बेटियों से मायके में काम कौन करवाता है??-  कनार शर्मा

भाभी!!

मैं ये क्या नाटक देख रही हूं?? आपने तो मेरी मां के बनाए नियमों को पूरी तरह तोड़ दिया है…मायके में बेटियों के ठाठ होते हैं वो यहां आकर कपड़े, बर्तनों से हाथ नहीं लगाती, रसोई तो बहुत दूर की बात है और यहां तो मैं उल्टी गंगा बहती हुई देख रही हूं। भाभी आपकी बहू ने आपकी फूल सी बच्ची को रसोई में झोंक दिया… देख लो, संभल जाओ, बहू की लगाम खींच लो, कहीं ऐसा ना हो कि कल को खाट पकड़कर बैठी रहे और आपकी बेटी रोटियां पकाए, झोड़ू पोंछा करें… कामिनी बुआ गुस्से में बोली!! (उन्होंने अपनी भतीजी मनीषा को बच्चे की मालिश और उसके कपड़े धोते देख लिया था। इसी बात पर हंगामा करना शुरू कर दिया। जबकि नीलम जी ने अपनी बहू के लिए मालिश वाली लगा रखी थी मगर आज मनीषा अपनी खुशी से अपनी भतीजी की मालिश कर रही थी।)

नीलम जी के दो बच्चे हैं मनीष और मनीषा… उन्होंने मनीष की शादी के 6 महीने बाद ही बेटी मनीषा की शादी कर दी दोनों ननद भाभी लगभग एक ही उम्र के हैं जल्दी शादी होने के कारण मनीषा अपनी भाभी दीप्ति के साथ 6 महीने ही साथ रह पाई मगर दोनों में दांत काटी दोस्ती हो गई।

नीलम जी ने भी दोनों के बीच ऐसे मधुर संबंध बने रहे ऐसी कामना की इसीलिए बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जहां मनीषा सूट, जींस टॉप पहनती थी वहीं उन्होंने दीप्ति को भी इसकी पूरी छूट दी बस वार, त्यौहार और किसी रिश्तेदार के सामने साड़ी पहनने की बात रखी। जिसे दीप्ति ने सहर्ष स्वीकार किया क्योंकि वो भी जानती थी घर की बहू की मर्यादा होती है घर के अंदर वो कुछ भी पहने पर परंतु समाज में जो चलन है निभाने पड़ते हैं।

यहां तक की जैसे मनीषा नौकरी करने लगी नीलम जी ने दीप्ति को भी नौकरी करने के लिए प्रेरित किया। एक बार दीप्ति ने मना भी किया मगर उस पर नीलम जी बोली “बेटा हमारी सारी उम्र घर, परिवार में ही निकल गई…अब मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी या मेरी बहू दोनों की उम्र यही काम करते हुए निकले इसलिए मैंने मनीषा को भी आत्मनिर्भर होने के लिए सपोर्ट किया और वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करना चाहती हूं… बेटा इतना पढ़ लिखकर घर में बैठना बेवकूफी ही होती है। घर के काम तो चलते ही रहेंगे हां जरूरत पड़ने पर तुम छुट्टी ले ही लोगी इतना मुझे यकीन है… मुस्कुराते हुए जब नीलम जी ने कहा… तो दीप्ति अपनी सास के विचारों से बड़ी गर्वित हुई और कहा “मम्मी जी मैं तो नौकरी करना चाहती थी बस डर रही थी कि कहीं आप मना ना कर दे” मगर आपकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है कि एक मां के हाथ से निकलकर मैं दूसरी मां के सानिध्य में आ गई हूं। इसी तरह सास- बहू और ननद में बहुत अच्छी सांठगांठ हो गई…!!




मगर जहां इतना प्यार और अपनापन हो और सहयोग की भावना देखने को मिले तो कई लोग इसे देखकर जलभून जाते हैं और वो ये नहीं चाहते कि ऐसी एकता प्यार लोगों के बीच में बना रहे बस आ जाते हैं फूट डालने… उन्हीं में से एक थी कामिनी जी जो कि नीलम जी की बड़ी ननद थी कुछ दिनों के लिए अपनी भाभी भाई साहब से मिलने और दीप्ति के नवजात शिशु को देखने उनके घर आई हुई है। और वहां मनीषा को दीप्ति बहू की सेवा करते देख बहुत नाराज हैं और अपनी भाभी नीलम को ये बता रही है की ननंद का पद बहुत ऊंचा होता है और वो इस तरह से मायके में आकर किसी की सेवा नहीं करती।

तभी मनीषा कॉफी लेकर बुआ और मां के पास पड़े झूले में बैठ गई और बोली “मां मैंने अभी भाभी को लड्डू और दूध दे दिया है और गुड़िया भी सो गई है”… अच्छा सुनो मां आज भाभी का हलवा खाने का बहुत मन है…रात को भी उन्हें ठीक से खाना नहीं खाया था। आप घी और मेवा निकाल दीजिए मैं बना दूंगी और दोपहर के खाने में हरी सब्जी, तड़का लगाकर मूंग की दाल और गरम-गरम रोटियां बना दूंगी।

बिटिया तुम इस घर की बेटी हो चुपचाप अपनी कॉफी पी ये रसोई, जच्चा बच्चा का खानपान की चिंता तू मतकर समझी कामिनी बुआ…आंख दिखाते हुए बोली।

अरे बेटा मैं करती हूं ना नीलम जी डरते हुए बेटी से बोली।

मेरी प्यारी बुआ आपकी राजकुमारी अपनी ससुराल में भी काम करती ही है ना और मां आप ठंड के समय सुबह तो आपके हाथ पांव गठिया के कारण काम नहीं करते… रात का खाना आप बना देना क्योंकि मैं मुन्नी को अपने पास रखूंगी तब भाभी थोड़ा आराम कर लेंगी क्योंकि वो रात भर तो उन्हें बहुत परेशान करती है।




अपनी बेटी की बात सुन नीलम जी को अपनी बात समझाने का मौका मिल गया और वे बोली “अच्छा ही है मेरी बेटी के अंदर इस तरह की भावना नहीं और ना ही मैंने ऐसी भावना पैदा करने की कोशिश कि की बेटियां सेवा नहीं करती मेवा खाती है बस”…ननंद के नाम पर डराकर इज्जत करवाने से अच्छा है। एक ननद भाभी का रिश्ता सहेलियों जैसा हो जाए तुम दोनों जैसा प्यार और सम्मान हो… ना की औहदे की फर्क, एक दूसरे को नीचा दिखाने की भावना ना हो, पद का घमंड हो क्योंकि जहां ये सब नहीं होता वहां मेरे घर की तरह रिश्तो की बगिया से घर परिवार महक सा जाता है वरना जीवनभर घर की बहू को बेटियों से डरकर रहना पड़ता है पता नहीं कब कौन सी बात पर हंगामा कर दें… इस बात का “दर्द” मुझसे ज्यादा बेहतर तरीके से कौन जानता है!!

कामिनी जी को अपनी भाभी की बात समझते हुए देर ना लगी की भाभी की बातों का इशारा उनकी तरफ था, उन्हें भी लगाएं टीका टिप्पणी कर पूरी जिंदगी उन्होंने अपनी भाभी को बहुत “दर्द” दिया है…अरे छोड़ो तुम मां बेटी… बहू के लिए मैं बनाऊंगी आटे, गुड़ और दवाई की लापसी… बहुत फायदा करेगी देखना इतनी ताकत आ जाएगी कि जच्चा-बच्चा को आगे भी कोई परेशानी नहीं आएगी…!!

मगर बुआ तुम क्यों,कैसे बनाओगी तुमने तो कभी रसोई की देहरी भी पार नहीं कि मायके में…. कॉफी का एक घूंट लेकर मनीषा इतराते हुए बोली…!!!

अच्छा तो अब तू भी मुझे ताने मारेगी… अपनी भतीजी के कान मरोड़ते हुए बोली!

कामिनी हुआ अपना शॉल संभालते हुए रसोई में पहुंची पीछे-पीछे भाभी नीलम जी भी उनका हाथ बटाने लगी दोनों ननद भाभी हंसी ठिठोली कर बहू के लिए हलवा बना रही थी और उसकी भीनी भीनी खुशबू बाहर झूले पर कॉफी पीती मनीषा के मन में समा रही थी। इतने बरसों बाद अपनी मां और बुआ के बीच आई मधुरता को देख वो सोचने लगी बड़ों ने पहले जो किया, जो नियम बनाए उनका तो हम कुछ नहीं कर पाए मगर आज हम नई पीढ़ी के बच्चों ने अपने रिश्तों में प्यार और विश्वास लाकर बदलाव जरूर कर दिया और रिश्तो में आए इस “दर्द” का इलाज कर डाला!!

आशा करती हूं मेरी रचना को जरूर पसंद आएगी धन्यवाद

आपकी सखी

कनार शर्मा

(मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित)

#दर्द

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