होनहार बेटा – पूनम अग्रवाल

राम आज बहुत खुश हैं , खुश हो भी क्यों न ?आज उसके माॅं बापू गाॅंव से बंगलौर आ रहे हैं । अभी तीन महीने पहले की ही तो बात है जब उसने कामनी के साथ सात फेरे लेकर उसे जीवन संगिनी बनाया था । माॅं भी बहुत खुश थी ।शादी का सारा काम दौड़ दौड़ कर कर रही थी । सारे गाॅंव को न्योता था । सभी गाॅंव वाले भी राम की तरक्की से बहुत खुश थे । आखिर होंगें भी क्यों न ? गाॅंव का यही पहला बालक बी टैक की पढ़ाई करके सालभर पहले बहुत अच्छी नौकरी पर लगा है ।

साठ लाख सालाना का स्लैब मिला था उसे । लगे तो और बच्चे भी नौकरियों पर , लेकिन इतना अच्छी पगार किसी को नहीं मिली। लेकिन इस सब के बीच यह भी अफसोस था कि उसकी नियुक्ति बंगलौर हुई थी और उसे एक सप्ताह के अन्दर बंगलौर जाना था । राम के बापू भी दस जमात पढ़ें थे और उनको पढ़ाई का मूल्य पता था इसलिए उन्होंने सहर्ष उसको बंगलौर जाने की इजाजत दे दी थी लेकिन माॅं थोड़ी मायूस हुई पर पिता ने उसे समझा लिया ।

माॅं ने बहुत तरह के लड्डू मठरी ,तरह तरह के अचार ,कुछ बर्तन और आवश्यक सामग्री उसके साथ बाॅंध दी और वह हवाईजहाज में बैठ कर बंगलौर पहुंच गया।दो दिन के अन्दर ही दिन उसने अपना काम सम्हाल लिया। वह बहुत मेहनत और लगन से काम करता जिससे उसके वरिष्ठ जन उससे बहुत खुश रहते ।

इस बीच शहर की पढ़ी बढ़ी कामनी अपनी मामी के घर गाॅंव में रहने आयी । उसका व्यवहार , बोलने का सलीका , बड़ों की इज्जत करने का ढंग राम की माॅं को भा गया और वह उसे अपनी बहू बनाने का सपना देखने लगीं । राम के बापू को भी वह पसन्द थी । पहले उन्होंने कामनी की मामी की जगह राम से ही बात करने का निश्चय किया और उसे फोन लगाया । यूॅं तो राम लगभग रोज ही एक बार माॅं से बात कर लेता था लेकिन आज माॅं का फोन ? आखिर क्यों? अनेक प्रश्नों ने कुछ पलों में ही उसके अंदर हलचल मचा दी । लेकिन अगले ही पल जब माॅं की खनकती आवाज जब उसके कान में पड़ी ,”कैसे हो बेटा” ? तब वह निश्चिंत हुआ ।

माॅं ने उसे कामनी के बारे में बताया और उसकी राय पूछी। राम ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया कि माॅं , ” आपकी राय मेरी राय ” । मैं आपकी इच्छा के विरुद्ध नहीं हूॅं। अब माॅं ने कामनी की मामी से बात की । उन्होंने भी घर में बात कर सहर्ष अपनी रजामंदी दे दी । इतने अच्छे और होनहार लड़के को वे कैसे हाथ से जाने देतीं । उन्होंने तो उसे बुलाया ही इसी प्रयोजन से था लेकिन ये न पता था कि बात यूॅं इतनी जल्दी बन जाएगी । बस राम की माॅं चाहती थी कि शादी गाॅंव से ही हो क्योंकि राम उसकी अकेली संतान है । कन्यापक्ष ने भी कोई आपत्ति दर्ज नहीं की । पंडित जी से लग्न निकलवा कर शादी का दिन पक्का कर दिया गया और दोनों पक्ष तैयारियों में जुट गए।

राम को मात्र पंद्रह दिन की छुट्टी मिली और वह गाॅंव आ गया । यूॅं तो गाॅंव में सभी काम मिल जुल कर हो जाता है फिर भी सभी शादी की तैयारियों में उसने भी माॅं बापू की मदद की ।

पाॅंच दिन शादी के कार्यक्रम चले जिसमें सभी ने उत्साह से भाग लिया और अनन्त: कामनी बहू बन कर घर आ गयी । आज माॅं बहुत खुश थी । देखते-देखते कब छुट्टी समाप्त हो गयीं पता न लगा और राम के वापस बंगलौर जाने का दिन आ गया । राम तो चाहता था कि कामनी कुछ समय माॅं बापू के साथ रहकर उनकी सेवा करें पर माॅं न मानी और उसे,”मैं कुछ समय बाद बंगलौर आऊंगी” कह कर कामनी को उसके साथ भेज दिया ।

आज वही दिन है । राम ने माॅं बापू का टिकट भेज दिया है और फोन पर सब समझा दिया है कि हवाई अड्डे पर कैसे कैसे करना है

। वे दोनों आज बंगलौर जा रहे हैं ।आज फिर माॅं ने बेटे के पसन्द के सामान बना कर रख लिए हैं।

इतना बड़ा हवाई जहाज देख कर माॅं खुश हो गयी ।आज तक तो वह घर के ऊपर उड़ता हुआ हवाईजहाज ही देखा करती थी । आज यथार्थ धरती पर ……। मन में सतरंगी सपने बुनते कब यात्रा पूरी हो गयी , पता ही न लगा । जैसे ही हवाई अड्डे से बाहर निकले , राम और कामनी ने पैर छूकर , फूलों की माला पहना कर उनका स्वागत किया और टैक्सी लेकर घर चले । कामनी ने घर भी सजा रखा था । माॅं बापू बहुत खुश हुए और अपने को धन्य माना । राम और कामनी भी माॅं बापू का साथ पाकर फूले न समाये।

स्वरचित

पूनम अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!