जेठानी जी के मायके वालों के सामने मेरे मायके वालों का अपमान क्यों – गीतू महाजन

सुधा जी के घर आज सुबह से ही चहल-पहल थी।दिवाली पास आने वाली थी तो घर की सफाई में वह एक महीना पहले से ही दोनों बहुओं के साथ जुट चुकी थी।आज की चहल-पहल का मुख्य कारण तो उनकी बड़ी बहू मनीषा के मायके वालों का आना था।

मनीषा के मायके से उसके भाई भाभी अपने बच्चों सहित दिवाली का त्यौहार देने आने वाले थे।मनीषा का एक ही बड़ा भाई था और उसके पिता का अच्छा खासा कारोबार था और भाई अपने पिता के साथ ही कारोबार में हाथ बंटाता था। 

मनीषा अपने घर में इकलौती बेटी होने की वजह से लाड़ली बेटी थी और अपनी आर्थिक रुप से मज़बूती की वजह से वह मनीषा को हर बार त्योहारों पर अच्छे तोहफे देते थे और साथ ही साथ हमेशा उसके ससुराल वालों के लिए भी कुछ ना कुछ तो अच्छा ज़रूर लेकर आते।

उनके आने पर सुधा जी के हावभाव हर बार बदल जाते यह बात सुधा जी की छोटी बहू तान्या से छुपी नहीं थी जिसकी शादी को लगभग 2 साल होने वाले थे।तान्या के पिताजी रिटायर्ड प्रोफेसर थे।

अपनी सीमित आमदनी में उन्होंने अपने तीनों बच्चों को बहुत अच्छी शिक्षा दी थी लेकिन इतने खुले हाथ से वह तान्या को तोहफे नहीं भिजवा पाते जितना कि मनीषा के घर से आते थे।

तान्या खुद एक पढ़ी-लिखी लड़की थी और बैंक में नौकरी भी करती थी।वैसे तो सुधा जी के घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी।उनके पति सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे और पेंशन पाते थे और उनके दोनों बेटे रमेश और सुकेश मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे ओहदे पर नौकरी कर रहे थे।

दोनों बहनों में भी अच्छा खासा प्यार था और सुधा जी वैसे तो दोनों बहुओं में कोई भेदभाव नहीं करती लेकिन जब भी मनीषा के मायके वालों की बात आती तो हर बार तान्या के मायके वालों को नीचा दिखाने में कोई अवसर ना छोड़ती ।

तान्या ने एक दो बार सुकेश से इस बारे में बात भी की लेकिन सुकेश उसे हर बार यह कहकर टाल देता,” तुम तो जानती ही हो मम्मी ने तुम्हारे और भाभी के बीच में कभी कोई भेदभाव नहीं किया पर तुम्हारा यह वहम जाता ही नहीं है”।



खैर, तय समय पर मनीषा के मायके वाले आए और हर बार की तरह उन सबको तोहफों से लाद गए।मनीषा की भाभी रागिनी बहुत प्यारी लड़की थी।वह तान्या के लिए भी हर बार अच्छा तोहफा लेकर आती और उससे भी उसी तरह से प्यार से मिलती जैसे कि मनीषा को लेकिन…सुधा जी की हर बार की तरह तोहफों को देखकर बांछे खिल गई थी

और उनकी आंखों की चमक तान्या से छुपी नहीं रही और तो और सुधा जी खुद आगे हो होकर मेहमानों की आवभगत कर रही थी।रविवार का दिन था और सब घर पर ही थे।

2 दिन बाद तान्या का भाई और पिताजी दिवाली का त्यौहार देने के लिए उनके घर आए पर तब सुधा जी ने कोई खास तैयारी नहीं की थी और उन के सामने भी सुधा जी ने कोई खास बातें नहीं की और अनमनी सी बनी रही।

सुकेश भी घर पर था तो उसे भी अपनी मां के व्यवहार को देखकर तान्या की बातों में थोड़ी सी सच्चाई नज़र आई।

खैर,दिवाली का त्यौहार अच्छे से बीत गया।थोड़े दिनों बाद रमेश की प्रमोशन की खबर आई तो सुधा जी के मन में घर में जागरण करने का विचार आया।सुधा जी ने सोचा कि इस बार एक अच्छा सा आयोजन किया जाए और शहर में रहने वाले रिश्तेदारों और अपने सभी परिचितों को भी बुलाया जाए।

घर वाले भी सुधा जी के विचार को लेकर सहमत हो गए और फोन पर पंडित जी से बात कर तय किया कि आज से ठीक 10 दिनों के बाद जागरण का आयोजन किया जाएगा।जागरण करने वाली मंडली से भी बात कर ली गई।

“मनीषा और तान्या, तुम दोनों भी अपनी तरफ से देख लेना जिस जिस को बुलाना हो..अपनी सहेलियों को भी और अपने नाते रिश्तेदारों को भी”,सुधा जी ने कहा।

“मेरी तो एक दो ही सहेलियां हैं जिन्हें में बुलाने का सोच रही हूं”, तान्या ने कहा।

 “हां मैं भी ज़्यादा लोगों को नहीं बुलाऊंगी”, मनीषा भी बोली।

रमेश और सुकेश ने भी मन ही मन अपने दोस्तों के नाम तय कर लिए थे।

अगले दिन रात के खाने पर सुधा जी बोली,”मनीषा, कल तुम और रमेश अपने मायके स्वयं जाकर उनको जागरण का न्योता दे आना”।



“मैं और तान्या भी तान्या के मायके हो आएंगे”, सुकेश ने आगे जोड़ा।

“नहीं, वहां जाने की क्या ज़रूरत है मैं उन्हें फोन पर ही बुलावा दे दूंगी”,सुधा जी ने कहा।

उनकी बात सुनकर थोड़ी देर के लिए वहां चुप्पी छा गई। सुकेश भी तान्या के चेहरे की तरफ देख रहा था।आज तान्या को बहुत बुरा लगा लग रहा था।वह समझ नहीं पा रही थी कि उसके मायके वालों का ऐसा क्या दोष है

कि उसकी सास उन्हें मान नहीं देती…क्या सिर्फ इसलिए कि वह उनके लिए महंगे तोहफे नहीं ला पाते।यही बातें सोच कर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आज पहली बार सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए वह बोल उठी,”मम्मी जी, क्यों मेरे मायके में जाकर बुलावा देने की ज़रूरत क्यों नहीं है”।

जेठानी जी के मायके वालों के सामने मेरे मायके वालों का अपमान क्यों हमेशा होता रहता है..मैं क्या समझती नहीं.. लेकिन मैंने कभी भी आपसे कुछ नहीं कहा।मेरे पापा ने मुझे अच्छी शिक्षा और संस्कारों से बड़ा किया है और अगर आज वो मेरे लिए महंगे तोहफे नहीं ला सकते तो क्या इसकी एवज में वह अपमान के हकदार हैं? 

आप ही बताइए मैं कहां गलत हूं..मैं सिर्फ आप से नहीं बल्कि आप सब से पूछती हूं क्या मनीषा भाभी के मायके वालों को अगर बुलावा देने के लिए स्वयं जाने की ज़रूरत है तो मेरे मायके वालों के घर क्यों नहीं”?

वहां बैठे किसी भी व्यक्ति के पास इस बात का उत्तर नहीं था।सुधा जी को तो काटो खून नहीं था।वह तो समझ नहीं पा रही थी कि आज उनकी बहू ने सबके सामने उनकी सच्चाई कैसे लाकर रख दी थी।

“नहीं-नहीं बहू, मेरा वह मतलब नहीं था”,अपनी गलती को छुपाते हुए सुधा जी ने अपनी बातों को चाशनी में लपेटते हुए बोला।



“नहीं मम्मी जी,यह आज की बात नहीं..मैं हर बार देखती आ रही हूं जब भी मेरे मायके वालों की बात आती है उन्हें मान नहीं मिलता बल्कि अपमान ही मिला है लेकिन उन्होंने कभी भी मुझे कुछ नहीं कहा और ना ही मैंने आपको कभी कुछ कहा है…लेकिन आज मेरे से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई इसलिए मैंने आपसे यह प्रश्न पूछा है”।

सुधा जी के पति मनोज जी भी आज बोल उठे जो हमेशा कम ही बोलते थे,” हां, बहू बिल्कुल ठीक कह रही है…तुम हमेशा घर में अपनी ही चलाती है आई हो।तान्या के पिताजी कितने अच्छे और भले इंसान हैं

लेकिन तुमने उन्हें कभी वह मान नहीं दिया बल्कि मुझसे पूछा जाए तो उन्हें यहां पर अपमान ही मिला है।मैंने तुम्हें आगे भी दो तीन बार टोका है लेकिन तुम नहीं मानी।

बहू, तुम फिक्र मत करो..इस बार मैं स्वयं जाकर उन्हें बुलावा देकर आऊंगा और अपनी पुरानी सारी गलतियों की माफी भी मांग लूंगा।हमारे घर में कभी भी किसी से कोई भेदभाव नहीं हुआ था और आगे भी नहीं होगा”। 

उनकी बात सुनकर सुधा जी की तो जैसे जबान ही थम गई हो..उनसे तो कोई शब्द भी बोला नहीं जा रहा था। अपने ससुर की बात सुनकर तान्या के मन को थोड़ी तसल्ली मिली और वह बोली,” पापा जी, जैसी आपकी मर्ज़ी..मैं तो बस इतना चाह रही थी कि जहां हम इकट्ठे रहते हैं वहां किसी से कोई भेदभाव ना हो”।

आज तान्या की बातों से सुधा जी की सच्चाई भी सबके सामने आ गई थी और सुधा जी ऐसा लग रहा था जैसे वह स्वयं ही अपनी नजरों में गिर गई हों।

#अपमान

#स्वरचित 

गीतू महाजन।

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