एक थी श्रद्धा…..  – विनोद सिन्हा “सुदामा”

आप समझते नहीं पापा…आपके खयालात आज भी वही पुराने और घिसेपिटे हैं…

अब मैं बड़ी हो गई हूँ..और अपना अच्छा बुरा सोच सकती हूँ.और मुझे मेरा फैसला लेने का पूरा अधिकार है..

लेकिन बेटा …..ऐसी भी क्या जल्दी…पहले उसे समझ तो ले..जान ले अच्छी तरह क्या करता है..कहाँ रहता है..घर परिवार कैसा है…

विकास जी ने बेटी को मानों समझाते हुए कहा…

सब जानती हूँ उसके बारे में…अच्छा खासा घर बार है..उसके पिता का बहुत बड़ा कारोबार है..

आफताब मुझे दिलो जान से चाहता है.और मेरे साथ रहना चाहता है…इसमें हर्ज या बुराई क्या है…

बड़े शहरों में तो आम सी बात है..लड़के लड़कियों का एक साथ रहना..दूसरी मैं उसे पसंद करती हूँ वो मुझे पसंद करता है

बस यही काफी है उससे प्यार करने और शादी करने के लिए

लेकिन अभी उम्र ही क्या हुई है तुम्हारी…. माना जॉब करने लगी हो खुद कमाने लगी हो …इसका मतलब यह नहीं कि बहुत बड़ी हो गई हो…

तुमने अभी दुनिया देखी कहाँ है..

लोग उपर से तो बहुत मीठे व सीधे सादे दिखते हैं लेकिन अंदर मन में कपट एवं जालसाजी भरी होती है.अक्सर लोग तुम जैसी लड़कियों की नादानी व उनकी कच्ची उम्र का फायदा उठा लेते हैं

वह भी बस तुम्हारे साथ वही कर रहा…कोई प्यार व्यार नहीं करता तुमसे….

मेरी बात मान जिद्द छोड़ दे

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा

मै नहीं चाहता बाद में तुम्हें पछताना पड़े

मैं कुछ नहीं जानती..

मैने आफताब के साथ रहने का फैसला कर लिया है…




श्रद्धा ने गुस्से में बिफरते हुए पिता विकास को जवाब दिया….

कम से कम मेरी ईज्जत का तो खयाल कर…लोग क्या कहेंगे…

कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे हम…

क्यूँ…भला..और लोगों की फिक्र क्यूँ करना कोई कुछ कहे..मुझे क्या लेना..देना

क्या मैं लोग बाग से पूछकर किसी से प्रेम करूँ या शादी करूँ..

लेकिन उसका जात मजहब भी तो हमसे अलग है…

हम हिंदू वह मुसलमान…हम दोनों का धर्म समुदाए रीति रिवाज बिल्कुल अलग है..

तो क्या हुआ…. हम दोनों की सोच आपस में बहुत मैच करती है….हम दोनों ही महसूस करते हैं कि हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं,इसलिए हमें लगता है कि हम दोनों एक साथ अच्छी तरह से रह लेंगे..

लेकिन बेटा….

अंतरजातीय या अंतर धार्मिक विवाह कभी सफल नहीं हुआ..सदा परेशानी का ही सबब बना है..

कर कुटुंब सगे संबंधी सब हिन नजरों से देखते हैं..

प्रेम में पड़कर अंतर्जातीय विवाह कर लेने से जीवन में हानियां छोड़ कुछ नही..

अगर हम माता पिता सगे सम्बन्धी मान भी जाते हैं तब भी समाज में स्वीकृति मिलना कठिन हो जाता है..

और सच पूछो तो माता पिता जीते जी हजार मौतें मरते हैं

हर माता पिता की तरह विकास और पत्नी सुमन का भी सपना था कि उनकी बेटी श्रद्धा हिंदू परिवार के ही लड़के को पसंद करे और शादी करे,

पर ये जो दिल के मामले हैं, ये कहाँ  धर्म जाति और मजहब की बातों को जानते मानते हैं ,और वह भी जब प्यार करने वाले आज के उच्च शिक्षित और आत्मनिर्भर हो…

श्रद्धा भी उसी खयालातों में घिरी थी..और जिद्द पर अड़ी थी..

लेकिन फिर भी विकास ने बेटी को समझाने का अपना प्रयास नहीं छोड़ा…

मेरी बात मान …..अगर तू खुद की पसंद से ही शादी करना चाहती है तो कोई अच्छा सा हिंदू लड़का देख शादी कर ले वादा करते हैं हम कुछ नहीं कहेंगे..




कुछ आगे का तो खयाल कर…

श्रद्धा के पिता ने मानों बेटी को समझने की पुनः असफल कोशिश की..

लेकिन श्रद्धा थी कि कुछ  मानने या समझने के लिए तैयार नहीं थी.

उसकी आँखों पर प्रेम की पट्टी बंधी थी…

उसने दो टूक जवाब दिया..

सब दकियानूसी बातें हैं…अब जमाना बदल रहा है..कोई जात पात नहीं मानता…

आपको जो सोचना है सोचिए मुझे फर्क नहीं पड़ता..

मैं शादी करूँगी तो आफताब से नहीं तो मैं अपनी जान दे दूँगी…

तभी काफी देर से चुपचाप खड़ी उसकी माँ ने उसकी गालों पर दो तमाचें जोड़ से जड़ दिए….

शायद बेटी की उदंडता देख सब्र जवाब दे गया था सुमन का.

तेरी हिम्मत कैसे हुई तुम्हारे पापा से इस तरह बात करने की

हमने बहुत गलत किया जो तुझे इतने लाड प्यार से पाला….

तेरी हर ख्वाहिश पूरी की..

हैसियत नहीं रहते भी एक पल को कभी तुझे किसी चीज की कमी नहीं महसूस होने दी और आज तू…कहती है तुझे हमसे कोई मतलब नहीं…

तो कोई एहसान नहीं किया आप लोगों ने मुझपर

सभी माता पिता करते हैं

जहाँ तक दोस्तों के बीच inferiority complex की ही शिकार रही सदा

मानों श्रद्धा ने अपने ही माता पिता के गालों पर जोर से  तमाचा मारा था..

पिता विकास की हिम्मत जवाब दे रही थी..डर था कि ज्यादा जिद्द करने पर बेटी कुछ गलत न कर ले..

उन्होंने पत्नी को समझाया…

और न चाहकर भी भारी मन से आफताब के घर उसके माता पिता से आफताब व अपनी बेटी श्रद्धा की शादी के लिए..बात करने पहुँच गए…

हालांकि वे दोनों यह फैसला लेने में किन मानसिक परेशानियों से गुजरे थे यह वही जानते थे…फिर भी मन मार आ पहुँचे थे..वहाँ..

लेकिन जाने क्यूँ आफताब के माता पिता ने इस शादी से इनकार कर दिया…आफताब के माता पिता को भी अंतर धार्मिक विवाह से खासा एतराज था…और उन्होंने श्रद्धा के माता पिता को अपमानित कर वैरन भेज दिया..

निराश हताश उन्होंने घर आकर श्रद्धा से सारी बात कही..लेकिन श्रद्धा थी कि आफताब का जिद्द किए बेठी थी..




विकास ने बेटी श्रद्धा को फिर समझाने की कोशिश की

उन्होंने समझाते हुए श्रद्धा से कहा कि यह अंतर धार्मिक विवाह नहीं हो सकता..अब तो आफताब के माता पिता भी राजी नहीं..

तू भी अपनी जिद्द छोड़ दे…बहुत लड़के मिल जाऐंगे तुम्हें…

इसपर छूटते ही श्रद्धा ने कहा  कि मैं 25 साल की हो गई हूँ…मैने पहले भी कहा आपको..मुझे अपने फैसले लेने के पूरे अधिकार है। मुझे आफताब के साथ ही शादी करनी है चाहे जो हो जाए.. या फिर उम्र भर मुझे उसके साथ रिलेशनशिप में ही क्यूँ न रहना पड़े…रह.लूँगी..

माँ ने भी समझाने की पूरी कोशिश की..

लेकिन वह नहीं मानी

श्रद्धा ने यह कहकर कि #मैं आज से आपकी बेटी नहीं हूंँ..आफताब के लिए अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया..और आफताब के साथ रहने चली गई…

वर्षों की परवरिश को आज उनकी बेटी ने ही दागदार कर दिया था..उनके लाख मना करने के वावजूद दोनों ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया था….

जितने लोंग उतनी बातें…माँ यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी और  कुछ दिनों बाद हार कर दम तोड़ दी.

अपने प्यार पर भरोसा करके श्रद्धा अपना घर परिवार छोड़कर अफताब के साथ चली गई और उसी के साथ रहने लगी लेकिन उसे कहाँ पता था कि उसका प्रेमी अफताब ही उसकी मौत का कारण बन जाएगा..




उसे कहाँ मालूम था कि जिस आफताब को उसने देवता की तरह पूजा वो हिंसक दरिंदा निकलेगा..और वह क्रूरता की सारी हदों को पार करने पर आमादा हो जाएगा…

जिस आफताब को श्रद्धा ने पूरी श्रद्धा से प्रेम किया, वो तो दरिंदा निकला,जिस आफताब को श्रद्धा ने अपनी जिंदगी समझा, वो उसकी मौत बन गया,जिस आफताब के लिए श्रद्धा ने अपने माता-पिता तक को छोड़ने से गुरेज नहीं किया, आज उसी आफताब ने उसे मौत की नींद सुला दी थी….

जाने क्या हुआ….किस गुस्से में अफताब ने श्रद्धा को मार दिया और उसके शव के 35 टुकड़े कर दिए…उसने सिर्फ श्रद्धा के टुकड़े ही नहीं किए बल्कि उसके शरीर के टुकड़ों को कई दिनों तक फ्रिज में रख बड़ी बेरहमी और चोरी छिपे सभी से छिप छिपाकर बाहर ले जाकर रात के समय फेंका आता..

इसे नियति कहें या हादसा…आज अपने माता पिता की नाजों पली बेटी श्रद्धा अपनी छोटी सी जिद्द व अपने अंधे प्रेम में डूबी होने के कारण टूकड़ों में बँटी फ्रिज में पड़ी थी.

उसे इतनी दरिंदगी से काट मारा गया था कि उसकी लाश देख रूह तक काँप रही थी सबकी…

क्या सच में प्रेम का अंत ऐसा होता है..क्या वास्तव में प्रेम का रंग ऐसा होता है..

कहते हैं अगर आपको आपका प्यार मिल जाए तो आपको दुनिया की हर खुशी मिल जाती है.लेकिन ऐ कैसा प्यार था श्रद्धा का जिसने उसी की जान ले ली थी…

श्रद्धा जाने को तो चली गई.. लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई..जिन प्रश्नों का उत्तर ढूँढना शायद आज के परिवेश में हम में से किसी के लिए इतना आसान नहीं..

मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य जात मजहब या अंतर धार्मिक विवाह पे टिपप्णी करना या गलत बतलाना नहीं बल्कि…

यह घटना जात पात मजहब से आगे उन किशोर किशोरियों के लिए एक सबक है…जो अपने माता पिता के द्वारा जीवन भर के दिए लाड़ प्यार का परित्याग कर क्षणिक दोस्ती,अपने अंधे प्रेम और कुछ दिन की जान पहचान को ही सर्वस्व मान अपना सबकुछ गँवा बैठते हैं….

इक पल को भी नहीं सोचते…जिस माँ ने नौ महीनों तक अपनी कोख में रख कर सृजित किया..पालपोस कर बड़ा किया..वो माँ कभी गलत नहीं हो सकती…

जिस पिता ने धूप बारिश.. ठंड जाने कितनी परेशानियों का सामना कर बेटे या बेटी को उनके पैरों पर खड़ा किया….वह कभी गलत नहीं हो सकता….

लेकिन जाने क्यूँ आज ऐसी कई वारदातें देख सुन कर भी लोग  इन सब बातों को समझ नहीं पातें…माँ बाप की ईज्जत धूमिल करते हैं यहाँ तक श्रद्धा की तरह अपनी जानें गँवा बैठते हैं..

विनोद सिन्हा “सुदामा”

सत्य घटना पर आधारित….

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