काकी – के कामेश्वरी

काकी मेरे साथ अस्पताल चलोगी क्या? कविता के डिलीवरी का समय है और कविता के पापा को भी अभी ही ऑफिस के काम से शहर से बाहर जाना पड़ गया है और मेरे तो हाथ-पैर काँप रहे हैं । आप जानती हैं न मुझे वैसे भी अस्पताल के नाम से ही डर लगता है ।तुम रहोगी तो थोडी सी हिम्मत बनी रहेगी …बोलो चलोगी न मेरे साथ ।

अरे … सुहासिनी इतना पूछने की क्या ज़रूरत है । मैं अभी सोनू को बताकर आ जाती हूँ , ज़रूरत के समय पड़ोसी ही पड़ोसी की मदद न करें तो कैसे बोलो कहते हुए वे अपने घर के अंदर चली गई । काकी का असली नाम कमला है पर सब लोग उन्हें काकी कहकर ही बुलाते थे । जैसा नाम वैसे गुण लोगों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहती थी …. आधी रात को बुलाए तो भी बुरा नहीं मानती थी । वह सोचने लगी कि बेटी सोनू के पैदा होने के बाद एक दिन के बुख़ार ने उसके पति को उससे छीन लिया था वह पढ़ी लिखी नहीं थी । पति के गुजरने के बाद मायके जाना चाहते हुए भी नहीं जा सकती थी क्योंकि माता-पिता दोनों का स्वर्ग वास  सालों पहले ही हो गया था । सोच रही थी कि अब जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ? उसी उधेड़बुन में बैठी हुई थी कि कंधे पर किसी के हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ । उसने पलट कर देखा तो छोटा भाई खड़ा था ।

उसने कहा— चल दीदी मेरे घर चल मेरे साथ चल  अब कुछ मत सोच — कहते हुए  मेरे और सोनू के कपड़े एक सूटकेस में डाल दिया और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर की तरफ़ चल दिया । मैं कुछ बोल भी नहीं पाई । रास्ते भर सोचती रही कैसे रहूँगी उसके घर भाई तो मेरा खून है पर भाभी कैसे आवभगत करेंगी ? मैं उनसे नज़रें मिला पाऊँगी कि नहीं , क्योंकि कभी त्योहार या किसी फ़ंक्शन में आकर एक दो दिन रहकर जाना अलग है अब उनके घर रहने के लिए जा रही हूँ । उनके भी तो चार बच्चे हैं । भाई की कमाई भी ज़्यादा अच्छी नहीं है । यह सब सोचते हुए कब घर पहुँचे पता ही नहीं चला । भाभी दरवाज़े पर खड़ी थी मुझे देखते ही आकर गले लग गईं ..उनके स्पर्श ने मुझे माँ की याद दिला दी और मैं फूटफूट कर रोने लगी …उन्होंने मुझे रोने दिया । जब मैं संभल गई तब मुझसे कहा दीदी अब कभी आप रोएँगी नहीं …..बस फिर कभी  मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा । पाँच साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला …सोनू जब सोलह साल की हुई तो भाई भाभी ने उसकी शादी एक अच्छे घराने में तय करा दिया  और थोड़े ही दिनों में जब वह अठारह साल की हो गई तब उसकी शादी भी करा दी ।


दामाद ने कहा —माँ आप भी हमारे साथ चलिए…..अब आप हमारे साथ ही रहेंगी । दामाद के साथ न न न …..मेरा मन नहीं माना पर उसने मेरी एक भी न चलने दी और मजबूर होकर मुझे उनके घर जाना पड़ा । ज़िंदगी आराम से कट रही थी ।मैंने अपने भाभी  और भाई   से सीखा कि ज़रूरत मंद लोगों की मदद करो पैसों का क्या है वह तो हाथ का मैल होता है पैसे न भी हों पर दिल बड़ा होना चाहिए । उस दिन से मैं लोगों के सुख दुख में उनका साथ दे  रही हूँ । कब वह कमला से लोगों के लिए काकी बन गई पता ही नहीं चला । यह सब उस समय की बात थी । सुहासिनी ने पुकारा काकी जल्दी आओ न । अपने विचारों को विराम लगाते हुए काकी ने कहा चलो सुहासिनी आ रही हूँ कहते हुए उसके साथ चली गई ।

* अब

सुहासिनी के बेटी को  लड़का हो गया था उसके साथ वहीं अस्पताल में ही रह गई थी । जब डॉक्टर ने उसे डिस्चार्ज कर दिया तो उसे सकुशल घर पहुँचाकर काकी घर

पहुँचती है । काकी ने जैसे ही घर में कदम रखा सोनू को ग़ुस्से में पाया । उसे अनदेखा

सोनू ने कहा — माँ यह क्या है? आपने तो हद कर दी है ।मुझसे एक दिन कहकर पाँच दिन बाद घर पहुँच रही हो । जिनके लिए आप इतना कर रही हैं वे आपके सगे संबंधी हैं क्या ? इस तरह घूमोगी तो तुम्हारी तबियत बिगड़ जाएगी तब

यह सब लोग आएँगे क्या आपको पूछने के लिए?

काकी ने कहा — क्या कह रही है ? सोनू पड़ोस में रहकर किसी के काम न आए तो क्या फ़ायदा ?  वैसे भी मैंने किया ही क्या है बोलो!

माँ… तुम तो सुनने वाली नहीं हो मैं तो समझा समझा कर थक गई हूँ । जो आपकी मर्ज़ी आए करो । बीस साल से मैं तुम्हें देख रही हूँ कभी मेरा कहना माना नहीं न मैं भी कैसी पागल हूँ जो पत्थर पर सर मार रही हूँ । कहकर सोनू वहाँ से चली गई ।एकदिन उसने माँ से कहा —चल माँ तेरे लिए कुछ साड़ियाँ ख़रीद लेते हैं क्योंकि दशहरा आने वाला है न और तेरी सारी साड़ियाँ पुरानी भी हो गई हैं । यह कह कर उन्हें साथ लेकर बाज़ार चली । सोनू ने अपने पति को  बताया कि मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा पूरे रास्ते लोग माँ का हाल-चाल पूछ रहे थे ..सभी लोग कैसी हैं काकी कल की बडियाँ अच्छी बनी हैं घर पर सब को अच्छे लगे …आपके हाथों में तो जादू है .. कोई कहता काकी एकदिन आपको न देखे तो हमारा मन नहीं मानता ……… और तो और पते की बात बताऊँ कि दुकानदार ने भी माँ को देखते ही कहा —-अरे ! काकी जी आइए आप हमारी दुकान में आई है मेरे तो भाग ही खुल गए हैं बताइए न क्या दिखाऊँ ….उनकी इस तरह आव भगत देख कर मुझे मेरी माँ पर गर्व हुआ ।इसलिए शापिंग करके घर आते समय मैंने मन में ही सोच लिया था कि अब मैं अपनी माँ को कभी नहीं टोकूँगी ।


दूसरे दिन सुबह  सात बजे के क़रीब सोनू उठ कर बाहर आई थी । उसने देखा कि पूजाघर से घंटी और आरती की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है । उसे आश्चर्य हुआ कि यह क्या इतने सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ  उसे डर लगा भागते  हुए रसोई घर में देखने गई वहाँ काकी नहीं  मिली उसका दिल घबराने लगा सीधे माँ के कमरे में पहुँची तो देखा माँ अब भी सो रही थी । उनका शरीर बुख़ार से तप रहा था । अरे! माँ क्या हो गया है आपको? आपकी तबियत ठीक नहीं है तो मुझे तो बुला लेती न । कोई बात नहीं है अब आप  चलिए हम डॉक्टर के पास चलते हैं …..

काकी ने कहा —- नहीं सोनू मैं बिल्कुल ठीक हूँ तू फ़िक्र मत कर थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा और मैं उठ जाऊँगी ..,,,नहीं माँ उठो उसने अपने पति राम को आवाज़ दी राम माँ की तबियत ठीक नहीं है …मैं इन्हें डॉक्टर के पास ले जा रही हूँ । राम से कहते – कहते ही उसने माँ को सँभाला और उन्हें आटोरिक्शा में बिठा कर ख़ुद भी बैठ गई ….माँ को लेकर वह पास के ही अस्पताल में पहुँची । जैसे ही डॉक्टर ने माँ को देखा काकी,आप !क्या हो गया है आपको आइए नर्स जल्दी से काकी को सँभालो और उन्होंने माँ की जाँच की कहा कुछ नहीं बस वाइरल फिवर है …मैं दवाइयाँ लिखकर देता हूँ आप ठीक हो जाएँगी । सोनू अब भी सोच रही थी कि डॉक्टर माँ को कैसे जानते हैं । जैसे डॉक्टर ने उसके मन की बात पढ़ ली हो उन्होंने कहा …..काकी आप जल्दी ठीक हो जाएँगी क्योंकि हमारे जैसे कितने ही लोगों की मदद आपको करनी है ।

वह दिन मैं तो कभी नहीं भूलता हूँ । आज भी हम आपको याद करते हैं कि हमारे बेटे को हम तक आपने ही पहुँचाया था बहुत- बहुत आभारी हैं हम आपके । सोनू की तरफ़ पलट कर डॉक्टर ने कहा — एक बार हमारा बेटा हमसे मंदिर में बिछड़ गया था ।हमने उसे  खूब ढूँढा पर वह नहीं मिला और मंदिर की सीढ़ियों पर ही बैठकर रो रहा था ।काकी ने उसे देखा और उसे चुप कराकर उससे हमारा फ़ोन नंबर लेकर हमें फ़ोन किया । हमारे आते तक उसकी देखभाल की । ऐसी है काकी …. सब के दिल की धड़कन ….किसी के लिए माँ  बनकर किसी के लिए मौसी तो किसी के लिए भगवान बनकर । आपको नहीं मालूम है परंतु हर किसी के घर में काकी को किसी न किसी रूप में याद किया ही जाता है । आप तो बहुत ही खुश क़िस्मत हैं जो ये आपके साथ ही रहती हैं ।

मैंने मन ही मन माँ को प्रणाम किया और ईश्वर को शुक्रिया अदा किया कि मैं काकी की बेटी हूँ ।

के कामेश्वरी

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