क्या सच मे पुरुष कठोर होते है ? – संगीता अग्रवाल 

” मम्मी ये पायल कितनी सुंदर है ना !” आठ साल की टिया माँ की अलमारी से एक पायल निकाल बोली।

” ये पायल मुझे तेरी नानी ने दी थी और अगर तुझे पसंद है तो तू बड़ी होगी तो तुझे दे दूँगी..खुश अब !” टिया की माँ नैना हंस कर बोली।

” क्या बाते हो रही है दोनो माँ बेटी मे !” तभी टिया के पिता तरुण ऑफिस से आ बोले। 

” पापा देखो मम्मी बोल रही है ये पायल मुझे देंगी जब मैं बड़ी हो जाउंगी !” टिया खुश हो पायल दिखाती हुई बोली।

” बेटा ये पायल माँ को दे दे जब तू बड़ी होगी तेरी शादी होगी तब हम तेरी शादी बहुत धूमधाम से करेंगे और जो तुझे पसंद होगा सब लाऊंगा मैं इससे भी अच्छी पायल गहने सब । मेरी बेटी की शादी मे कोई कमी नही होने दूंगा मैं !” तरुण बेटी को प्यार करता हुआ बोला । 

” सच्ची पापा ..जो मांगूंगी सब लाओगे आप !” नन्ही टिया जो शादी का मतलब नही जानती थी खुश होते हुए बोली।

” और नही तो क्या मेंरी लाडली बेटी है तू !” तरुण बेटी का माथा चूमता बोला।

” बस कीजिये अभी बहुत समय है बेटी की शादी मे अभी से ये बाते करके एक माँ के दिल को ना रुलाइये ।” नैना नम आँखों से बोली।

” मेरी प्यारी पत्नी जी हर बेटी को ससुराल जाना होता है और हर माँ बाप इसके लिए उसके जन्म से ही तैयारी शुरु कर देते है । और इसमे आँख भिगोने की क्या बात है ये तो सदियों से होता आ रहा है !” तरुण नैना के पास बैठता हुआ बोला।

” आप पुरुष है ना इसलिए एक माँ की भावनाओं को नही समझ सकते । बेटी के दूसरे घर जाने की बात से ही वो तड़प उठती है ।” नैना बोली। 

” पुरुष है तो क्या हमें अपनी बेटी से प्यार नही …चलो तुम मेरे लिए चाय बना दो तब तक मैं अपनी गुड़िया को आइसक्रीम दिला लाऊँ !” तरुण बात खत्म करते हुए बोला।

” ये आइसक्रीम !” नन्ही टिया खुशी से उछल पड़ी।

वक़्त बीतता गया और वो समय भी आ गया जब टिया की बारात आई । तरुण भाग भाग् कर सब काम कर रहा था क्योकि एक पिता था वो उसे इस वक़्त बस इस बात की फ़िक्र थी कि कोई कमी ना रह जाये , उसकी बेटी को ससुराल मे कोई ताना ना सुनना पड़े।  जबकि नैना रह रह कर रोने लगती उसके लिए बेटी को विदा करना ही मुश्किल हो रहा था।

” नैना क्यो दिल जला रही हो अपना खुद को सम्भालो तुम। तुम्हारे कारण टिया भी  परेशान है !” तरुण नैना के पास आ उसे पानी देता हुआ बोला। 

” आप तो बस रहने दीजिये बिटिया की विदाई होने वाली है और मैं आंसू भी ना बहाऊं कठोर हो जाऊं तुम्हारी तरह पर एक माँ कैसे कठोर हो सकती है !” रोते हुए नैना बोली।

” नैना अभी हमें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है बिटिया के विवाह की हम कमजोर पड़ जाएंगे तो काम कौन संभालेगा सभी । हमें सब कुछ अच्छा करना है तो पहले खुद को संभालना होगा !” तरुण ने उसे समझाया।

” जाइये आप काम कीजिये आपको बस उसी की फ़िक्र है सब पुरुष होते ही कठोर है उन्हे दर्द होता ही नही शायद बिटिया विदा हो रही उसका दर्द नही !” नैना ये बोल वहाँ से उठकर चल दी । तरुण भी कुछ बोलने की जगह खाने के स्टाल की तरफ बढ़ गया जहाँ बाराती खाना खा रहे थे। 

और अंततः बिलखती हुई नैना ने बेटी को विदा किया आँख तो तरुण की भी नम थी पर उसको बेटी की फ़िक्र थी इसलिए उसने खुद को संभाले रखा !

बेटी के विदा होने बाद नैना तो बैठी बैठी रो रही थी और उसकी बहने उसे सम्भाल रही थी किन्तु तरुण जल्दी जल्दी सबका हिसाब निपटा रहा था। 

” इन पुरुषो का सही है इनमे भावनाये जो नही होती बेटी को विदा करके भी कितने शांत होते है बस इन्हे फ़िक्र होती है अपनी इज्जत की इसलिए सब काम परफेक्ट चाहिए उसमे ही लगे रहते है ये।  एक हम औरते है कि बेटी की जुदाई मे कुछ करने का मन ही नही करता !” नैना की बहन बोली जिसका सभी औरतों ने समर्थन किया। 

ज्यादातर मेहमानों के विदा होने पर नैना अपने कमरे मे आ गई और बेटी की तस्वीर निहारने लगी । काफी देर तक तरुण नही आये तो नैना को बड़ा अजीब लगा क्योकि सब काम लगभग खत्म हो गये थे तो अब तरुण को आराम करने आ जाना चाहिए था। 

” तरुण …तरुण कहाँ है आप ?” अपने कमरे से निकल नैना तरुण को पुकारती सारे घर मे देख रही थी । तभी बेटी के कमरे के बाहर से गुजरते हुए उसे सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी ।

” तरुण आप यहाँ है और मैने आपको सारे घर मे ढूंढ लिया …आप रो रहे है !” नैना कमरे के अंदर आते हुए बोली।

” नैना मेरी लाडो चली गई विदा होकर । कभी नन्ही सी को इन हाथो मे लिया था मैने अब इन्ही हाथों से विदा कर दिया उसे । हर वक़्त मेरे आगे पीछे घूमने वाली अब मुझे नज़र भी नही आएगी कैसे रहूंगा मैं उसके बिन नैना ये बेटियां इतनी जल्दी बड़ी क्यो हो जाती है क्यो ये माँ बाप को छोड़ चली जाती है क्यो आखिर क्यो ?” ये बोल तरुण नैना की गोद मे सिर रख फूट फूट कर रो दिया । नैना उसे यूँ बच्चो की तरह रोता देख हैरान थी । 

” क्या ये वही इंसान है जो अभी थोड़ी देर पहले तक चेहरे पर कठोरता लिए भाग भाग कर सब काम निपटा रहा था जिसने बेटी को भी विदा होने से पहले बस दो पल को गले लगाया था …कौन कहता है पुरुष कठोर दिल होते है वो तो शायद बेटियों के मामले मे माँ से भी ज्यादा नर्म दिल होते है बस अपनी जिम्मेदारियों को निभाने मे वो जता नही पाते जबकि औरत बात बात पर रो देती है । इसलिए ही कई बार माँ को ऊंचा दर्जा दे पिता को कठोर बोल उसके त्याग को कम कर दिया जाता है।” नैना तरुण के बालो मे हाथ फेरती मन ही मन सोच रही थी साथ ही उसे अपनी सोच पर थोड़ा शर्मिंदगी भी हो रही थी।

माँ रोकर औलाद के लिए फ़िक्र जता जाती है

पिता जिम्मेदारियों के बोझ मे आँसू भी छिपा जाता है।

कौन कहता है पुरुष होते है कठोर दिल के 

लाडो की विदाई पर पिता ही सबसे ज्यादा टूट जाता है। 

आपकी दोस्त संगीता अग्रवाल 

( स्वरचित रचना )

#पुरुष

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