दत्तक पुत्र – शिव कुमारी शुक्ला  : moral stories in hindi

moral stories in hindi : सरिता जी एवं  केशव जी की शादी को बारह वर्ष बीत चुके थे किन्तु वे संतान सुख  से अभी भी बंचित् थे। बहुत दवा इलाज कराया, मन्नते माँगी किन्तु उनकी मुराद पूरी नहीं हुई। कमी दोनों में ही नहीं थी किन्तु कहीं न कहीं किस्मत में ही  कमी थी जो वे अब तक अपन संतान का मुँह देखने को तरस रहे थे।

उनकी शादी के ठीक  दो वर्ष बाद छोटे भाई की शादी हुई थी और वह आठ और छः वर्ष के दो बेटों का पिता बन चुका था निराश होकर दोनों ने बच्चा गोद लेने का विचार किया वे अपने किसी संवधी का बच्चा नहीं लेना चाहते थे न अपने परिवार से और न ही पत्नी के परिवार से।इसलिए वे अनाथाश्रम से बच्चा  लेना चाहते थे।

कारण रिश्तेदारों के बच्चे को गोद लेना बाद में अक्सर झमेला खडा कर देता है ऐसा उन्होंने कई बार देखा था। कभी बच्चा बड़ा होकर जब उसे पता चलता कि वह गोद लिया हुआ है बापस अपने मातापिता के पास जाना चाहता। कभी  संपत्ति को लेकर जैविक मातापिता अपना अधिकार जमाते।

कहीं यदि बच्चा पढने लिखने में नाकाम रहा तो उसका सारा दोष गोद लेने वाले माता- पिता को सिर मढ दिया। इम तरह आपसी सम्बन्धों में दरार आ जाती।इन सब बातों से बचना चाह रहे थे औरअनाथाश्रम से बच्चा गोद लेना चाहते थे , ताकि उन्हें उस बच्चे पर पूर्ण अधिकार रहे एवं एक अनाथ बच्चे को मां बाप का साया मिल जाए।

किन्तु उनकी राह में सबसे बड़ी  रुकावट उनके स्वयं के माता-पिता थे। वे नहीं चाहते थे कि अनाथ बच्चा गोद लिया जाए । न जाने   किस जात विरादरी  का होगा न उसके खानदान का पता न जाने किसका गन्दा खून उसकी  रगो  में बहता होगा जो बड़े होकर कहीं उनके खानदान का नाम चौपट न कर दे। इन्हीं विचारों के कारण उनकी इच्छा थी कि  छोटे भाई के  ही एक बेटे को वे गोद ले लें, ताकि खानदान की विरासत घर की घर  में ही रह जाए ।

इधर सरिता जी के  भाई को भी दो बेटे एवं एक बेटी थी, वे भी चाह रहे थे कि उनके बेटे को गोद लेले। 

संपत्ति के चक्कर में केशवजी की बहन भी अपने बेटे को गोद देना चाह रही थी।

सरिता जी एवं केशव जी ने अपने माता पिता  को बहुत समझाने की कोशिश की कि जरूरी नहीं है सब अनाथ बच्चे खराब ही हों। कई बार अच्छे खानदान के बच्चे भी नादानी में गलत कदम उठा लेते हें उसीका  परिणाम ये बच्चे होते हैं ।असफल प्रेम जो सामाजिक वर्जनाओं जैसे अमीर- गरीब, ऊंची नीची जाति खानदान में अंतर के कारण जो अपनी मंजिल तक नहीं पहुँचता है तो जो प्रेम निशानी होती है वह कलंक की निशानी हो जाती है और मजबूरी में अनाथाश्रम पहुँच जाति है, कारण माता पिता के सामने बेटी का पूरा भविष्य होता है जिसे बच्चे के साथ कोई नहीं अपनायेगा सो दिल पर पत्थर रख कर यह कठोर निर्णय लेकर अनाथाश्रम पहुंचाया जाता है। ऐसे में उस बच्चे का कोई दोष नहीं होता ।

देखते ही देखते माता-पिता को अपना  निर्णय समझाने में दो वर्ष लग गए। अन्त में बेटे  बहू के निर्णय के समक्ष उन्होंने हार मान कर अपनी स्वीकृति दे दी। 

अब उन्होंने अनाथाश्रम से सम्पर्क किया और आवश्यक कार्यवाही में जुट गए।

आज उनकी खुशी का पारावार नहीं था अनाथाश्रम से उन्हें बुलावा आया था कि आकर बच्चे को ले जा सकते हैं। उन्हें छः माह से डेढ़ बर्ष के तीन बच्चे दिखाए , किन्तु सरिता जी की नजरें तो कुछ और ही खोजने में  लगीं  थीं। तभी उन्होंने देखा कि एक ढाई तीन बर्षीय बच्चा कुछ दूरी पर खड़ा अपलक उन्हें निहारे जा रहा था। न जाने उसकी नज़रों मैं ऐसा क्या था कि सरिता जी ने उसके पास जाकर जैसे ही उसके सिर पर हाथ फेरा वह उनसे चिपट गया। सरिता जी ने उसे गोद में उठाया प्यार किया।वह उनकी गोद मे इतना खुश था कि उतरने  को  ही तैयार  न था।

 सरिता जी ने अपनी मंशा उसी बच्चे को  लेने की जताई, केशव जी ने भी अपनी सहमति दे दी। इस तरह कानूनी कार्यवाही पूरी कर वे उसे अपने कर ले आए। आज से  माता-पिता के रूप में  वे एक सुखद अनुभूति से सराबोर थे। वे उसकी परवरिश  में जी-जान से जुट  गए ।

 उसे एक अच्छे प्ले स्कूल में दाखिल करवाया ।बड़े होने पर वह बालक कुशाग्र बुद्धि का निकला। अच्छे अंको से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उसने MBA किया और फिर अपने  पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा। नये नये तकनीकी  ज्ञान का उपयोग कर उसने ब्ववसाय को काफी ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया। 

वह नेक दिल इंसान था। सबकी मदद करने को सदैव तत्पर रहता। सामाजिक कार्यों में बढ चढ़ कर हिस्सा लेता। उसका

समाज में बड़ा नाम, सम्मान था । वह एक सभ्य,  सुसंस्कारित नागरिक था। अपने खानदान का नाम   रोशन कर रहा था। वह किस खानदान से था, किस जात बिरादरी से यह प्रश्न गौण थे ।वह‌ एक इंसान की औलाद था  और सच्चा इंसान था। केशव जी का खानदान ही अब उसका खानदान था, क्योंकि पिता के रूप में उन्हीं का  नाम जो उसे मिला था। 

माता-पिता की अच्छी परवरिश , शिक्षा ने उसे जो सम्मान दिलाया था उसके आगे उसके  जन्म से जुड़े  सवाल नगण्य हो गये।

शिव कुमारी शुक्ला 

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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