“कलेजा निकालने की कोई जरूरत नहीं है” – सुधा जैन

 

“अरे यह क्या दिन भर सास बहू वाली कहानियां पढ़ती रहती हो, दूसरा कुछ पढ़ा करो “

पतिदेव ने अपनी पत्नी से कहा, तब पत्नी मुस्कुरा कर बोली

” यह इतनी जगत व्यापी, सर्वव्यापी समस्या है कि न वर्तमान में ,न भूत मे न भविष्य में इस समस्या का हल नजर आता है ….करें भी तो क्या? सास बहू  के लिए कलेजा भी निकाल कर रख दे तो भी बहू के लिए उसका कोई महत्व नहीं है…. और बहू कितनी भी संस्कारी और अच्छा बनने की कोशिश कर ले… सास की नजर में कमियां फिर भी रह जाती है… करें भी तो क्या? हम कितने भी पढ़े-लिखे, मॉडर्न हो जाए, समस्या तो बनी ही रहती है”

पतिदेव मुस्कुरा कर बोले “

देखो मैं तुम्हें समझाता हूं ..बच्चे हमारे जीवन में खुशियां लेकर आते हैं.. उनकी अच्छी परवरिश करना.. अच्छी शिक्षा देना.. और उनके सपनों को पंख देना, बस हमारा यही कर्तव्य है… समय पर उनका विवाह कर दो …उन्हें अपने पसंद की जिंदगी जीने दो… अपने घर में रहने की आजादी उन्हें भी चाहिए, और हमें भी चाहिए.. देखो जब तुम भी अपने बहू बेटे के यहां जाती हो तुम्हें अच्छा लगता है.. पर फिर भी कुछ बातें तो दिल पर लग जाती है.. जैसे वहां तुम किसी से बात नहीं कर सकती.. कोई अड़ोस पड़ोस नहीं है.. वहां की मेड को तुम अपने हाथों से चाय बनाकर नहीं पिला सकती.. कुछ खिला नहीं सकती ..जैसा कि अपने घर में कर सकती हो …जब  हमारा खाने का समय होता है ..तब उनके ब्रेकफास्ट का समय होता है… सब कुछ अच्छा होने के बाद भी कुछ कुछ बातें तो गले नहीं  उतरती है.. बहू बेटों के साथ रहकर हम अपने परिचितों , रिश्तेदारों को अपने मनचाहे ढंग से नहीं बुला सकते…भले ही हमारे पास पैसा भी हो.. फिर भी हम अपनी मर्जी का जीवन उनके साथ नहीं जी सकते… उसी प्रकार जब बहु हमारे साथ होती है तो वह भी अपनी मर्जी का जीवन नहीं जी सकती …कैसे भी अपने घर के रूटीन में सेट होना ही  पड़ता है …अपने रिश्तेदारों में, परिचितों को..  सैटल  करना ही पड़ता है.. भले ही बेमन से.. बस रिश्तो की समझदारी इसी में है कि सभी को अपने अपने हिसाब से अपना जीवन जीने दिया जाए.. किसी प्रसंग पर हम उनके यहां चले जाएं… त्योहारों पर वह हमारे यहां आ जाएं… समय के साथ सभी की प्राथमिकताएं बदलती  है और बदलना भी चाहिए … हमारी प्रॉपर्टी भी उन्हीं की है ..पर हमारे जाने के बाद में….

 उनके लाखों के पैकेज है पर उनके लिए हैं… हमारे लिए नहीं… स्वस्थ रिश्तो के लिए  कुछ दूरियां जरूरी है …तभी तो यह रिश्ते हमारे लिए मुस्कान ला सकेंगे… ना सास को अपना कलेजा निकालने की जरूरत है.. और ना बहू को अपना अस्तित्व खोने की… सभी अपने अपने हिसाब से रहे… एक दूसरे को रहने दे… अपना घर कभी छोड़ना नहीं.. सही समय पर रिश्तो से

#Move on”करना जरूरी है.. जब एकदम अशक्त हो जाएंगे तब की तब देखेंगे.. उस बात की चिंता अभी से क्यों करें… हां अपने आसपास अपनेपड़ोसी ,रिश्तेदारों अपनी गृह सहायिका  उन सभी से अच्छे रहना.. अपने जीवन की खुशियां मनाना.. अपने वृद्धावस्था के लिए पैसा बचाना बस हमारा यही धर्म है..

 ना अन्याय करें ना अन्याय सहे… बस यही सबसे बड़ी सेवा है”। पत्नी मुस्कुराने लगी।

 

सुधा जैन

 रचना मौलिक है

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