डबल ड्यूटी-कहानी-देवेंद्र कुमार

लखमा तेजी से हाथ चला रही है। आज उसे जल्दी घर जाना है। कोई मेहमान आने वाला हैं। लेकिन काम तो पूरा करना ही है। लखमा बाज़ार में तीन दुकानों में सफाई का काम करती है। पति मजदूर है। दोनों के काम करने पर भी घर मुश्किल से चलता है। एक बेटा है अमर|

दुकानों के बाहर बरामदे में पोंछा लगाते हुए लखमा की नज़र एक बच्चे पर पड़ी जो कुछ आगे एक दुकान के बाहर सफाई कर रहा था। लखमा देखती रही- बच्चा सात आठ साल का लग रहा था। वह उसे देखती रही- बच्चा कोशिश कर रहा था पर सफाई उससे हो नहीं रही थी। पानी की बाल्टी खिसकाते हुए वह फिसल गया और बाल्टी उलट गई। अब लखमा रुक न सकी। उसने बढ़ कर बच्चे को गोदी में उठा लिया और सिर सहलाते हुए बोली-‘’ तेरा नाम क्या है?’’

‘’ जानी।’’ उसने कहा।

‘’ तू यह काम क्यों कर रहा है? यह तेरे बस का नहीं है। ‘’ पूछने पर लखमा ने जान लिया कि जानी की माँ रेशमा बीमार है। वह भी लखमा की तरह दुकानों में सफाई का काम करती है। और उसने ही जानी को सफाई करने भेजा था। ऐसी स्थिति से कई बार लखमा को भी गुजरना पड़ा था। वह जानती थी कि ऐसे में काम हाथ से निकल जाता है। इसीलिए जानी की माँ ने उसे काम करने भेजा होगा।

लखमा ने जानी से कहा-‘’ बेटा , तू रहने दे। जा बच्चों के संग खेल। मैं अभी निपटा देती हूँ। ‘’ जानी हंसने लगा और सडक पर खेलते बच्चों के बीच चला गया। हालांकि लखमा को घर जाने की जल्दी थी पर उसे जानी का अधूरा काम पूरा करना ही था। उसने जल्दी जल्दी काम निपटाया फिर घर की तरफ चल दी । उसने देखा जानी सड़क पर दूसरे बच्चों के साथ खेल रहा था, लखमा के होठों पर मुस्कान आ गई। उसे अच्छा लग रहा था। पर घर पहुँच कर मूड बिगड़ गया, उसे घर लौटने में देर हो गई थी। इसलिए मेहमान बिना मिले चला गया था।

अगली सुबह लखमा काम पर पहुंची तो जानी फिर वहाँ दिखाई दिया। इसका मतलब था कि जानी की माँ अभी बीमार थी। ‘ मुझे न जाने कितने दिन डबल ड्यूटी करनी होगी। ‘ वह यह सोच कर पछता रही थी कि उसने क्यों यह मुसीबत अपने ऊपर ले ली। वह जानी को सफाई करते देखती रही। वह ठीक तरह से काम कर नहीं पा रहा था। पर लखमा ने उसकी मदद नहीं की। लेकिन पोंछा लगाते हुए जब जानी दो बार फिसल गया तो लखमा रह न सकी। उसने जानी का हाथ पकड़ कर जोर से अपनी ओर खींचा और चिल्ला कर बोली –‘’ कल तुझे मना किया था न कि तू यह काम नहीं कर सकता। बता फिर क्यों आया ?’’



1

हाथ खींचने से जानी रो पड़ा। सुबकते हुए बोला-‘’ माँ ने भेजा है। उनकी तबीयत ठीक जो नहीं है।’’

‘’ चल मैं चलती हूँ तेरी माँ के पास, चाहे जो हो बस तुझे यहाँ नहीं आना है।’’ लखमा ने कहा और जानी के साथ उसकी माँ से मिलने चल दी। उसने जानी का काम अधूरा छोड़ दिया। वह कुछ सोच रही थी।

जानी की माँ छोटे से कमरे में जानी के साथ रहती थी। उसका पति दूसरे शहर में नौकरी करता था और कभी कभी ही यहाँ आया करता था। बीमारी में जानी की माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। लखमा जानी की माँ को देख कर समझ गई कि उसकी तबीयत जल्दी ठीक नहीं होगी। उसने कहा –‘’ जानी की माँ , तुम काम की चिंता मत करो। पर जानी को मत भेजा करो। अभी तो इसके पढने – खेलने के दिन हैं। ‘’ जानी की माँ रेशमा ने कोई जवाब नहीं दिया|

अगली सुबह लखमा ने देखा कि जानी फिर वहां खड़ा था। लखमा को देखकर वह दूर चला गया, शायद जानी लखमा से डर गया था। लखमा उस दुकान वाले के पास गई जहाँ जानी सफाई कर रहा था। उसने कहा-‘’ जानी की माँ तो बीमार है। शायद वह काफी समय तक काम करने नहीं आ सकेगी ‘’ दुकान वाले ने कहा – ‘’ तो तुम कर लो उसकी जगह । हमारी दो दुकानें और हैं।’’ लखमा खुश हो गई । उसे अच्छे पैसे मिलने की उम्मीद हो गई। डबल ड्यूटी में मेहनत ज्यादा थी पर पगार भी तो दुगनी मिलने वाली थी। हाथों के साथ दिमाग भी भाग रहा था। वह सोच रही थी कि अतिरिक्त पैसों से क्या कुछ हो सकेगा। अब जानी दुकान पर नहीं आता था। बस एक चबूतरे पर बैठा लखमा को देखता रहता था। लखमा सोचती थी जानी यहाँ क्या कर रहा है। रेशमा के पास क्यों नहीं बना रहता। मन हुआ कि जानी से रेशमा का हाल पूछे पर चुप रह गई।

लखमा ने महीने के आखिरी सप्ताह में रेशमा के बदले काम किया था। दुकानवाले ने पैसे दिए तो बोली-‘’ रेशमा के पैसे भी दे दो , उसे जरुरत होगी।’’ दुकानवाले ने कहा-‘’ रेशमा के पैसे उसी को दूंगा।’’ सुन कर लखमा सोच में पड़ गई। वह रेशमा के बारे में सोच रही थी। एक तो काम नहीं ऊपर से बीमारी का खर्च। पिछले काम के पैसे भी नहीं मिल रहे हैं। बाज़ार में जानी दिखा तो पूछा-‘’ यहाँ क्या कर रहा है ? माँ के पास क्यों नहीं टिकता?’’



‘’ माँ ने काम खोजने को कहा है। ‘’ – जानी बोला।

‘’ तुझे कौन काम देगा भला। ‘’ लखमा ने व्यंग से कहा। ‘’ चल मैं तेरी माँ से बात करती हूँ।’’ और उसके साथ रेशमा से मिलने चल दी। लखमा ने देखा कि रेशमा की तबीयत पहले से ज्यादा ख़राब है। साफ़ था कि उसे तुरंत काफी पैसे चाहिएं ताकि ठीक से दवा – दारु और देख भाल हो सके। लखमा ने कहा-‘’ तुम जानी को पढने भेजो |”

‘’ में क्या करूँ समझ में नहीं आता,’’ – रेशमा ने उदास स्वर में कहा।

2

‘’ सब ठीक हो जाएगा । लेकिन सबसे पहले तुम मेरे साथ चलो। ‘’- कह कर लखमा ने रेशमा को अपने सहारे से बैठा दिया । पास रखी शीशी से बालों में तेल लगा कर सँवारने लगी। बोली – ‘’ अब तुझे मेरे साथ चलना है, बता दिया कि दुकानदार उसी को पैसे देगा। फिर हाथ पकड़ कर दुकानदार के पास ले गई। कहा-‘’ रेशमा खुद अपने पैसे लेने आ गई है।’’

दुकानदार ने पैसे देते हुए कहा-‘’ तुम तो ऐसे सिफारिश कर रही हो जैसे तुम दोनों आपस में बहनें हों। लेकिन तुम दोनों के धर्म तो अलग अलग हैं , फिर बहनें कैसे हो सकती हो।’’ लखमा से पहले रेशमा बोल उठी-‘’ बहन होने के लिए धर्म एक होना जरुरी नहीं।’’ और मुस्करा दी। लखमा सोच रही थी कि कहीं दुकानदार काम के बारे में उसकी बात रेशमा को न बता दे। तब तो रेशमा उसे लालची समझ बैठेगी। पर वैसा कुछ न हुआ। लखमा रेशमा को उसके घर ले आई। रास्ते भर वह कुछ सोचती रही थी। और फिर उसने फैसला कर लिया। रेशमा ने उसे अपनी बहन कहकर उसके मन को छू लिया था। लखमा को अपनी छोटी बहन याद आ गई जो गाँव में रहती थी। लखमा काफी समय से बहन से मिल नहीं पाई थी।

अगली सुबह काम पर जाने से पहले वह रेशमा के पास जा पहुंची। कहा-‘’ रेशमा-आराम कर, तेरा काम मैं संभाल लूंगी। पर एक शर्त है, आज के बाद जानी को काम पर मत भेजना । उसे पढना चाहिए। ‘’

‘’ कौन पढ़ाएगा जानी को?’’ रेशमा ने उदास स्वर में कहा।

‘’मैं इसे मास्टरजी के पास ले जाऊँगी जो मेरे बेटे को पढ़ाते हैं। ‘’ –लखमा ने कहा। उसने आगे बताया कि मास्टरजी बच्चों को पढ़ाने के पैसे नहीं लेते । किताबें और कॉपी पेंसिल भी अपनी जेब से देते हैं। वे उन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं जो स्कूल नहीं जा पाते।“

रेशमा को लखमा की बात माननी पड़ी। लखमा जानी को मास्टरजी के पास ले गई। और जब जानी पहले दिन मास्टरजी से पढ़ कर आया तो वह ख़ुशी से रो पड़ी। लखमा रेशमा के बदले काम करती रही।महीना पूरा हुआ तो लखमा ने रेशमा की दुकानों के पैसे लाकर उसके के हाथ में रख दिए। वह लेने को तैयार नहीं हुई। तब लखमा ने कहा-‘’ मान ले कल अगर मैं बीमार हो जाऊं तो क्या तू मेरी मदद नहीं करेगी?’’ इस बात ने रेशमा को चुप कर दिया। अब कहने को कुछ नहीं था, लखमा अपने घर की ओर चली तो मन पर बैठा बोझ उतर गया था।( समाप्त)

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