गृहप्रवेश (भाग 5) – मंजरी त्रिपाठी

नहीं नताशा ऐसी कोई बात नहीं है।मुझे तुम्हारे भाई की सगाई से भला क्या दिक्कत हो सकती है।मुझे ना खुशी है और ना ही कोई दुख।

अरे आप ऐसे कैसे बोल रहे हैं….कोई बात हुई है क्या??मिहिर की बात सुनकर नताशा चोंकते हुये बोली।

कोई बात नहीं हुई नताशा बस मैं आश्चर्यचकित हूँ कि तुम कैसे बदल गई,मिहिर चाय का कप रखते हुये बोला।

मैं बदल गई??क्या बदल गई मैं??तुम खुलकर बोलों मैं तुम्हारी बात को समझ ही नहीं पा रही हूँ नताशा चोंकते हुये बोली।

साफ ही बोल रहा हूँ और साफ ही बोलता आ रहा हूँ,मेरी बात और आचरण मैं कभी कोई मतभेद नहीं रहा।तुम ही ने कहा था ना कि तुम्हे मेरे अलावा दुनियां में और कुछ नहीं चाहिये।

मैंने घर छोड़ दिया,पापा रोज सुबह घर के बाहर से निकलते रहे पर तुम स्वम् साक्षी हो कि मैंने उनकी ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा।माँ मेरे बिना जी रही है या मर गई है रो रोकर मैंने एकबार भी पलट कर नहीं पूछा……तो तुम कैसे अपने माता पिता को इस घर में बुला सकती हो।

एक बात समझ लो नताशा यदि मैंने तुम्हारी एक बात पर माता पिता घर सब छोड़ दिया है तो अब तुम भी अपने माता पिता से कभी ना तो मिल पाओगी,ना उन्हे इस घर बुला पाओगी और ना हीं कभी उस घर में जाओगी।

तुम मेरे साथ खुश रहो और मैं तुम्हारे साथ।हम दौनो के जीवन में माधव को छोड़कर और कोई रिस्ता अब नहीं है।इसलिए अपने मम्मी पापा को तुम कैसे रोकोगी ये तुम समझो,लेकिन इस घर में कोई नहीं आयेगा।मिहिर दो टूक लहजे में अपनी बात कहकर माधव को गोद में उठाकर बाहर निकल गया,और पीछे छोड़ गया विचारों कें भंवर में फंसी नताशा को।

***

ऐसा कैसे कर सकता है मिहिर, नताशा की मम्मी ने फौन पर चीखते हुये कहा।अरे इकलौती बेटी और इकलौता जमाई ही सगाई में नहीं होगा तो लोग हँसेगे हम पर।पचास बातें बनायेंगे।तुम समझाओ मिहिर को ऐसा भी कहीं होता है भला।

मम्मी में हर प्रकार से समझा चुकी हूँ।और भी समझा दूंगी।पर अभी आप और पापा मेरे घर मत आना मुझे मिहिर की बातों से डर सा लग रहा है,पता नहीं वो क्या बर्ताव करे।

मम्मी मैं फौन रखती हूँ,मिहिर के आने का समय हो गया है,मैं रात को उससे और बात कर लूंगी फिर जैसा होगा आपको बताउंगी।

ठीक है बेटा पर तुम्हें किसी भी कीमत पर मिहिर को समझा बुझाकर सगाई में लाना ही होगा वरना बहुत जगहँसाई हो जायेगी।

***

रात को सोते समय भी नताशा ने बात छेड़ दी कि उन दौनो के ना जाने से उसके माता पिता की समाज में बहुत हँसी होगी और भाई के ससुराल वाले भी बातें बनायेंगे,हमें चलना चाहिये।पर मिहिर टस से मस ना हुआ।उसने साफ कह दिया कि वो जगहँसाई से यदि डरता होता तो कभी भी उसके लिये अपने माता पिता को नहीं छोड़ पाता,इसलिये जब उसने उसकी एक बात पर सबकुछ छोड़ दिया है तो वो अब नताशा से भी वही उम्मीद रखता है।

सुबह मिहिर के आफिस जाते ही नताशा ने माँ को फौन करके सारी बातें बता दीं,नताशा की माँ के खुद समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।उन्होने कहा कि देखो मैं ही कोई हल निकालती हूँ।

नताशा की माँ को जब कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने जानकीजी को फौन किया और पहले तो अपनी बेटी की तरफ से क्षमा माँगी,और कहा कि उसे बच्ची समझ कर क्षमा करदे और फिर उनको सगाई में आमंत्रित करने के साथ ही मिहिर की हठधर्मिता की पूरी बात बता दी,उन्होने भावुक लहजे में जानकी जी से विनती की अब वो ही बिरादरी में उनके परिवार की इज्ज़त को बचा सकती हैं।जानकीजी को भी मिहिर से ऐसी उम्मीद नहीं थी।उन्होने उन्हें आश्वासन दिया कि वो अपने बेटे बहू और नाती के साथ सपरिवार सगाई में अवश्य ही सम्मिलित होंगी।

******

मिहिर जैसे ही आफिस से घर आया तो अंदर का शोर शराबा सुनकर समझ गया कि नताशा आखिरकार नहीं   मानी। उसने अपने माता पिता को बुला ही लिया।उसने सोच लिया कि वो आज के बाद  नताशा से कभी बात भी नहीं करेगा और ना ही उसके माता पिता से।ये सोचते हुये वो घर के अंदर आया तो देखा कि माधव जगदीश जी की गोद में बैठा उनके चश्मे से खेल रहा है।और जानकी जी सोफे पर बैठी चाय पी रहीं हैं।

मिहिर को देखकर जानकीजी ने मुँह घुमा लिया और बोलीं नताशा बेटा थोड़ा जल्दी करो वरना देर हो जायेगी।जरुरत भर का सामान अभी रख लो बाकी का बाद में आ जायेगा।

“माँ…..पापा आप दौनो कब आये” मिहिर ने चरणस्पर्श करते हुये पूछा।मगर दौनो में से किसी ने उसकी बात का कोई जबाव नहीं दिया तो वो अंदर कमरे में नताशा के पास चला आया।

कहाँ जा रही हो तुम,और ये सामान किसलिए पैक कर रही हो??मिहिर ने हैरान होते हुये कहा।

मैं अपने घर अपनी ससुराल जा रही हूँ मिहिर….क्योंकि मैं अब ये समझ चुकी हूँ कि स्त्री का सबसे बड़ा सहारा उसके सास ससुर होते हैं जो उसके आत्मसम्मान की रक्षा करते हैं।मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई मिहिर,हो सके तो मुझे क्षमा कर दो नताशा रोते हुये मिहिर के सीने से लग गई।मिहिर की भी आँखें भीग उठी और उसने प्यार से उसका बाल सहलाते हुये अलग किया।और बाहर आ गया…..।

मिहिर आकर के जानकीजी के पास बैठ गया और उनकी गोद में अपना मुँह छिपा कर बोला “माँ क्या तुम मुझे माफ कर सकोगी??मिहिर की आवाज भर्रा उठी और जानकी जी की आँखों से आँसू बह उठे……मेरे लाल अब कभी अपनी माँ को छोड़कर मत जाना,तुम तीनों के बिना मेरा घर आँगन सूना है रे…..

माँ अपनी बहू और नाती के साथ मुझे भी घर ले चलोगी ना??मिहिर ने शरारत से जानकीजी की तरफ देखते हुये कहा तो जगदीशजी नताशा और जानकीजी जोर से हँस पड़े।

चल अब बातें ना बना, उठकर जल्दी कर ले….आज मुझे अपनी बहू का #गृहप्रवेश कराना है..

समाप्त

©®मंजरी त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!