22 नवंबर 2003 दिन शनिवार सुबह के 8 बजे पतिदेव मेरे लिए बेड टी के साथ एक सफेद गुलाब हाथों में लिए हाज़िर हुए….. “शादी की सालगिरह मुबारक हो पूजा…”
मैने भी फूल हाथों में लेकर इन्हे “Happy anniversary ” विश किया ….पतिदेव ने तो मुझे मेरी पसंदीदा बेड टी से सरप्राईज कर दिया था अब मेरी बारी थी इन्हे सरप्राईज देने की…..।
परिवार के सभी लोग आगरा एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिए गए हुए थे, हम दोनो की एनिवर्सरी के चलते मेरा कुछ अलग ही प्लान था । प्लान के मुताबिक मैने इनके पसंदीदा घूमने की जगह मसूरी के एक गेस्ट हाउस में फोन मिलाया और वहां हम लोगो के लिए एक कमरा बुक कर लिया… ।
ब्रेकफास्ट करते हुए मैने इन्हे सरप्राईज ट्रिप के बारे में बताया और सारी पैकिंग कर ली। सुबह के 11:30 के आस पास हम लोग मसूरी के लिए रवाना हो गए….खुशनुमा मौसम मे लॉन्ग ड्राइव और विवाह का एक साल पूरा करने के खुशी , दोनो ने ही हमारे सफर में चार चांद लगा दिए थे। खुशनुमा सफ़र मे कब 3 बज गए पता ही नहीं चला…फिर हमने कोई अच्छा सा रेस्तरां देख कर लंच किया… और निकल पड़े अपने गंतव्य की ओर….।
” पूजा उठो….. देखो कुछ ही मिनटों में हम गेस्ट हाउस पहुंचने वाले हैं ” । …जरा देर की ही झपकी लगने से मैं तरो ताज़ा महसूस कर रही थी …।
करीब एक डेढ़ किलो मीटर का सफ़र तय करने के बाद हमारी गाड़ी बार्लो गंज स्थित बंगला नंबर 402 के सामने रुकती है….। तुरंत वहां के सर्वेंट ने हमारा सामान गाड़ी से निकाल कर हमारे कमरे में रख दिया …। संयोग से हमारे कमरे का नंबर भी 402 था , कुछ देर आराम करने के बाद हम बाहर की तरो ताज़ा हवा का आनंद लेने के लिए निकल पड़े ।
सुनसान सड़कें , मुझे अजीब सा एहसास दिला रहीं थीं…ना ही कोई राहगीर आता जाता दिखा … अचानक से मुझे हवा का झोंका अपने कानों के आर- पार होता हुआ महसूस हुआ ऐसा लगा मानो कोई फुसफुसाहट में कुछ कह रहा हो …. मैं बहुत घबरा गई । मैने अपने पतिदेव से कहा ” सुनो , क्या आप भी मेरी तरह अपने इर्द -गिर्द एक अनजान सी अदृश्य ताकत महसूस कर पा रहे है “….?
इनका स्वर , ना में था….इनके इस उत्तर से मेरा हौंसला बढ़ गया । खैर डरते – डरते हम पास के ही एक रेस्तरां में पहुंच गए , खाने की इच्छा खत्म हो गई थी पर फिर भी जल्दी से आर्डर दे कर थोड़ा बहुत खाना मंगा लिया …।
रेस्तरां में भी कुछ इक्का दुक्का लोग थे ,मुझे चिंतित और भयभीत देखकर पतिदेव ने भी जल्दी ही खाना निपटाया,और हम वापस अपने गेस्ट हाउस की तरफ बढ़ गए …।
सायं – सायं हवाएं चल रही थीं , मेरे आंखों में एक अनजाना सा भय था जो मुझे आगे कदम बढ़ाने से इंकार कर रहा था.. अनायास ही एक बुढिया हमारे आगे आकर खड़ी हो गई, उसकी उम्र कुछ 90 साल के लगभग लग रही थी , उसका झुर्रियों भरा चेहरा बड़ा भयानक लग रहा था, तन पर मांस का नामोनिशान नहीं था , उसका शरीर हड्डियों का पिंजर मात्र था …।
अनायास मेरी चीख निकल गई , उसे देख कर हमारे शरीर सन्न पड़ गए , दो पल में वह बुढ़िया हमारी आंखों के सामने से गायब हो गई थी।
हाथ पांव साथ नही दे रहे थे , गेस्ट हाउस वापस कैसे लौटे…?? इस चिंता से मन बैठा जा रहा था ।
जैसे तैसे हम वापस गेस्ट हाउस लौट आए …कमरे में पहुंचते ही अच्छे से दरवाजा लॉक कर लिया । आंखों से नींद ओझल थी , घड़ी की टिक – टिक भी कमरे में डरावना माहौल पैदा कर रही थी । पूरे गेस्ट हाउस में हमारे अलावा कोई भी गेस्ट नहीं था । यहाँ से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। डर से मुक्ति पाने का कोई तरीका नहीं था …. पति देव ने अपने समान से व्हिस्की की बॉटल निकाल कर दोनो के लिये तैयार कर ली ….।
अब तो पतिदेव के चेहरे पर भी चिन्ता और डर के भाव स्पष्ट दिख रहे थे । पर मुझे संभालने के लिये, वे अपनी हिम्मत को बांधे हुए थे ।
” चीयर्स… ” जाम से जाम टकरा कर हमने अपने डर को भीतर से निकालने की नाकाम कोशिश की …तभी कमरे की दीवार पर सड़क वाली उस बुढिया का साया अंकित हो गया ।अब तो पतिदेव की हिम्मत भी धराशाई हो गई । घबरा कर हम गेस्ट हाउस के मैनेजर के पास जा पहुंचे ..।
” मैनेजर साहब…. आपका गेस्ट हाउस भूतिया जगह है, इसके बारे में आपने हमें नहीं बताया … आपने हमारे साथ फ्रॉड किया है… हम पुलिस स्टेशन में आपके गेस्ट हाउस के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कराएंगे ” ।
यह सुन कर वह डर गया , और माफ़ी मांगते हुए उसने सारी कहानी कह सुनाई ….- ” करीब 17 साल पहले एक पति- पत्नी अपने विवाह की पहली वर्ष गांठ मनाने यहाँ पर रुके थे , अगले दिंन सुबह कमरे से पत्नी की लाश मिली थी और पति गायब हो गया था । ” तब से कई लोगों उस डरावनी लगने वाली बुढ़िया को देखने का दावा करते रहें हैं ।
यह सुनकर हमारे पाँव तले जमीन खिसक गई …..हम अपना सब सामान वही छोड कर दौड़कर अपनी गाड़ी में जा बैठे और पीछे पलट कर नही देखा । तेज गति से चलती गाड़ी से, बाहर झांकने मे भी मुझे डर लग रहा था ,,,, मैनेजर की सुनाई हुई कहानी , बुढ़िया का डरावना चेहरा , सुनसान सड़कें सभी दृश्य ज्यों के त्यों मेरी आंखोँ में चलचित्र की भाँति चल रही थी। पूरा सफ़र खौफनाक यादों के साये मे बीता । अगले दिन सुबह 4 बजे तक हम घर पहुंच चुके थे…। सही सलामत घर लौटने पर मैने भगवान का शुक्रिया अदा किया , और कभी भी मसूरी ना जाने का फ़ैसला कर लिया ।
दिन भर की थकान और रात का वो भयानक मंजर आँखों मे लिये हम दोनो कब नींद के आगोश में समा गए, पता ही नहीं चला…।
लगातार डोर बेल बजने से नींद टूटी , तो देखा सब लोग विवाह समारोह से वापस लौट आए हैं ।
घर की चहल-पहल देख कर मन प्रसन्न हो गया था । पर शरीर में अभी भी कंपन महसूस हो रहा था, अभी भी ड़र नसों में खून बन कर दौड रहा था ।
तो क्या रात की बात एक डरावना सपना थी …?? या कोई खौफ्नाक हकीकत ?
,,,,, मन यह मानने को तैयार ही नही था , कि यह एक सपना था ,,, ।
शादी के इतने सालों बाद भी जब मेरे पतिदेव कहीं बाहर घूमने का प्लान बनाते हैं तो मुझे मसूरी वाला सपना याद आ जाता है ,,,और ये मुझे छेडने के अंदाज मे फ़िर से बार्लो गंज चलने को कहते हैं ….. और मै हँस कर कहती हूँ…..”मै तो बच्चों के साथ घर पर ही छुट्टी मनाऊंगी … लेकिन…..आपके लिये जरूर कमरा बुक करवा दूंगी ,,,,, बार्लो गंज के बंगला नंबर 402 में…. ।
समाप्त