Moral stories in hindi : विभा.. आज तुम्हारी दोस्त मीनू अपने पति के साथ बाजार में मिल गई थी.. सोमेश घर में प्रवेश करता हुआ बैग रख अपनी पत्नी से कहता है।
ये तो अच्छी बात है… विभा कहती है।
कल उसे और उसके परिवार को मैंने लंच के लिए निमंत्रण दिया है.. सोमेश बताता है।
ये तो बहुत अच्छा किया आपने। मेरा जाना भी बहुत दिनों से नहीं हो पाया था …विभा बोल पानी का ग्लास सोमेश की तरफ बढ़ाती है।
माँ बाबुजी बच्चे नहीं दिख रहे हैं.. सोमेश पूछता है।
दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गए हैं माँ बाबुजी.. विभा बताती है।
चलो इसी बहाने कुछ संस्कार सीखेंगे.. सोमेश बोल अपने कमरे में चला जाता है।
अगले दिन
आओ आओ.. घर ढूंढने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई.. सोमेश मीनू और उसके पति श्याम का स्वागत करते हुए पूछता है।
नहीं नहीं.. कोई दिक्कत नहीं हुई.. श्याम कहता है।
श्याम के दोनों बच्चे और सोमेश के बच्चे आपस में घुल मिल गए थे।
आओ मीनू तुम दोनों को माँ बाबुजी से मिलवा दूँ। तुम दोनों का ही इंतजार कर रहे थे।
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श्याम से मिल दोनों बुजुर्ग बहुत खुश हुए।
और श्याम तुम्हारे माँ बाबुजी कैसे हैं.. बातों बातों में सोमेश के माँ बाबुजी ने पूछा।
ठीक हैं.. नजर चुराते हुए श्याम कहता है।
खाने की मेज पर पुरानी भूली बिसरी यादों का सिलसिला चल निकला था। हँसी ठहाकों की गूँज के साथ विभा और मीनू सबको खाना खिला रही थी।
विभा.. एक बात बताओ तुम .. सोमेश के माता पिता तुम्हारे साथ ही रहते हैं क्या। पहले गाँव में थे ना। बंधन सा लगता होगा तुम लोग को तो। सब कुछ समय से करो। ना कहीं जाओ… ना किसी को बुला सको… मीनू विभा से पूछती है।
वो हमारे साथ नहीं रहते हैं। हम उनके साथ रहते हैं। ये घर उनका ही है और माता पिता के साथ रहने में क्या दिक्कत, औलाद तो बचपन से ही साथ रहते हैं.. विभा पुरियाँ तलते हुए कहती है।
हाँ तो उन्होंने जन्म दिया है तो बच्चों का पालन पोषण फर्ज बनता है उनका.. मीनू कहती है।
विभा मीनू की ओर एक नजर डाल बिना कुछ जवाब दिए काम में लगी रहती है।
और जो कुछ उनका है.. उन सब पर तो हमारा अधिकार ही है.. मीनू अपनी बात जारी रखती हुई कहती है।
तो एक बताओ मीनू उनका सब कुछ हमारा है तो उनका बुढ़ापा हमारा क्यूँ नहीं। उन्होंने हमें जन्म दिया तो हमारा बचपन उनका था, जिसका फर्ज उन्होंने पूरा किया और अब हमारे संस्कार हैं कि उनके बुढ़ापे को अपना कर उनकी जिम्मेदारी हम भी समझे और देखो हमने तुम्हें लंच पर आमंत्रित तो किया ही। कोई दिक्कत नहीं हुई.. विभा कहती है।
तुम समझ नहीं रही विभा। इतने वृद्धाश्रम हैं.. वहाँ उनकी देखभाल भी हो जाती है। बस पैसे ही तो देने होते हैं। मैंने तो रखवा दिए हैं भाई। हर कोई फ्री रहना चाहता है .. मीनू कंधे उचकाती हुई कहती है।
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क्यूँ तुम लोग के जन्म लेते ही तुम्हारे माँ बाबु जी ने तुम लोग को अनाथालय में रखवा दिया था क्या। उन्हें भी फ्री रहना रहा होगा। अगर उनका परिवार हमारे साथ पूरा हुआ तो क्या उनके बिना परिवार अधूरा नहीं रह जाएगा। उन्होंने हमारी इच्छाओं को समझा तो हम नालायक क्यूँ बने मीनू। ना उन्होंने हमें बंधन समझा, ना हम ही उन्हें बंधन समझते हैं। तुम्हारी तुम जानो पर हम ऐसा नहीं कर सकते.. कहकर विभा पूरी भरी थाल लेकर रसोई से बाहर चली गई।
मीनू अपनी सहेली से ऐसा उत्तर पा चेहरे पर ग्लानि का भाव लिए हतप्रभ सी रसोई में खड़ी रह गई।
#परिवार
आरती झा आद्या
दिल्ली