मिलाया!

” हाँ सही कहा जीजी हमारे जेवर देखो कितने भारी है.. लुट गए हम तो ” ये सासु माँ की आवाज़ थी!

दिशा ( नई बहु) जिसे आये अभी 4 घंटे हुए सोच रही थी ऐसे लोगों के लिए माँ बाबा इतने महीनों से परेशान थे की सब समधियों की पसंद का होना चाहिए. उसकी आँखों मे आंसू थे.

तभी उसके कानों मे ननद की आवाज़ पड़ी.

” मम्मी देखो ना मेरी साड़ी कितनी हलकी है जबकि भाभी अपने लिए कितनी भारी भारी महंगी साडियां लाई हैं.



” अरी तो तुझे जो पसंद वो साड़ी ले लियो ननद भाभी का कोई बांटा है क्या ” बुआ सास बोली!

दिशा सोच रही थी ननद और सास की साड़ी तो माँ ने सबसे महंगी ली थी की बेटी को तो बाद मे भी दिला देंगे.. उसे याद आ रहा था बाबा का ओवर टाइम लगाना.. माँ का घर के खर्चे बचाना जिससे उनकी लाडली को ससुराल मे सुनना ना पड़े फिर भी कोई खुश नही.. क्या कोई ससुराल खुश नही होता ?

मन तो था दिशा का जवाब दे दे पर माँ बाप के संस्कार आड़े आ रहे थे!

” सुनो जी ये भाभी के यहाँ से आया है आपके लिए जोड़ा.” ननद अपने पति से बोली!

” ये क्या है ऐसे कपड़े पहनता हूँ मैं मेरी इज्जत नही क्या कोई.. ये रखिये अपना फूटपाथ से 100 रुपए का खरीदा जोड़ा.. ” नंदोई ने जोड़ा दिशा के सामने फ़ेंक दिया!

“माफ़ कीजियेगा जीजाजी छोटा मुँह बड़ी बात होगी… माना मेरे माता पिता ने लड़की दी है अपनी पर उस लड़की को लेने आप लोग खुद चल कर आये थे… और मेरे माँ बाप ने कन्या का दान दिया है आपको और दान लेने वाला इतनी अकड़ दिखाये वो ठीक नही… अव्वल तो  ये जोड़ा 100 रुपए का है नही.. पर अगर हो भी तो उन्होंने आपको दिया ही है लिया नही कुछ… ये गहने ये साडियां और बाकी सामान उन्होंने बेटी के साथ साथ आप लोग को दान किया है.. और दान देने वाला हमेशा बड़ा होता ये तो जानते होंगे आप..! ” दिशा के सब्र का बांध आखिर टूट ही गया..आखिर कब तक सहती वो अपने माँ बाप के खून पसीने से जुटाये सामान का अपमान। नई बहू का इतना बोलना बवाल कर गया। सभी खुसर फुसर करने लगे।

” बहु बोलने की तमीज है या नही। माँ बाप ने मर्यादा और संस्कार सिखाये है या नही। घर के जमाई है ये इनसे ऐसे कैसे बोल सकती तुम… ” सास ने डपटते हुए कहा!

” माँ जी कुछ गलत तो नही कहा मैने आप भी बेटी की माँ है और जीजा जी आप खुद दो बेटियों के पिता है इतना कुछ मेरे माँ बाप को बोलने से पहले एक बार अपनी बेटी को मेरी जगह और खुद को मेरे पिता की जगह रख कर देखियेगा… शायद मैं गलत ना लगूँ तब.. मेरे माँ बाप ने मर्यादा और संस्कार के साथ दूसरे का सम्मान करने की शिक्षा भी दी है भले वो कोई भी हो। यहाँ मेरे माँ बाप का अपमान हो रहा मैं कैसे चुप रह सकती हूँ । ” दिशा लगभग रो दी. कहने को दिशा बोल गई पर आने वाले तूफान को सोच थोड़ा घबरा भी रही थी वो ।कैसी विडंबना होती है ना एक लड़की की माँ बाप को छोड़ कर ससुराल आती है और ससुराल मे आ खुद तो मान पाती ही नही माँ बाप का अपमान भी सहती है। क्या शादी सिर्फ रूपए, पैसे , जेवर कपड़ो के लिए की जाती है।



“माँ भाभी ने तो आते ही हमारा अपमान करना शुरू कर दिया.. हम नही रहेंगे यहाँ.. चलो जी.” तभी ननद चिल्लाते हुए बोली!

” नही रिचा रुको… भाभी ने कुछ गलत नही कहा.. कल को हमारी बेटी को ऐसे ही उसके ससुराल वाले सुनाएँ तो मैं तो बिल्कुल सहन नही करूँगा ये…… मुझे माफ़ करना भाभी सच मे पिता अपनी बेटी के लिए सब अच्छा ही करता है वो तो ससुराल वाले ही है जो कमी निकालने मे रहते है। ” नंदोई जी हाथ जोड़ते हुए बोले!

” नही जीजाजी माफ़ी तो मैं मांगती हूँ जो इतना कुछ बोल गई.. पर माँ बाप का अपमान भी नही सह सकी… आप मेरे बड़े भाई की तरह है.. ” ये बोल दिशा ने नंदोई के पैर छू लिए.

” हमेशा खुश रहो.. ” नंदोई जी ने दिशा के पीहर से आया जोड़ा उठा माथे से लगा लिया!

वहाँ बैठे हर शख्स की आँख मे आँसू थे.. क्योंकि हर कोई कही ना कही बेटी वाला था तो सबको एहसास हो गया की वो कितना गलत कर रहे थे…

दिशा को ये सुकून था की कम से कम अब कोई उसके माँ बाप का अपमान तो नही करेगा!

दोस्तों माना ये कहानी है.. पर कहानी के माध्यम से ही सही हम कुछ बदलाव तो ला सकते समाज़ मे… ये मेरी सोच है…

कैसी लगी आपको कहानी.. आपके विचार जानने की उत्सुकता रहेगी!

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

#मर्यादा 

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