सुधा जी एक स्कूल में शिक्षिका थी और जीवन के 60 बसंत पार कर चुकी थी अगले महीने स्कूल से रिटायर होने वाली थी।
सुधा जी के दो बेटे और एक बेटी थी तीनों की शादी हो चुकी थी। सुधा जी के पति राकेश जी भी बिजली विभाग में नौकरी करते थे वे 5 साल पहले ही रिटायर हो चुके थे और अपने रिटायरमेंट के पैसे से अपने दोनों बेटों के लिए एक-एक फ्लैट खरीद के दे दिया था।
लेकिन अपने अभी भी किराए के ही घर में रहते थे बेटे कई बार कहते थे कि मम्मी-पापा आप दोनों लोग हमारे साथ रहो लेकिन यह लोग यह कह कर टाल देते थे कि बेटा अभी तुम लोगों की खेलने खाने की उम्र है जब हम थक जाएंगे तो तुम्हारे पास ही आएंगे और कहां जाएंगे।
राकेश जी ने सोचा था कि सुधा जी जब रिटायर होंगी तो उनके रिटायरमेंट के पैसे से अपने लिए एक छोटा सा घर खरीदेंगे जहां अब दोनों पति पत्नी आराम से रह पाएंगे। राकेश जी अपने बेटों पर बोझ नहीं बनना चाहते थे।
1 दिन राकेश जी और सुधा जी चाय पी रहे थे तो आपस में ही बात करते हुए राकेश जी ने कहा सुधा जी रिटायरमेंट के पैसे मिलने वाले हैं तुमने सोचा है उसका क्या करेंगे। “मैं चाहता हूं कि अपने लिए एक छोटा सा आशियाना खरीदें जहां हम पति-पत्नी आराम से रह सके।” सुधा जी ने कहा, “आपने सही कहा आशियाना तो खरीदेंगे लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि अपनी बेटी के लिए।”
राकेश जी ने अपनी पत्नी सुधा से कहा, “कैसी बात कर रही हो सुधा अब बेटी के लिए घर खरीदने का क्या मतलब है हमने तो बेटी को ऑलरेडी एक अच्छे घर में शादी किया हुआ है दामाद जी भी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर है पैसों की कमी है क्या हमारी बेटी और दामाद के पास जो हम उनके लिए घर खरीद कर देंगे वो तो खुद एक बड़े हवेली जैसे घर में रहते हैं।
सुधा जी ने अपने पति राकेश जी से साफ शब्दों में कह दिया, “देखिए जी मैं नहीं जानती हूं कि मेरी बेटी के पास कितना पैसा है या नहीं है लेकिन मैं अपने रिटायरमेंट के पैसे से अपने बेटी के लिए एक घर खरीद के गिफ्ट करूंगी।
मैं बस यही चाहती हूं इस जहां में मेरी बेटी के लिए भी एक ऐसी जगह हो जो सिर्फ उसका हो जिस पर सिर्फ उसी का हक हो उस पर ना मायके का नहीं ससुराल का हक हो। आपको याद है जब मेरी नई नई शादी हुई थी तो 1 दिन मेरी सासू मां यानी आपकी मां से किसी बात पर मेरी बहस हो गई थी तो आपने गुस्से में कहा तुम कौन होती हो मेरी मां से बहस करने वाली यह तुम्हारा घर नहीं है बल्कि यह मेरी और मेरी मां का घर है तुम्हें अगर इस घर में रहना होगा तो मेरी मां की बात माननी होगी नहीं तो निकल जाओ इस घर से। और मैं गुस्से में अपना बैग उठाकर अपने मायके चली आई। मुझे लगा था कि मायका तो मेरा घर है मैंने वहां पर जन्म लिया है लेकिन मुझे क्या पता था कि शादी होने के बाद मायका भी पराया हो जाता है जब मैं अपने मायके पहुंची तो मेरी मां पिताजी भैया भाभी सब ने मुझे यही समझाया बेटी तुम्हें गुस्सा करके यहां नहीं आना चाहिए था मायके में कितने दिन रहोगी आखिर गुजारा तो ससुराल में ही होता है पति का घर ही एक स्त्री का अपना घर होता है शादी होने के बाद बेटियां मायके में मेहमान हो जाती हैं।
लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि मैं वापस अपने ससुराल नहीं जाऊंगी लेकिन तुम अगले दिन ही मुझे लेने के लिए मेरे मायके आ गए थे और मैं तुम्हारे साथ फिर से दोबारा अपने ससुराल चली आई लेकिन आने के बाद उसी दिन मैंने ठान लिया था कि मैं खुद भी जॉब करूंगी और जॉब करके जो भी पैसा इकट्ठा करूंगी उसे अगर मेरी बेटी होगी तो मैं अपनी बेटी के लिए एक घर तो जरूर खरीदुगी।
मैं अपनी बेटी को अपने जैसी हालत नहीं होने दूंगी जिसका न मायका अपना है न ससुराल अपना।
सुधा जी ने जब इस बात को अपने पति राकेश को याद दिलाया तो राकेश जी बहुत शर्मिंदा हुए।
उन्होंने फिर सुधा का विरोध नहीं किया बल्कि वह भी सुधा के साथ अगले महीने रिटायरमेंट के पैसे के साथ लखनऊ में ही एक फ्लैट देखने के लिए जाने लगे उसके बाद एक 2 बीएचके का फ्लैट उन लोगों को पसंद आया और उन्होंने अपनी बेटी के नाम से खरीद दिया।
जब उनकी बेटी राधा को यह बात पता चला कि उसके मां पिताजी उसके लिए एक घर खरीद रहे हैं तो उसने मना किया और कहा माँ आप जैसा सोच रही हो ऐसा कुछ नहीं है तुम्हारे दामाद मुझे बहुत प्यार करते हैं मुझे कभी भी एहसास नहीं हुआ यह ससुराल मेरा घर नहीं है मेरी सास ससुर भी बिल्कुल आप ही लोग जितना प्यार करते हैं।
लेकिन सुधा और राकेश जी नहीं माने तो बेटी ने कहा ठीक है मम्मी आप मेरे लिए घर तो खरीद लो लेकिन एक शर्त पर जब तक आप दोनों जिंदा रहोगे उसी फ्लैट में रहोगे उसके बाद यह मेरा होगा।
सुधा और राकेश जी अपनी बेटी की शर्त को स्वीकार कर लिया और उन्होंने अपनी बेटी के नाम से एक फ्लैट खरीद लिया और उसके बाद किराए के घर को छोड़कर उसी घर में जाकर रहने लगे।
दोस्तों यह आजकल की आम समस्या हो गई है कि जब भी ससुराल में बहु के साथ कोई मनमुटाव हो जाता है तो सीधे कहा जाता है यह तुम्हारा घर नहीं है। जबकि सच्चाई यह है शादी के बाद एक लड़की का उस घर पर उतना ही हक हो जाता है जितना कि उस लड़के का। लेकिन हमारा समाज इसे मानने को तैयार नहीं है। इससे बेहतर यह है कि हम जो अपनी बेटी को दान दहेज देते हैं अगर हम सक्षम हैं तो अपनी बेटी के लिए भी कम से कम एक घर जरूर गिफ्ट करें।