“भरोसे का खून” – कविता भड़ाना

लक्ष्मी सूनी -सूनी आंखों से एकटक अपने घरौंदे को बिखरते हुए देखे जा रही थी, जिस इंसान के लिए उसने अपनी सगी बहन के भरोसे को कुचल के रख दिया था, वही उसे दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा ये तो कभी सोचा भी नहीं था, पर जिस रिश्ते का आधार ही स्वार्थ और वासना हो तो ऐसे अनैतिक संबंध कभी भी नहीं फलते…..

साधारण से परिवार की लक्ष्मी और नर्मदा अपने माता – पिता की लाडली बेटियां थी, पिता की ठीक ठाक चलने वाली परचून की छोटी सी दुकान थी… नर्मदा सीधी और सरल स्वभाव की थी, वही लक्ष्मी थोड़ी चंचल और तेजतर्रार थी… नर्मदा बड़ी संतान थी, पर दोनो बहनों में दोस्तों जैसा प्यार था।

नर्मदा के 12 वी पास करते ही पिता ने एक सुयोग्य वर देख कर उसकी शादी रमेश के साथ कर दी…

रमेश के माता – पिता का कुछ साल पहले देहांत हो चुका था, दो कमरों का छोटा सा खुद का मकान था और खुद की गाड़ी भी थी, जिसे वह कैब के रूप में चलाता था, देखने में भी ठीक ठाक था…. शादी वाले दिन लक्ष्मी और रमेश, जीजा साली वाले रिश्ते के कारण खूब हंसी मजाक करते रहे, रमेश को भी लक्ष्मी का अल्हड़पन और शोखिया उसकी तरफ खूब आकर्षित कर रही थी…

शादी के बाद भी जब – जब रमेश अपनी ससुराल आता, लक्ष्मी के साथ खूब मजाक करता, परिवार के लोग भी उनके रिश्ते के कारण, उनके हंसने बोलने को साधारण रूप में लेते…

लक्ष्मी अब कॉलेज में आ गई थी और उसका अल्हड़पन अब और भी बढ़ गया था, आजकल अपने सजने संवरने को लेकर भी सचेत रहने लगी थी, की एक दिन जब वह कॉलेज से घर आई तो देखा उसकी बहन नर्मदा और जीजा रमेश आए हुए है, दरअसल नर्मदा मां बनने वाली थी और कुछ दिक्कतों के चलते डॉक्टर ने पूरी तरह बेड रेस्ट बोला था, रमेश अपने काम के चलते अधिकतर बाहर रहता है तो ऐसे में नर्मदा की देखभाल के लिए लक्ष्मी को लेने आए थे।




मां – पिता ने भी बेटी की हालत और जवाई के काम को देखते हुए हां भी कर दी थी।

लक्ष्मी भी खुश थी की अपनी बहन के साथ समय बिताएगी और जीजा के साथ भी खूब बातें करने का मौका मिलेगा , यही सब सोचते हुए उसने अपना सामान पैक किया और दीदी जीजा के साथ उनके घर आ गई।

लक्ष्मी के आ जाने से रमेश ने लंबी दूरी वाली बुकिंग लेनी बंद कर दी, उसकी कोशिश रहती की शाम तक घर आ जाए , नर्मदा को लगा रमेश ये सब उसके लिए कर रहा है पर सच तो ये था कि रमेश को लक्ष्मी का साथ , उसका हंसी मजाक करना और कई बार जान बूझ कर हाथ पकड़ लेना , इधर उधर छू लेना अच्छा लगता था, नर्मदा के सामने तो दोनो का व्यवहार सामान्य होता, परन्तु अकेले में दोनो ने अपने रिश्ते को कलंकित कर मर्यादा तोड़ दी थी….

एक दिन नर्मदा ने दोनो को रंगे हाथों पकड़ लिया, गुस्से और कमजोरी के कारण उसकी तबियत बिगड़ गई , अभी सातवा महीना लगा ही था और तबियत अधिक खराब होने से नर्मदा और उसका होने वाला बच्चा दोनो ही नहीं बच पाए……

लक्ष्मी और रमेश को दुख तो हो रहा था पर अब वो दोनो एक हो जायेंगे ये सोचकर खुश भी थे….

माता – पिता बेचारे दोनो के घृणित कार्य से अनजान थे, कुछ समय बाद रमेश के आग्रह पर और लक्ष्मी की हां करने पर उनका विवाह करा दिया , दोनों बड़े ही खुश हुए की किसी को कुछ पता भी नहीं चल पाया और दोनो अपने मकसद में कामयाब भी हो गए…




समय के साथ लक्ष्मी दो बच्चो की मां बन गई , इसी बीच मां बाप भी परलोक सिधार गए, पर कहते है न की सबके कर्मों का फल यही मिलता है….कुछ समय से रमेश का व्यवहार काफी बदल गया था, घर में बहुत कम आता और घर खर्च के लिए पैसे भी नहीं देता था , कुछ कहने या पूछने पर लक्ष्मी के साथ मार पिटाई करता और घर से बाहर निकाल कर कुंडी लगा लेता, लक्ष्मी अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा कुछ नही कर पाती, माता पिता थे नही , प्रेम के चक्कर में पढ़ाई भी नही की तो जाती भी कहा….आज रमेश अपने साथ एक लड़की को लेकर आया और बोला आज से तेरा मेरा रिश्ता खत्म , अब में तेरे साथ नही रहूंगा,और कहकर बाहर निकल गया…..

लक्ष्मी को समझ नही आ रहा था की क्या करे, बहुत ही ग्लानि हो रही थी अपने अनैतिक कृत्यों पर,नर्मदा का चेहरा भी आंखों के सामने बार बार आ रहा था, आज समझ आया की वो भी कितनी तकलीफ और वेदना से गुजरी होगी, दो दो जिंदगियों को अपनी हवस के चलते कुर्बान कर दिया था, पर अब कुछ नहीं हो सकता था…. सुबह सुबह खबर आई की कल रात ट्रक से टक्कर के बाद रमेश की मौत हो गई है….

बच्चों को सीने से लगाए, अपने गुनाहों की सजा,अब जिंदगी भर भोगने होंगे, यही सोचकर लक्ष्मी जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी…..

बहन के भरोसे का खून करने वाली, एक घरौंदे को बर्बाद करने वाले दोनो पापियों का, ईश्वर ने इंसाफ कर दिया था।

स्वरचित काल्पनिक

#भरोसा

कविता भड़ाना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!