• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

*कापुरुष* – मुकुन्द लाल

 

 रात के सन्नाटे को चीरती हुई कई लोगों की  मिली-जुली आवाजें “रिक्शा रोको।” ने रिक्शे पर बैठे दम्पति को चौंका दिया। रिक्शावाला भी शायद भयभीत हो गया था। पैडल पर उसने दबाव बढ़ा दिया था।

 सहसा अंधेरे के बीच से कई साये एक साथ उभर आये। उनमें से दो ने दौड़कर रिक्शे की हैंडिल पकड़कर रिक्शा को रोक लिया, फिर एक ने आगे बढ़कर रिक्शेवाले को एक करारा तमाचा रसीद करते हुए कहा, “मैंने रिक्शा रोकने को कहा था।”

 रिक्शे पर बैठे दम्पति भय से कांपने लगे थे। एकाएक दो-तीन साये उसकी ओर मुखातिब हुए। उनमें से एक ने कहा, “जो कुछ पास में है, चुप-चाप निकाल दो वर्ना..।” पुरुष ने अपने सीने पर छुरे की चुभन महसूस की। डर से उसकी घिघ्घी बंध गई। चुप-चाप उसने घड़ी, जेब के पैसे उनके हवाले कर दिये। युवती ने भी अपने जेवरात उतारकर उसे सौंप दिए।

 पर वे इतने ही से मानने वाले थोड़े ही थे। उन लोगों ने जबरन युवती को भी रिक्शे से नीचे खीच लिया।

 युवती चीखती-चिल्लाती ही रही पर रिक्शे पर बैठा पुरुष किंकर्तव्यविमूढ़ सा चुपचाप बैठा रहा। युवती को पास की एक पुलिया के नीचे घसीटकर ले जाते हुए लुटेरों में से एक ने डांँटते हुए  रिक्शेवाले से कहा, “अब यहाँ क्या कर रहा है?.. दफा हो जा यहांँ से।.. और हांँ!.. खबरदार जो तुम दोनों में से किसी ने भी पुलिस को खबर की, तो जान से मार दूंँगा।”




 रिक्शेवाले की, जैसे जान में जान आई हो, वह तेजी से पैडल मारता आगे की ओर बढ़ गया। पुलिया के नीचे से युवती के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती रही। रिक्शा पुलिया के ऊपर से गुजर गया। युवती का पति यंत्रवत रिक्शे पर बैठा रहा।

 सुबह लगभग चार बजे दरवाजे पर दस्तक हुई, पति ने दरवाजा खोल दिया।

 सामने अस्त-व्यस्त कपड़ों में विक्षिप्त सी उसकी पत्नी खड़ी थी। बिखरे बाल, बुझी-बुझी सी आंँखें, चेहरे पर नोच-खसोट की आङी-तिरछी लकीरें उसपर हुए अत्याचार व दुर्दशा को उजागर कर रहे थे। चौखट के बाहर खड़ी वह कातर दृष्टि से अपने पति को देख रही थी। उसकी आंँखों से अविरल गति से आंँसू बह रहे थे।

 पुरुष की आंँखें भी युवती पर टिकी हुई थी। कुछ पल तक खामोश वह अपनी पत्नी को घूरता रहा। उसकी आंँखों में अचानक घृणा के भाव उभरने लगे। अजीब ढंग से  मुंँह बिचकाकर उसने अपना चेहरा दूसरी ओर फेर लिया, फिर उसने कहा, “जहांँ जी चाहे अपनी यह काली सूरत लेकर चली जाओ यहांँ से।”

 युवती को अप्रत्याशित एक धक्का सा लगा। उसने पीछे मुड़कर अपने कदम बढ़ा दिए।

 उसके जेहन में एक ही प्रश्न कौंध रहा था,

“क्या मेरी सूरत काली हो गई है?”

    स्वरचित

     मुकुन्द लाल

      हजारीबाग(झारखंड)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!