“इतना सन्नाटा क्यों है…भई” – अनु अग्रवाल

“ये रिमोट वाली कार मेरे पापा लेकर आये थे……मैं पहले खेलूंगा इससे”- राहुल ने चीकू के हाथ से कार छीनते हुए कहा।

लेकिन…… भैया ताऊजी ने ये मुझे दी थी…..तो मेरी हुई न….खेलने दो न मुझे- चीकू रुआंसू होकर बोला।

राहुल(10) और चीकू(6) दोनों चचेरे भाई हैं….जो एक संयुक्त परिवार में रहते हैं……अब परिवार संयुक्त है तो खटपट तो चलती रहती है लेकिन प्यार भी बहुत है एक दूसरे के बीच।

दोनों का शोर सुनकर…..चीकू की मम्मी टीना आ जाती है…

“जब तुम दोनों ठीक से खेल नहीं सकते तो मत खेला करो। दीदी आप राहुल को समझाती क्यूँ नहीं? बड़ा है चीकू से…. थोड़ी तो समझदारी दिखाया करे और तू क्यों खेलता है राहुल के साथ….चल अपने कमरे में अब…..वहीं खेलना…और हाँ राहुल….. ये कार तुम अपने पास ही रख लो इसके पापा इसे दूसरी इससे भी महंगी वाली लाकर देंगे कहकर चीकू को लगभग घसीटती हुई वहां से ले जाती है।

 

मेघा(जेठानी) ये सब देख रही थी…..वो भी गुस्से में लाल- पीली होकर टीना के जाने के बाद राहुल को अच्छी खासी डांट पिला देती है।

घर का माहौल अचानक से खराब हो जाता है…….

शाम के समय………..

“बड़ी माँ…….बड़ी माँ….मेरे और भैया के लिए आप पास्ता बना दोगी….हम हॉल में ही टी.वी.पर कार्टून देख रहे हैं- चीकू आँधी की तरह आया और मेघा जो शाम की चाय बना रही थी…..फरमान सुना के भाग गया।

बिना कुछ जवाब दिए …… मेघा ने पास्ता के लिए पानी उबलने रख दिया।

“अरे….आज रसोई में इतना सन्नाटा क्यों है भई……और टीना किधर है? टीना…..टीना……- सास करूणा जी आवाज़ लगाने लगीं।




जी माँजी – टीना ने आकर उदासी भरे लहजे में कहा।

“दोपहर से देख रही हूँ…..दोनों एक दूसरे से बात ही नहीं कर रही हो……. देखो…जीवन में इस तरह की धूप- छांव तो आती रहेंगी लेकिन तुम दोनों मिलकर उसका कैसे सामना करती हो…यह बात जरूरी है।

एक सीख अपनी इस माँ की हमेशा याद रखना……. बच्चों की लड़ाई में कभी भी बीच में नहीं पड़ना।

अब दोनों कैसे खुशी-खुशी अपनी टीम बनाकर कार्टून देख रहे हैं….बच्चे तो एक पल लड़ते हैं और दूसरे ही पल सब कुछ भूल कर फिर से खेलने लग जाते हैं और तुम दोनों मुँह फुलाये बैठी हो और मैं ये भी जानती हूँ तुम दोनों एक दूसरे से बात किये बिना नहीं रह सकतीं। टीना की लाल आँखें बता रही हैं…. रोयी है दोपहर भर और मेघा….का बुझा चेहरा बिन कहे सब कुछ कह गया। 

चलो…….अब बात को यहीं खतम करो और बात करना शुरू करो…….तुम दोनों की चुप्पी से घर भी खाने को दौड़ रहा है…सब कुछ भूलकर गले मिलो तुम दोनों।”- करुणा जी समझाकर चली गयीं।

टीना ने आगे आकर मेघा से माफी माँगी तो मेघा ने भी कहा…चल पगली…तू तो छोटी है …..मैंने भी बड़प्पन नहीं दिखाया।

अच्छा…..चल छोड़ ये सब… पास्ता खाएगी तू भी??

टीना- हाँ…हाँ क्यों नहीं दीदी…मुँह में पानी आ गया

“मुझ बुढ़िया को मत भूल जाना…..करुणा जी ने आवाज़ देकर कहा….फिर मन मे खुशी से बुदबुदाती हैं…बस सुलह हुई नहीं और शुरू हो गया दोनों का बहन-बहन खेलना।

टीना और मेघा….चटपटा बना देंगे इनका पास्ता और खिलखिलाकर हँस पड़ती हैं।

 

तो दोस्तों…. कैसी लगी आपको मेरी ये काल्पनिक कहानी..

हाँ… हाँ… पूरी तरह से काल्पनिक ही है। इस कहानी को पढ़ने के बाद पाठक गढ़ ये कमेंट करते हैं असलियत में ऐसी सास नहीं होती सिर्फ कहानियों में ही होती है। लेकिन असलियत में भी होती हैं दोस्तों…और नहीं भी हैं तो शायद मेरी कहानी को पढ़कर रिश्तों में सकारात्मक बदलाव आए तो मेरी कहानी सार्थक होगी। वैसे इस बारे में आपकी क्या राय है…करुणा जी ने ठीक कहा या नहीं कि बच्चों के झगड़ों में नहीं पड़ना चाहिए। कमेंट में बताइयेग जरूर।

 

एक नयी कहानी के साथ जल्दी ही मिलती हूँ।

आपकी ब्लॉगर दोस्त-

अनु अग्रवाल।

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