कन्यादान – मुकेश पटेल

गर्मी की छुट्टियों में महेश जी हर साल अपने पैतृक गांव जरूर जाते थे। महेश जी का एक छोटा सा परिवार था जिसमें उनकी बेटी नीलम और पत्नी जया कुल मिलाकर तीन सदस्य थे।  नीलम भी 10th का एग्जाम दे चुकी थी इसलिए वह भी अपने मम्मी-पापा के साथ गांव घूमने के लिए जाने वाली थी।  

 महेश जी ने अपने गांव का घर और जमीन अपने बचपन के दोस्त मोहन को देखभाल करने के लिए दे दिया था। गांव में मोहन के पास जमीन के नाम रहने के लिए  सिर्फ घर था, वह महेश जी की जमीन पर ही खेती करता और उसके बदले में जो जमीन का किराया होता था वह महेश जी को चुका देता था.  

महेश जी ने अपना घर भी मोहन को ही रहने के लिए दे दिया था इसके 2 फायदे थे एक तो मोहन को रहने के लिए छत मिल जाएगा और दूसरा उनके घर की भी देखभाल हो जाएगी.  महेश जी ने फोन कर मोहन को कह दिया था कि मोहन हम लोग कल गांव आ रहे हैं तुम स्टेशन आ जाना हमें लेने.

अगले दिन महेश जी अपने गांव पहुंच चुके थे. महेश जी जब अपने घर पहुंचे तो घर बिल्कुल पूरी तरह से साफ सफाई करा हुआ मिला जैसे उनके मां बाबूजी रखते  थे।  बिल्कुल वैसे ही घर के दरवाजे के आगे जितने भी पौधे होते थे वह बिल्कुल वैसे ही हरे-भरे थे.
महेश जी मोहन के काम से बहुत ही प्रभावित रहते थे. महेश जी और उनका परिवार अपने  घर आकर जैसे ही बैठा।  मोहन की बिटिया जानकी ने पहले महेश जी और उनकी पत्नी के पैर छुए और कुछ देर बाद गांव का देसी गुड़ और पानी लाकर रख दी.


जानकी को देखते ही महेश जी की पत्नी जया बोली जानकी तुम भी तो इस साल 10th बोर्ड देने वाली थी ना। जानकी का जवाब था हां चाची दिया तो है अब कुछ दिनों बाद ही रिजल्ट भी आ जाएगा।  जया ने कहा, “नीलम ने भी इस बार 10th का बोर्ड दिया है देखते हैं अब तुम दोनों का कितना पर्सेंट नंबर आता है।”

मोहन की बेटी जानकी गांव में रहती थी लेकिन पढ़ाई में बहुत ही इंटेलिजेंट थी बचपन से ही सरकारी स्कूल में पढ़ती थी लेकिन अपने क्लास में हमेशा से फर्स्ट आती रही थी। जिस क्लास में पढ़ती थी उसी क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी ऐसे बच्चे 100 में से एक ही मिलते हैं जो इतने प्रतिभशाली होते हैं।

कुछ दिनों के बाद गांव में रहते हुए ही 10th का रिजल्ट आ गया।  जानकी को 100 में से 89 परसेंट नंबर आया। और महेश जी की बिटिया नीलम को 100 में से 96 परसेंट नंबर आया।  उस दिन घर में खुशी का माहौल था क्योंकि महेश जी और मोहन दोनों की बिटिया इतने नंबरों से जो पास हुई थी।  

जया ने जानकी को बुलाकर कहा, “तुम गांव में भी रहकर 89 परसेंट नंबर लाई वह भी बिना किसी ट्यूशन के यह कम नहीं है शहर में तो नीलम हर विषय का ट्यूशन लेती थी  तब जाकर 96 परसेंट नंबर लाई है।

जया जी ने दोनों लड़कियों को अपने पास बुलाया अपनी बेटी नीलम और मोहन की बेटी जानकी से पूछा अब तुम दोनों यह बताओ कि 12वीं के बाद क्या करने का इरादा है। जया जी की बेटी नीलम ने कहा मुझे वकील बनना है।  जया जी ने ने जानकी से पूछा जानकी तुम्हें क्या बनना है

तभी जानकी के बापू मोहन ने जवाब दिया भाभी जी यह क्या बनेगी हमने जैसे तैसे करके इसे 10th पास करा दिया अब हमारी औकात कहां है जो हम आगे पढ़ाएंगे। आगे खूब करेगी तो 12वीं कर लेगी फिर शादी कर देंगे।  

जया जी ने मोहन को डांट लगा दी, “कैसी बात कर रहे हो मोहन अभी इसके पढ़ने की उम्र है 89 परसेंट नंबर लाई है बोर्ड में और तुम कह रहे हो कि अब आगे क्या पढ़ेगी, शादी कर देंगे। मोहन ने कहा, “भाभी आप ही बताओ हमें क्या आगे पढ़ाने की औकात है, 

अगर यह मान लो मेडिकल इंजीनियरिंग करने की सोचें तो कोचिंग में कितना पैसा लगता है और उसके बाद अगर कंप्लीट भी कर ले तो 5 से 10  लाख  फीस होता है मैं कहां से भर पाऊंगा।

जया ने कहा, “आज कल के माता-पिता की यही तो दिक्कत है बच्चों को आगे पढ़ाना ही नहीं चाहते हैं, क्या तुम्हें पता नहीं है कि गरीब बच्चों की सहायता के लिए सरकार एजुकेशन लोन देती है।” जया जी ने जानकी से पूछा जानकी तुम बताओ क्या तुम्हें आगे पढ़ने का मन है।


जानकी ने हां में सिर हिला दिया। जया जी ने कहा, “ठीक है तुम अब हमारे साथ शहर चलोगी और वहीं पर रहोगी और तुम अपना पढ़ाई करना घर का छोटे-मोटे काम कर दिया करना बाकी मैं तुम्हारा कोचिंग में एडमिशन करवा दूंगी जो भी फीस होगा मैं भर दिया करूंगी।

इतना सुनते ही मोहन की पत्नी जया जी के पैर पकड़ ली।  कहा, “दीदी आपका एहसान तो पहले से ही इतना है जो आप अपना जमीन और घर हमे  रहने को दिया है और बेटी को भी अपने साथ पढ़ाने ले जा रही  है आप जरूर कोई देवी हैं।

जया जी ने कहा, “अरे ऐसा कुछ नहीं है मैं तो इसलिए ले जा रही हूँ, जानकी पढ़ने में इतनी इंटेलिजेंट है अगर यह आगे पढ़ेगी तो कई सारे बच्चों को प्रेरणा देगी कि आदमी कम साधनों में भी चाहे तो कुछ भी कर सकता है।

कुछ दिनों बाद ही महेश जी अपने परिवार के साथ शहर वापस लौट गए थे, नीलम भी बहुत खुश थी क्योंकि अब  शहर में उसके साथ रहने के लिए उसको एक दोस्त जो मिल गई थी जानकी के रूप में। शहर आकर नीलम ने सबसे पहले तो  जानकी को अपने सारे कपड़े दिखायी और मेकअप का  समान भी  दिखाई।

जानकी ने कहा,” तुम्हारे पास इतने सारे कपड़े, मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती हूं इतने सारे कपड़े किसी के पास भी हो सकते हैं मैंने तो इतने सारे कपड़े,  कपड़े की दुकान में ही देखी  हैं।  नीलम ने कहा, “मेरी बहन जानकी आज से यह सारे कपड़े तुम्हारे भी हैं तुम जो चाहे कपड़े पहन सकती हो। कुछ दिनों के बाद दोनों में इतनी दोस्ती हो गई कि वह दोस्त कम बहन ज्यादा लगने लगी थी।”

दोनों अब साथ-साथ  स्कूल जाने लगी दोनों का दाखिला 12 वीं क्लास में जया जी ने करा दिया था। जानकी एक आत्म स्वाभिमानी लड़की थी। उसने जया जी से कहा, चाची मैं तो कहती हूं जो आप काम करने वाली बाई को बुलाती है अब उसे मना ही कर दो पूरे दिन तो मैं पढ़ाई करती नहीं हूं घर का काम भी कर लिया करूंगी।

 जया जी ने कहा, “कैसी बात कर रही हो, मैं तुम्हें यहां काम कराने के लिए गांव से शहर लेकर नहीं आई हूं बल्कि पढ़ने के लिए लेकर आई हूं, अगर काम यहां पर करोगी तो तुम्हारे बापू कभी आएंगे तो क्या सोचेंगे कि मेरी बेटी को  यहां पर पढ़ाई के बहाने काम कराने के लिए लेकर आए हैं।”


अरे नहीं चाची आप कैसी बात कर रही हैं। कोई अपने घर में काम करता है तो नौकरानी थोड़ी हो जाता है, आखिर अब मेरा भी तो यह घर है। जानकी के जिद करने पर जया जी ने कहा ठीक है खाना तुम बना लिया करना और काम करने वाली बाई सिर्फ बर्तन झाड़ू पोछा कर लेगी। लेकिन अकेले खाना नहीं बनाओगी मैं भी तुम्हारा किचन में मदद करूंगी।

“ठीक है चाची।”एक दिन शाम को जानकी जब सब्जी बना रही थी तो जया जी किचन में आई और बोली कि अब एक महीना तुम किचन में नहीं आओगी  क्योंकि अगले महीने तुम्हारी और नीलम का एग्जाम है और मैं नहीं चाहती हूं कि इस चक्कर में तुम दोनों की पढ़ाई खराब हो।

जानकी कभी-कभी जया जी के बारे में सोच कर बहुत ही भावुक हो जाती थी वह कल्पना नहीं कर सकती थी इस दुनिया में जया जी जैसे लोग अभी भी मौजूद हैं जो दूसरों के हुनर की कदर करते हैं आज कहां किसके पास टाइम है किसी को एक रुपए की भी मदद करने की और यहां जया चाची मुझे पढ़ाने के लिए अपने घर में रख लिया और कोई काम भी नहीं करने देती हैं।

जानकी वहां रहते रहते सब की दिनचर्या समझ गई थी जया जी, महेश जी और नीलम को खाने में क्या क्या पसंद है सब पता कर लिया था। 15-16 साल की लड़की रसोई को ऐसे संभालने लगी थी जैसे कोई कुशल गृहिणी अपनी रसोई को संभालती है यहां तक कि जानकी रसोई का सारा सामान सजा कर रखती थी और रसोई की सफाई तो ऐसे कि रसोई में एक भी धूल का कण नजर नहीं आता था। जानकी को वैसे तो ट्यूशन की जरूरत नहीं थी वह बहुत इंटेलिजेंट थी।

  यूट्यूब से ही अपना सारा पढ़ाई कर लेती थी लेकिन गांव के होने की वजह से उसका इंग्लिश थोड़ा कमजोर था  तो इसके लिए वह नीलम से हेल्प ले लेती थी नीलम भी उसे बिल्कुल अपनी छोटी बहन की तरह पढ़ाती थी।  जानकी मैथ में अच्छी थी तो वह नीलम को मैथ में हेल्प कर देती थी। जया जी हमेशा कोशिश करती थी कि किसी भी वजह से दोनों बच्चियों के पढ़ाई में खलल ना पड़े।  

जानकी तो अपने हर समय का सदुपयोग करना जानती थी खाना बनाते समय वह मैथ का फार्मूला और केमिस्ट्री के रासायनिक फार्मूला याद  करती रहती थी। कई बार तो नीलम और जानकी के बीच  आपस में बहस भी हो जाती थी इसी बात को लेकर जया जी डर जाती थी वह  बीच-बचाव करने लग जाती थी उन्हें डर लगता था 

कि कहीं एक दूसरे के बीच तनाव ना हो जाए।  लेकिन ऐसी नौबत आती नहीं थी नीलम अपनी मां को कह दी थी मां तुम चिंता मत करो हम तो ऐसे ही लड़ाई करते हैं जब दो बहनों में लड़ाई ना हो तो फिर बहन कैसी। जया जी दोनों बेटियों को अपने सीने से लगा लेती थी और चली जाती थी।

समय के साथ जानकी और नीलम ने 12वीं  90% से भी ज्यादा अंक से पास हुई और इधर जानकी इंजीनियरिंग की तैयारी करने में जुट गई और नीलम एडवोकेट की तैयारी करने के लिए यानी कि CLAT का  एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में लग गई थी।

जानकी का दाखिला रांची के इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया था और नीलम भी CLAT  का एग्जाम क्वालीफाई कर लॉ के कॉलेज में दाखिला ले लिया था।दोनों साथ साथ ही एक इंजीनियर बन गई और एक वकील बन गई।  


जानकी का सपना था कि जब वह पैसा कमाएगी तो अपने गांव में एक छोटा सा कोचिंग इंस्टीट्यूट खोलेगी जिसमें गांव के इंटेलिजेंट बच्चों को मुफ्त में कोचिंग दिलवाएगी।  अब सपना पूरा करने का दिन आ गया था लेकिन उसके सपने को पूरा करने के लिए अब साथ देने के लिए नीलम भी तैयार थी उसने भी कहा कि मैं

भी अपने वकील की कमाई से कुछ पैसे तुम्हारी  कोचिंग के लिए डोनेट करूंगी। जानकी छुट्टियों में सबसे पहले जया जी के घर आती थी वहां से ही वह अपने गांव जाती थी इस बार छुट्टियों में जब वह घर आई थी तो उसने अपने जया चाची से कहा कि आप से मुझे एक इंपॉर्टेंट बात करनी है।  

जया जी ने कहा, “हां हां बेटी कहो क्या बात है। मैं जब इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ती थी तभी मुझे राजेश नाम के लड़के से प्यार हो गया था और वह  अब एम टेक कर रहा है और मैं उससे ही शादी करना चाहती हूं लेकिन मैं यह बात अपने मां बाबूजी से नहीं कर सकती हूं प्लीज मेरी हेल्प कर दीजिए मां बाबूजी से यह बात

बता दीजिए।  आपसे तो मैं कुछ भी कह सकती हूं आप मेरी दूसरी मां भी है चाची भी है और मेरी दोस्त भी।” जया जी ने कहा, “ठीक है मैं तुम्हारे मां-बाबूजी से बात करूंगी लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे राजेश से मिलवाना होगा उसके बाद ही मैं डिसाइड कर पाऊंगी कि लड़का तुम्हारे लायक है भी या नहीं।

अगले दिन ही जानकी ने राजेश को फोन करके जया जी से मिलने के लिए बुला लिया था जया जी ने राजेश से मिलकर जानकी से कहा यह  लड़का बिल्कुल तुम्हारे लायक है और मैं आज ही फोन पर तुम्हारे बाबूजी से बात करूंगी।

जया जी ने शाम होते ही  जानकी के बाबूजी मोहन से कहा, मोहन मैंने जानकी के लिए एक लड़का देख रखा है अगर तुम्हारी इजाजत हो तो बात आगे बढ़ाऊँ।” मोहन ने कहा, “यह भी पूछने वाली बात है भाभी आपकी वजह से ही हमारी जानकी इंजीनियर बनी है आपका तो उस पर हक है।” 

मैंने और जानकी की मां ने तो यहां तक डिसाइड किया है जानकी की कन्यादान भी आप ही करेंगी। हमने तो जानकी को सिर्फ जन्म दिया था लेकिन असली मां बाप का रोल तो मेरा दोस्त महेश और आप ने निभाया है। जया जी ने मोहन से कहा, “मोहन आपने तो मेरे मन की बात छीन ली मैं भी यही चाहती थी” कि जानकी की कन्यादान मैं ही  करूंगी लेकिन मैंने सोचा अगर मैं यह बात आपसे कहूंगी तो आप लोगों को पता नहीं कैसा लगेगा। मोहन ने कहा अरे नहीं भाभी यह  तो हमारे लिए गर्व की बात है अगर दुनिया में सारे लोग आपके जैसे हो जाए तो हमारा समाज ही बदल जाएगा लड़कियों को भी बराबर का अधिकार मिलना शुरू हो जाएगा यह बातें सिर्फ संविधान में नहीं रहेगी बल्कि जमीन के धरातल पर भी लागू हो जाएगा। जया जी ने कहा मोहन भाई साहब आपकी बिटिया जानकी की कन्यादान मैं करूंगी और मेरी बेटी नीलम का कन्यादान आप करेंगे अगर इस बात के लिए आप तैयार हैं तो बोलिए। मोहन ने कहा, “भाभी आपकी कोई बात क्या मैं टाल सकता हूं आपको जो अच्छा लगे कीजिए। जया जी ने कहा, “ठीक है फिर मैं अपनी बेटी नीलम के लिए भी लड़का ढूंढती हूँ और दोनों की शादी एक ही मंडप से करेंगे।” कुछ दिनों के बाद नीलम की भी एक अच्छा लड़का देखकर जया जी ने शादी तय कर दिया था।  

नीलम और जानकी की बारात एक ही दिन आई। जानकी का  कन्यादान जया जी और महेश जी ने किया नीलम का  कन्यादान मोहन और उसकी पत्नी ने किया। इस अनोखी शादी को देखकर सारे रिश्तेदार भी आनंद ले रहे थे।

दोस्तों इस कहानी का एक ही मकसद है कि अगर आप सक्षम है तो आप किसी की मदद कीजिए आप को बहुत सुकून मिलेगा शिक्षा से बड़ा दान कुछ भी नहीं हो सकता है अगर आप किसी को शिक्षा दान दे सकते हैं तो जरूर दीजिए।

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