बेबी चांदनी (भाग 5) – सीमा वर्मा

चांदनी को पेटिंग थमाते वक्त ही चित्रा ने नोटिस कर लिया था।

चांदनी असहज हो गयी है।

लेकिन टोकना सही नहीं जान कर चुपचाप ही रही।

परंतु इस एकांत में चांदनी की अपनी ममा से इस तरह की बातें और फिर उसका लड़खड़ाना चित्रा को स्वाभाविक नहीं लगा।

उसने चांदनी को थाम कर गिरने से बचा लिया एवं सहारा दे कर कमरे तक ले आई।

चित्रा-चांदनी की गाढ़ी दोस्त है।

उसे बिस्तर पर लिटा कर उसके लंबे उलझे बालों में उंगली डाल सुलझाती हुई हौले से बोली ,

‘ चंदू तू इतनी परेशान क्यों है जरा बता तो मुझे देखो तो बिल्कुल दीवानों जैसा हाल बना रखा है ‘

‘ऐसी प्रतिक्रिया सही है क्या ? ‘

जो आता है उसे आने दे जो जाता है उसे जाने दे।

किसी चीज को उतना ही पकड़ जितनी संभाल सके ‘

‘ हूँ … ‘

चित्रा ने कमरे में रखे फ्रिज से दूध निकाल इन्डक्शन चूल्हे पर गर्म कर दो कप कड़क कॉफी की बना कर एक चांदनी को थमाई दूसरी खुद ले कर आरामकुर्सी पर बैठ गई।

मेरी कहानी जानती हो ? ,

“कुछ साल पहले मेरे पिताजी एक दिन सुबह ही मुँह अंधेरे उठ कर कहीं चले गये।

उन्हें सारे परिवार वाले दादा-दादी , चाचा सबों ने ढूँढ़ने की बहुत कोशिश की सिवाय मेरी माँ को छोड़ कर।

ना जाने उन दोनों में क्या और किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था ?

मेरे लाख जतन करने पर भी फिर माँ ने अपना मुँह नहीं खोला।

सिर्फ़ धारण किए गये सुहाग के एक-एक चिन्ह उतारती चली गयी थीं।

मैं बिन बाप की वह भी बेटी!

जैसे बड़ी होती है वैसे ही किसी तरह बड़ी होती चली गयी।

पिता और माँ को ले कर चारो तरफ से चल रहे छीटाकंशी को सुन कर पढ़ती हुई आगे बढ़ने की कसम खा ली थी।

‘ जानती थी इज्ज़त से जीने का इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं है ‘

शौक के नाम पर मुझे सिर्फ एक ही शौक है  ‘फूलों का ‘ क्योंकि प्रारंभ से ही मैंने अपने पिता को माँ के लिए फूल लाते हुए देखा है।

बोलती हुई चित्रा ने घड़ी की ओर देखा रात के एक बजने वाले हैं ,

” अब सो जा चांदनी सर्दी बढ़ रही छुट्टियां शुरु होने में अभी चार दिन बाकी हैं लेकिन मुझे लगता है तुम्हें कल ही घर के लिए निकल जाना चाहिए “

‘ नहीं चित्रा अभी बहुत से इम्पौटेंट क्लासेज चल रहे हैं उन्हें छोड़ने से लॉस हो जाएगा इसलिए वैकेशन स्टार्ट होने पर ही घर जाऊंगी “

‘ ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा लेकिन ऐसी और इस तरह नहीं वरन् वापस से पुरानी वाली चांदनी बन कर ‘

‘ हाँ डियर  ‘ कहती हुई चांदनी मुस्कुरा दी।

सर्दी की रात है बाहर बालकॉनी में रोशनी छिटक रही है।

चित्रा ने झुक कर उसके सिर सहलाए फिर लाइट ऑफ कर दिए।

अगले चार दिनों तक किसी तरह मन शांत कर के पढ़ाई में जुटी चांदनी आज बेहद खुश है।

कॉलेज बंद हो चुका है। 

उसने चित्रा को भी अपने साथ चलने को कहा है। चित्रा परिस्थितियों की जटिलता भांपती हुई उसे प्यार से समझाती हुई बोली…

‘ देख चांदनी ,

पहले तुम अपने घर जाओ अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है।

आंटीजी ने जश्न मनाने की सोची है।  हम सब उसमें ही आ जाएंगे ‘

चांदनी फिर ज्यादा कुछ नहीं बोल कर बस इतना ही कह पाई,

” ठीक है , 

पर मुझको अकेली मत छोड़ देना “

उसकी फ्लाइट रात एक बजे की थी।

कैब बुक कर दिया है।

दस मिनट में ड्राइवर ने अपने पहुँचने की सूचना दे दी वह लगभग तैयार थी।

बस आखरी बार अटैची को लॉक कर झटके से रूम के बाहर निकल आई।

पीछे मुड़ कर देखा पूरा हॉस्टल उनींदा है।  वॉचमैन  अपने रेस्ट रूम में जम्हाईयाँ ले रहा था।

उस पर नजर पड़ते ही गेट खोलने के लिए  दौड़ा हुआ आया। 

कैब गेट के सामने खड़ी थी। ड्राइवर ने आगे बढ़ कर अटैची ले ली।  और गाड़ी का  गेट खोल दिया ।

चांदनी के होठों पल एक बेरंग मुस्कान फैल गयी।

बिना किसी प्रतिक्रिया के वह कैब के अंदर बैठ गई।

यह सब कुछ बहुत खामोश और रोबोटिक था। उसके बैठते ही कैब चल दी।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो सुबह चार बजे तक वह मम्मी के पास उनके सामने बैठी होगी

ऐसा खयाल कर के उसने पीछे  विमान की सीट पर सिर टिका कर सोने का प्रयास किया।

थोड़ी देर में उसे नींद आ गयी थी।

पिछले कितने दिनों से विचारों के जद्दोजहद से घिरी वो उसने आराम कहाँ किया है ?

खैर… नियत समय पर फ्लाइट लैंड कर गई।

अगले दो घंटे में वह घर पहुँच कर मम्मी के कमरे के सामने खड़ी है।

पता चला उनकी तबीयत खराब है। अभी-अभी नर्स देख कर गयी है। 

उसकी पुकार पर मम्मी ने आंखें खोलीं ,

एक धुली साफ, स्वच्छ दृष्टि से मम्मी उसे कितनी देर देखती रहीं फिर …,

‘ आ गयी खोकन … ‘

चांदनी सिर से पैर तक डबडबा गई इस नाम से उसे मम्मी को छोड़ कर और कोई नहीं बुलाता ।

‘ खोकन ‘ सिर्फ़ वह अपनी माँ के लिए है।

‘ मम्मी अब यह सब क्या है ?

आपने मुझे कुछ बताया क्यों नहीं मैं पहले ही आ जाती ?

तुम मुझसे हमेशा ही अनफेयर रही हो  “

कहती हुई गले लग गई।

उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुई मम्मी ने फुसफुसाहट भरी आवाज में कहा ,

” सॉरी “

तब तक घर की सबसे पुरानी रज्जो  दीदी वहाँ आ गई थी।

उसने रोती हुई चांदनी के कंधे प्यार से  थपथपाए अब चंदा भरभरा गयी ,

” रज्जो दीदी माँ को क्या हुआ है ? ” उसकी आवाज लरज गयी है।

मगर रज्जो ने उसकी बात अनसुनी कर उसके हाथ पकड़ कर लिए —

” बहुत थकान हो गयी होगी चलो  पहले हाथ-मुँह धो कर कपड़े बदल लो ‘

मम्मी भी बोल रही हैं ,

” हाँ जाओ पहले आराम कर लो फिर ब्रेकफास्ट कर के आना मेरे पास “

मजबूरन चांदनी को उठ जाना पड़ा था।

वह रज्जो के साथ बाहर निकल गयी।

थकी हुई तो थी ही।

माँ को इस अवस्था में देख कर मन भी भारी हो गया है।

‘ मन… हाँ यह मन ही तो है सब पीड़ा का कारण ‘

वह सीधे बाथरूम में घुस कर शावर खोल कर उसके नीचे खड़ी हो गई है।

बाथरूम में देर तक रोकर और नहाकर जब बाहर निकली तो ताजगी महसूस कर रही है।

धीरे-धीरे चलती हुई किचन में उसकी मनपसंद के आलू के पराठे और ताजे खीरे के रायता तैयार करती रज्जो दीदी के पीछे चुपचाप जा कर खड़ी हो गई,

” आ गई नहा कर  मेरी डॉक्टरनी साहिबा ” रज्जो ने बिना देखे ही बोल दिया ।

‘ हाँ दीदी मगर तुमने कैसे जान लिया ? ‘

तुम्हारी खुशबू से बिन्नो रानी ,

” दीदी अब तो बताओ मम्मी को क्या हुआ है  ? “

” हाँ चलो चेयर पर बैठो कुछ खा लो “

चांदनी चुपचाप अच्छे  बच्चे की तरह बैठ गई “

रज्जो दीदी गर्म पराठे सेंक कर प्लेट में रख दीचांदनी को जोरो से भूख लगने के बाबजूद बस एक ही  पराठे  खा पाई।

फिर रज्जो ने जो बताया था उसे सुन कर भीतर सब कुछ गल कर पानी के जैसा होने लगा था।

‘ माँ की एक हफ्ते की बुखार के इलाज के दौरान ही उनके बाईं छाती में हल्की सी गाँठ डिटेक्ट हुई है,

चंदा बड़े अस्पताल के डाक्टर साहब भी आए थे उन्होंने ही बताया है  ,

‘ अभी कुछ कह नहीं सकते है बाएऑप्सी के लिए भेजा है उन्होंने।

रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ आगे का इलाज चलेगा ‘

कहती हुई रज्जो बेदम होने लगी थी।

उफ्फ…  यह क्या ?

क्या सोच कर आई थी और यहाँ क्या  देख रही है ?

थोड़ी देर के लिए आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

लेकिन अगले ही क्षण चांदनी ने अपने को संयत कर लिया है,

‘ नहीं यह समय कमजोर होने का नहीं बल्कि हिम्मत के साथ आगे बढ़ने का है ‘

मन में यह विचार आते ही मम्मी के लिए बने सूप के वॉउल उठाए और स्थिर कदमों से मम्मी के कमरे की ओर बढ़ गयी है …।

अगला भाग 

बेबी चांदनी (भाग 6) – सीमा वर्मा

बेबी चांदनी (भाग 4) – सीमा वर्मा

      सीमा वर्मा /नोएडा

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