जीवन धूप और छांव का नाम है – मीनाक्षी सिंह

विक्रम -अरे ये क्या शिल्पी ,तुम अभी तक तैयार नहीं हुई ! तुम्हे  कल ही बता दिया था कि आज माँ ,बाऊजी आ रहे हैँ गांव से ! तुम साड़ी पहन लेना ,,घर का हाल ठीक कर लेना ! मैं सारा सामान ले आया हूँ मार्केट से ! जल्दी से सब्जी बना लो ,,जब वो लोग आ जायें तो पूड़ियां सेंक देना ! 

शिल्पी – विशाल ,,तुम्हे तो पता हैँ मुझे कुछ बनाना नहीं आता ! मेरे यहाँ कभी पूड़ी बनी ही नहीं ! कल मैने यू ट्यूब से देखकर ट्राई  भी किया तो बेल  ही नहीं पा रही थी ! हारकर मैने वो आटा रख दिया ! 

विक्रम – तुम्हारी भी क्या गलती ,,मैने ही गलती कर दी तुमसे शादी करके ! मेरा दिमाग खराब हो गया था जो तुमसे शादी की ! माँ बाऊ जी ने कितना मना किया कि मत कर दक्षिण  की लड़की से शादी वो  हमारे यहाँ के रीति रिवाजों को कभी नहीं समझ पायेगी ! और वो बिल्कुल सही थे ! तुम्हे कुछ बनाना नहीं आता जो मुझे पसंद हैँ ! 

शिल्पी (रोते हुए )- इसमें मेरी क्या गलती विक्रम ,मैं केरला से हूँ ! मेरे यहाँ के रीति रिवाज तुम्हारे यहाँ से बिल्कुल विपरित हैँ ! फिर भी मैने तुमसे कई बार कहा  कि मुझे अपने गांव ले चलो ,कुछ महीने वहाँ रहकर माँ जी से सब सीख जाऊंगी ! पर तुम ही कहते रहे  गांव हैँ ,नहीं रह पाओगी ! 

विक्रम – हर चीज में गलती मेरी ही हैँ ! ठीक हैँ मेरा ज्यादा दिमाग मत खाओ ! माँ बाऊ जी आने वाले होंगे ,मैं उन्हे स्टेशन लेने जा रहा हूँ ! माँ जानती हैँ उनकी बहू को कुछ नहीं आता ,वो खुद ही बना लेंगी पूड़ी ! 

विक्रम और शिल्पी एक साथ एक ही मेडिकल कोलेज से एमबीबीएस कर रहे थे ! शिल्पी केरला से थी ! फर्राटेंदार अंग्रेजी बोलती थी ! और देखने में सांवली सूरत ,बहुत ही फुर्सत से गड़े हुए नैंन नक्श ,पतले से शरीर की ,लम्बी ,कुल मिलाकर कोई भी एक नजर देख ले तो नजर चेहरे पर टिक जायें ! दूसरी तरफ विक्रम भी कोई कम नहीं था ! गोरा वर्ण ,6फुट लम्बाई ,अजय देवगन सी नशीली आँखें ! कोलेज की सारी लड़कियां विक्रम पर जान छीड़कती थी ! विक्रम किसी से दो शब्द भी बोल दे तो वो लड़की खुद को खुशनसीब समझती थी ! विक्रम था भी बहुत ही सभ्य ,कम बोलने वाला ,सबको इज्जत देने  वाला ! जब विक्रम का नंबर एम बी बी एस में आ गया ,तो माँ बाऊ जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ! उन्होने विक्रम की पढ़ाई के लिए अपने खेत गिरवी रख दिये ! विक्रम उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से था ! 




डॉक्टरी के दूसरे वर्ष तक शिल्पी और विक्रम ने एक दूसरे से बिल्कुल बात नहीं की ! पर एक दिन अचानक विक्रम की तबियत बिगड़ गयी ! उसे ड़ेंगू हो गया था ! प्लेटलेट्स गिरती जा रही थी ! बचने की कोई उम्मीद नहीं थी ! माँ बाऊ जी को विक्रम  ने नहीं बताया था की बड़े बूढ़े हैँ ,घबरा जायेंगे ! इस कठिन परिस्थिति  में  शिल्पी ने इंसानियत के नाते विक्रम की बहुत सेवा की ! उसे समय समय पर बकरी का दूध ,किवी ,पपीते के पत्ते का रस देती रही ! विक्रम के पास पैसों का भी अभाव हो गया था ! शिल्पी ने विक्रम के इलाज में  अपने जमा किये हुए पैसे भी खर्च कर दिये ! जिस समय सारे बच्चें पेपर की तैयारी में लगे थे उस समय शिल्पी विक्रम की सेवा में लगी थी ! कुछ दिनों में विक्रम बिल्कुल ठीक हो गया ! दोनों पढ़ाई में आये ठहराव को पूरा करने के लिए एक साथ पढ़ने लगे ! एक दूसरे की फिक्र  करने लगे ! विक्रम अब मन ही मन शिल्पी को चाहने लगा था ,पर कहने से डरता था कि बड़े रईस खानदान की लड़की हैं ! अगर मना कर दिया तो मेरा  मजाक बन जायेगा ! वो साये की तरह शिल्पी के साथ रहता कहीं शिल्पी को कोई घूर के ना देख ले ! शिल्पी भी समझने लगी थी! पढ़ाई के अंतिम वर्ष  में शिल्पी ने किताब में विक्रम के लिए तमिल  भाषा में एक प्रेमपत्र लिखकर भेजा ! विक्रम बेचैन हो रहा था क्यूंकी उसे तमिल नहीं आती थी ! विक्रम ने नेट की सहायता से एक एक शब्द का मतलब समझा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ! शिल्पी और विक्रम एक दूसरे को बेइंतहा प्यार करने लगे थे ! शिल्पी ने विक्रम को शादी करने के लिए जोर दिया ! विक्रम को पता था शिल्पी उसकी संस्कृति के बिल्कुल विपरित हैँ !

पर शिल्पी को देखते ही विक्रम की  माँ ने उसे गले लगा लिया ! बाऊ जी ने ज़रूर एक बार को कहा – देख ले बिटवा ,दक्षिण की हैँ ,हमारे रीति रिवाजों को समझ पायेगी क्या ! 

शिल्पी के माँ बाप भी आधुनिक सोच के थे ,जहां बेटी की ख़ुशी,वो ही उनकी ख़ुशी ! धूमधाम से शिल्पी और विक्रम का विवाह दोनों रीति रिवाजों से सम्पन्न  हो गया ! 

विक्रम और शिल्पी एमडी करने के लिए दिल्ली रहने लगे ! 

माँ बाऊ जी को विक्रम स्टेशन से घर ले आया ! शिल्पी पीले रंग की साड़ी पहने हुई थी ! उसने माँ बाऊ जी के पैर छूये ! दोनों ने सदा सौभाग्यवती रहने का आशिर्वाद दिया ! 

रागिनी जी (शिल्पी की सास ) ने पूरे घर का हाल एक नजर में ही परख लिया ! वो समझ गयी कि शिल्पी अपनी ग्रहस्थी सुचारू रुप से नहीं चला पा रही हैँ ! 




रागिनी जी ने शिल्पी के साथ मिलकर पूड़ीय़ां बनायी ! वही विक्रम भी किचेन में खड़ा था ! रागिनी  जी लोई बनाती हुई कहती जा रही थी ,पता हैँ विक्रम जब तेरे बाऊ जी मुझे ब्याह के लाये थे मुझे भी पूरिय़ां बनानी नहीं आती थी ! पूड़ी का सख्त आटा भी गूँथना नहीं आता था ! हमारी शिल्पी ने तो कितना अच्छा आटा गूँथा हैँ ! तुम्हारे बाऊ जी,, जब घर में सब काम में लगे होते ,तब चुपके से रसोई में आ जाते ,,मुझे जो नहीं आता बता ज़ाते ! मैं तो शिल्पी की तरह पढ़ी लिखी और नौकरी वाली भी नहीं थी ,फिर भी तुम्हारे बाऊ जी तीनों बच्चों को नहलाते ,बच्चों को वही संभालते ,मैं बस घर के काम करती ! तभी धीरे धीरे सब सीख गयी ! हमारी शिल्पी तो आज के महंगाई के दौर में तुम्हारे साथ कांधे से कांधा मिलाकर चल रही हैँ ,तुम्हे आर्थिक सहयोग भी दे रही हैँ ! घर के काम भी धीरे धीरे सीख जायेगी ! तुझे तो खुश होना चाहिए ,तुझे तेरे बच्चों के लिए हमारी तरह बाहर कोई पढ़ाने वाला नहीं ढूंढना पड़ेगा ,घर में ही क्लिनिक हैँ ,बच्चें घर दोनों संभाल लेगी!!  और तेरी माँ किसलिये हैँ ! अब मैं तभी जाऊंगी जब मेरी बहू तेरी  पसंद की सब चीज बनाना सीख जायेगी ! मुझे तो भी समय लगा ,आजकल के बच्चें फास्ट हैँ ,बहुत जल्दी सीखते हैँ  ! क्यूँ सही कहा ना शिल्पी बेटा ,,सीखेगी ना मुझसे ! 

शिल्पी  ने माँ जी को कस्के गले लगा लिया ! 

रागिनी जी भी इतने प्यार भरे स्पर्श से खुद को रोक ना सकी ! बोली – धत पगली ,रूलायेगी क्या ! ज़िन्दगी तो धूप छांव का नाम है ! जीवन में ऊतार चढ़ाव चलते रहते हैँ ! और हाँ खबरदार विक्रम – अगर मेरी फूल सी बहू को रूलाया तो ! लाखों में एक हैँ मेरी बहू ! 

विक्रम भी माँ के गले लग गया और बोला – आज आप इस पगली को कढ़ी बनाना सीखा दो माँ ! मैं पकोड़े बनाऊंगा !! विक्रम की नजरों में आज शिल्पी की अहमियत फिर से बढ़ गयी थी !! और उसे खुद के व्यवहार पर पछतावा हो रहा था !! 

पाठकों ,,अगर घर के बड़े थोड़ी समझदारी दिखा दे तो कई रिश्तों में आयी दरार भर सकती थी ,एक सच्चा रिश्ता टूटने से बच सकता हैँ ! 

#कहींधूपकहीं_छांव 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!