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बेटी….!! – विनोद सिन्हा – Betiyan.in

बेटी….!! – विनोद सिन्हा

“कहते है इंसान की ज़िंदगी तभी शुरू हो जाती है जब वह जन्म लेता है पर सच कहूँ तो मेरी जिंदगी तब शुरू हुई जब मेरे घर आँगन में मेरी बेटी ” समृद्धि” जिसे हम सब “छवि ” के नाम से पुकारते हैं ने जन्म लिया.! !

बेटी…क्या कहूँ इसके बारे में…!!

क्या है बेटी ?

एक हवा का झोका..!! जो जहाँ से गुजरती है महका जाती है अपनी खुशबू से उस जगह को अपने आस पास चारो तरफ.! !

क्या है बेटी ?

एक कोमल एहसास..!!  जिसके बिना हम और आप परम सुख की कल्पना नहीं कर सकतें.!!

या फिर..!!

वो अनमोल दौलत..!! जिसे हर कोई चाहता है सहेज कर रखना ये जानते हुए भी कि कल इसे विदा करना हैं.!!

जाने क्यूँ सभी कहते हैं बेटी पराया धन होती है पर मुझे क्यूँ ऐसा लगता है कि जिसके पास बेटी नहीं वह निर्धन है,सच कहूँ तो आज भी एहसास के झरोकों में कैद है उसका वह कोमल स्पर्श जब मैने मेरी बेटी काे पहली बार अपनी कांपती बाहों में  लिया था और उस पहली स्पर्श ने एहसास कराया था मुझे उस गौरव का कि मैं पिता बन गया….!!

” उसी बेटी के लिये अपने एहसासों को शब्दों का ऱूप देने का प्रयास किया है “

“अनुभूति”

“मेरी नन्ही परी आज थोड़ी बड़ी हो गई”

मेरी नन्ही परी आज थोड़ी बड़ी हो गई..!

रिश्तों की डोर लिये खड़ी हो गई..!

हाँ मेरी नन्ही परी आज थोड़ी बड़ी हो गई..!!

आज भी अंकित है मन-मस्तिक में मेरे

उसका वो पहला कोमल स्पर्श

वो नन्ही नन्ही उंगलियों से पहली बार

उसका मेरी उंगलियों को पकड़ना

जिसने एहसास कराया मुझे उस दायित्व का

जिसका उम्र भर है मुझे निर्वाह करना..!!

मेरी नन्ही परी आज थोड़ी बड़ी हो गई…!!

मुस्कुरा देता हूँ मैं आज भी

उन अनमोल पलों को याद कर

जब रात रात भर घंटो पहर

कंधो पर मेरे वो झूलती रहती थी

कभी हँसती,कभी खिलखिलाती..!!

कभी गिरती कभी संभलती


कभी नन्ही नन्ही आँखों से मुझे

टुकुर टुकुर रहती थी देखती

तो कभी अपने कोमल पंजो से

मेरे चेहरे को थी नोचती

ना जाने पल पल वो थी

कितनी रूप बदलती.!!

मेरी नन्ही परी थोड़ी बड़ी हो गई…!!

आज भी नहीं भूला हूँ मैं

कानो के उस मधुर गुंजन को

जब अपनी तुतलाती आवाज में पहली बार

उसने मुझे पापा कह कर बुलाया था..!!

उसकी पहली आवाज सुन कर आँखों में मेरे

खुशियों का सागर भर आया था..!!

मेरी नन्ही परी थोड़ी बड़ी हो गई…

आज भी अंकित है

घर के कई कोने में उसके

नन्हे नन्हे कदमों के पद चिन्ह

जहाँ उसने अपने लरखड़ाते

कदमों से था चलना सिखा…!!

और थामा था मैंने उसको

इस विश्वास के साथ की

मेरी जिंदगी की साँसे तो अब

तुमसे हीं जुड़ी हैं

अब न मैं इन्हें रुकने दूँगा

और जीवन पथ पर बेटी मेरी

तुम्हें न कभी मैं झुकने दूँगा.!!

मेरी नन्ही परी आज सच में बड़ी हो गई….!!

जब बांधा उसने मेरे कलाईयों पर

बंधन का वो धागा जो बांधती है बहनें

अपने भाईयों के कलाईयों पर…!!

जिसने एक पल में ही मुझे पिता के साथ

कई रिस्तों का बोध करा दिया

उसकी कही एक छोटे से वाक्य ने

मेरे आँखों में था आँसू ला दिया

उस सुखद अनुभूति पा कर

जी चाहा कि दुनिया की सारी खुशियाँ

अभी हीं उस पर बार दूँ.!!

जब रक्षा बंधन के दिन बहन की

भेजी राखी ला बोली वो

“पापा लाओ मैं आपको भी

आज “रक्षा सूत्र” बाँध दूँ.!!

सच कहतें हैं लोग कि बेटियाँ

ईश्वर की वरदान होती है

विषम परिस्थितियों में

एक पिता की संबल और

दृढता की पहचान होती है

और होती है बेटियाँ

कई दुआओं का असर

खुशकिस्मत होेते हैं वो

जिनको बेटी होती है नज़र…!!

जिनको बेटी होती  है नज़र..!!

मेरी नन्ही परी थोड़ी बड़ी हो गई…

रिश्तों की डोर लिये खड़ी हो गई..!

हाँ मेरी नन्ही परी आज थोड़ी बड़ी हो गई…!!

विनोद सिन्हा

स्वरचित-२८/०९/२०१५

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