आशियाना

शर्मा जी अपने 60 साल की रेलवे की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. वह कोलकाता के रेलवे कॉलोनी  के सरकारी क्वार्टर में रहते थे। उनके क्वार्टर में अब दूसरा रेलवे कर्मचारी आने वाला था. उसका फोन शर्मा जी को आज ही आया कि शर्मा जी हम संडे को आ रहे हैं।  आप जितना जल्दी हो सके घर खाली कर दीजिए।

शर्मा जी ने अपनी मिसेज अनीता जी को यह बात बताई।  अनीता जी संडे तक किसी भी हाल में हमें यह घर खाली करना होगा.  अनीता जी यह सुन गुस्से में हो गई। उन्होंने शर्मा जी से साफ-साफ बोल मना कर दिया था चाहे कुछ भी हो जाए मैं यह घर खाली नहीं करूंगी मैंने इस घर को 30 सालों से अपने प्यार से सींचा है,

घर की एक-एक ईंट गवाह थी कि कितनी लगन और मेहनत से मैंने इस घर को सजाया संवारा है। अनीता जी सोच रही थी कि कुछ दिन में यह घर किसी और का हो जाएगा।  अपना बेडरूम, अपना रसोई, अपने पूजा का छोटा सा कमरा और प्यारी सी बालकनी कल तक जो इनका था आज कैसे पल भर में पराया हो जाएगा।

उनके हाथों से पाल पोस कर बड़ा किए गए पेड़ पौधे ना जाने कल से इनका क्या होगा उनका देखभाल भी करेगा या नहीं यह सब सोचकर तो उन्हें रुलाई आ गई।  जिस घर में 30 सालों की यादें जुड़ी हो उसे यूं ही छोड़कर चले जाना कोई आसान काम नहीं था



अब यह कोई रेलवे की क्वार्टर नहीं बल्कि मेरा घर है और मैं जब तक जिऊंगी, इसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।  शर्मा जी ने प्यार से अनीता जी को समझाया भाग्यवान तुम बात को समझती क्यों नहीं हो यह सरकारी क्वाटर है,, इसे तो हमें एक दिन छोड़ना ही था जब तक नौकरी थी जब तक क्वार्टर था।  अब नौकरी खत्म हो गई क्वार्टर भी खत्म हो गया।

अनीता जी ने शर्मा जी से बोला चलो ठीक है मैं यह घर खाली कर दूंगी तो अब बताओ हम लोग रहेंगे कहाँ।

शर्मा जी सोच में पड़ गए वह बोले देखो भाई अब रिटायर होने के बाद पहले वाली कमाई तो रही नहीं।  पेंशन भी आधा हो गया है और फिर बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्चा इस पेंशन से तो चलने वाला नहीं है।

ऐसा करते हैं कि हम अपने घर बिहार चले जाते हैं हम दोनों वहीं पर रहेंगे बड़े बेटा वहीं पर कोई बिजनेस कर लेगा छोटा बेटा और बिटिया पटना में उनको हॉस्टल में रख देंगे वह अपनी पढ़ाई वहीं से करेंगे।

शनिवार को घर छोड़ने के लिए डिसाइड हुआ।  आप सबको तो पता है जब घर मे सामान होता है तो पता नहीं चलता है लेकिन जब हम घर को खाली करते हैं तो लगता है कि घर में ना जाने कितना सामान है।

शर्मा जी और अनीता जी दोनों लोग घर खाली करने में जुट गए और यह देखने लगे कि कौन सा सामान हम अपने  घर बिहार ले जा सकते हैं और कौन सा सामान यहां कबाड़ी वाले को बेचना पड़ेगा।



क्योंकि बिहार इतना सारा सामान तो लेकर जा नहीं सकते थे।  शर्मा जी के बड़े बेटे मोहित ने कबाड़ी वाले को बुलाकर लाया। अब शर्मा जी की बहू रिधिमा अनीता जी और उनके दोनों छोटे बेटे बेटी घर को खाली करने में लग गए थे।  अनीता जी बार-बार घर में जाती और बाहर आती क्योंकि उनको इस घर से इतना लगाव हो गया था कि उसे छोड़ कर उन्हें जाने का मन नहीं कर रहा था।

उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनकी दुनिया ही उजड़ गई हो जब कबाड़ी वाले को घर का सामान बेचे जाने लगा अनीता जी बार-बार उस सामान को चुमती रहती थी।

क्योंकि घर का बहुत  सारा सामान वह शर्मा जी के पॉकेट से धीरे-धीरे पैसे चुराकर खरीदे थे।  आज वह कौड़ियो के भाव में बिक रहे थे। अनीता जी ने फिर भी बहुत सारा सामान अलग कर दिया था उन्होंने बोल दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं इन्हें नहीं बेचूँगी।  जैसे अपने घर का मंदिर, तुलसी जी का पौधा लगा गमला आदि।

कुछ देर में ही सारा घर खाली हो गया था कबाड़ी वाले ने घर के सारे पुराने फर्नीचर अलमीरा आदि लेकर चला गया था।

अब घर बिल्कुल ही खाली और सुनसान लगने लगा था लेकिन अनीता जी को अभी भी घर से जाने को मन नहीं कर रहा था अनीता जी बार-बार हर कमरे में जाती। इतनी सारी यादें जुड़ी हुई थी अनीता जी के इस घर से अनीता जी के बेटी की शादी भी इसी घर से हुई थी फिर तीनों बेटा बेटी भी इसी घर में पैदा हुए थे। यह एक क्वार्टर नहीं था बल्कि किसी का घर  बन चुका था।



मोहित ने जल्दी से सबको तैयार होने के लिए बोला क्योंकि शाम को 6:00 बजे उनकी ट्रेन थी बिहार जाने के लिए। घर से जाते हुए अनीता जी अपने घर को आखिरी बार जी भर कर देख लेना चाहती थी उनके आंसू रोके रुक नहीं रहे थे

कुछ देर बाद सारे घर के लोग स्टेशन आ चुके थे।  ट्रेन आई ट्रेन से चलकर अगले दिन सभी अपने गांव रामपुर पहुंच चुके थे।  शर्मा जी बहुत दिनों से गांव आते जाते नहीं थे इसलिए गांव वाले घर का भी मरम्मत नहीं हो पाता था आए तो देखें कि घर के आगे का हिस्सा टूटा पड़ा है दरवाजा भी नहीं है।  लेकिन अब क्या किया जा सकता है सब लोग उसी घर में एडजस्ट हुए बाहर एक बेडशीट का पर्दा लगाया गया तत्काल के लिए।

गांव में किसी का भी मन नहीं लगता था क्योंकि बच्चे इतने दिनों से शहर में रह गए थे उनको भला गांव में कैसे मन लगता।  लेकिन मजबूरी थी अब तो किसी हाल में गांव में रहना ही था।

कुछ दिन के बाद छोटे बेटे और बेटी का एडमिशन पटना एक हॉस्टल में करा दिया गया ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें।  बड़ा बेटा को उसके शर्मा जी सोच रहे थे कि दुकान करा दिया जाए ताकि वह कुछ कमा सके और घर का खर्चा आराम से चलें।

लेकिन मोहित की बीवी गांव में रहना नहीं चाहती थी क्योंकि वह शहर की रहने वाली थी और उसे गांव की जिंदगी बिल्कुल पसंद नहीं वह किसी भी हाल में गांव में नहीं रहना चाहती।  मोहित को अक्सर कहती थी तुम चलो कोलकाता वहां पर पापा से कह कर कहीं ना कहीं प्राइवेट नौकरी तो लगवा दूंगी। वहीं पर रहेंगे लेकिन मोहित अपने मां बाप का आज्ञाकारी बेटा था वह अपने मां बाप के विरोध में जाकर कोई भी काम नहीं कर सकता था।  मोहित की बीवी रिधिमा ने जिद मे भोजन करना ही छोड़ दिया।



जब तक तुम शहर में कमाने नहीं जाओगे मैं खाना नहीं खाऊंगी।  यह सब देखकर शर्मा जी और अनीता जी ने भी यही फैसला किया कि मोहित को कमाने के लिए शहर भेज दिया जाए।  कुछ दिनों के बाद मोहित कमाने के लिए शहर चला गया। मोहित क्योंकि शहर में मोबाइल रिपेयरिंग का कोर्स किया था इसलिए उसकी नौकरी अच्छी कंपनी में लग गई थी और वह अच्छा पैसा कमाने लगा था।  शुरू में तो कुछ महीने पैसे भेजा करता था लेकिन जब गांव आया तो उसकी बीवी उसके साथ जाने के लिए जिद करने लगी मैं अब गांव में एक मिनट भी नहीं रहूंगी।

रिद्धिमा को जिद्द को देखते हुए सब ने यही फैसला किया।  बेटा मोहित तुम अपने अपनी बीवी को शहर ले जाओ वरना यह ऐसे ही करती रहेगी मोहित भी बेचारा क्या करता।  इतना समझाया कि मां पिताजी अब बूढ़े हो गए हैं तुम

यहां पर रहोगी तो मां बाबूजी की सेवा भी हो जाएगा।  लेकिन रिधिमा बिल्कुल भी नहीं कुछ भी समझने को तैयार थी। उसने साफ साफ मना कर दिया था मैं तुम्हारे मां बाबूजी की सेवा करने के लिए मैं अपने बच्चों की जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकती हूं।  तुम ही बताओ अब हमारा बच्चा 3 साल का हो गया है अगले साल स्कूल में एडमिशन कराना होगा गांव में कौन से स्कूल में पढ़आओगे। तुम क्या चाहते हो तुम्हारा बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़े । मोहित ने समझाया ऐसी बात नहीं है मैं पैसा भेज दिया करूंगा प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवा देना।  लेकिन रिद्धिमा को तो शहर में जाना था इस लिए वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी आखिरकार रिधिमा और मोहित शहर को चल दिए थे।



अगले साल बेटी की एक अच्छा लड़का देखकर शर्मा जी ने शादी कर दिया था उन्होंने सोचा कि अपने जिंदगी में बेटी की शादी कर देता हूँ।  पता नहीं मेरे नहीं रहते हुए यह सब कैसे घर में बेटी कि शादी करेंगे इसलिए उसे अभी पढ़ाई के दौरान ही शादी कर दिया था। छोटे बेटा राकेश का भी मेडिकल में एडमिशन हो गया था।  लेकिन मेडिकल का फीस जमा करने के लिए लिए शर्मा जी के पास अब बिल्कुल ही पैसे नहीं बचे थे क्योंकि जो भी पैसा उन्होंने जमा किया था बेटी के शादी में खर्च हो गया था। अब बचा था तो उनके पास गांव का पुश्तैनी घर।  मोहित से भी उन्होंने बोला छोटे भाई की मेडिकल की फीस जमा करनी है तुम भी कुछ हेल्प कर दो लेकिन मोहित तो साफ मुकर गया था बोला बाबूजी आप ही बताओ 20 हजार की नौकरी में बचता ही कितना है और आजकल आप तो देख ही रहे हो कि महंगाई इतनी बढ़ गई है।

शर्मा जी समझ गए थे कि मोहित राकेश की मदद नहीं करना चाहता है लेकिन शर्मा जी राकेश जी का फ्यूचर बर्बाद नहीं करना चाहते थे।  उन्होंने अपने गांव का घर का कुछ हिस्सा बेचकर राकेश की फीस जमा कर दिया। बेटा राकेश कुछ दिनों बाद डॉक्टर बन दिल्ली के एम्स में ज्वाइन हो गया था।

राकेश को नौकरी करते हुए अब 3 साल से भी ज्यादा हो गए थे उधर गांव में शर्मा जी और अनीता जी बेटे के शादी के बारे में सोच रहे थे तभी शर्मा जी के फोन पर बेटा राकेश का फोन आया और बोला पापा जी आप लोग जल्दी से 11 तारीख को दिल्ली आ जाओ।  क्योंकि हमारा रिसेप्शन है यह सुन शर्मा जी को जैसे करंट सा लग गया हो रिसेप्शन ! बेटा तुमने शादी कब कर ली पापा क्या बताऊं इतनी जल्दी में शादी हो गई कि मैं आपको बता नहीं पाया। एक्चुली बात यह है थी कि राकेश शादी में अपने मां-बाप को बुलाना ही नहीं चाहता था उसे लग रहा था कि मेरी मां बाप शादी में आएंगे तो मेरी बेइज्जती हो जाएगी।



उसे यह नहीं पता था कि जिस मां-बाप ने अपना सब कुछ बेच कर उसे आज डॉक्टर बनाया था आज उस को ही अपनी शादी में बुलाने में बेइज्जती हो रही थी।  रिसेप्शन में भी वह इसलिए बुलाना चाह रहा था क्योंकि उसमें कोई खास लोग नहीं आने वाले थे तो सोचा चलो मां-बाप को भी बुला लेते हैं। पापा को बोला पापा आप अपना सारा सामान भी लेकर आना क्योंकि मैं सोचता हूं कि अब आप लोग गांव में रहकर क्या करेंगे वहां कोई देखभाल करने वाला तो है नहीं आप लोगो का अब आप लोग मेरे साथ ही शहर में रहेंगे।

शर्मा जी ने यह सारी बात अनीता जी को बताया। जब  अनीता जी ने अपने बेटे की शादी की बात सुनी तो जैसे उनको आग ही  लग गई उन्होंने साफ मना कर दिया अपने आप शादी कर ही लिया है तो रिसेप्शन भी कर ले।

हमें क्या जरूरत है वहां जाने की और सुनो जी एक बात मैं आपको साफ-साफ कह दे रही हूं आपको भी वहां जाने की जरूरत नहीं है।  एक बार तो मैंने आप के कहने पर अपना घर छोड़ दिया था लेकिन अब मैं इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी अब मैं मरूंगी तो इसी घर में। चाहे कुछ भी हो जाए मेरी अर्थी अब इसी घर से निकलेगी।  

शर्मा जी  ने अनीता जी को आखिर मना ही लिया उन्होंने बोला अनीता जी इतना गुस्सा नहीं होते आखिर बेटा है एक छोटी सी गलती करी तो क्या हो गया प्यार से हमे वह बुला तो रहा है।  आखिर हमने उसे पढ़ाया-लिखाया किस लिए आज वह सक्सेसफुल डॉक्टर बन गया है तो हमें खुश होना चाहिए।



चलो चलते हैं एक बड़ा बेटा है जो आज तक कभी हमारी खबर तक भी नहीं लेता है कि हम जिंदा है कि मर गए छोटा बेटा प्यार से बुला रहा है तो  चलो चलते हैं। शर्मा जी ने जाकर टिकट काउंटर से टिकट रिजर्वेशन करा लिया था। दिल्ली जाने के लिए आज फिर से अनीता जी का “आशियाना” पराया हो रहा था एक ही जिंदगी में दो बार अपने घर को हमेशा के लिए छोड़ कर जाना अनीता जी को बिल्कुल ही बुरा लग रहा था लेकिन क्या करें जाना तो पड़ेगा ही यहां पर भी उनको करने वाला कोई नहीं थी। शर्मा जी भी अब बूढ़े हो चले थे।  

10 तारीख को शर्मा जी और अनीता जी दिल्ली पहुंच चुके थे।  घर के नजदीक ही किसी हाल में रिसेप्शन था लेकिन घर से जाते वक्त राकेश ने अपने मम्मी पापा को बता दिया था।  अगर आपसे कोई पूछे कि आप कौन हैं तो आप बता देना कि हम राकेश के गांव के चाचा चाची हैं यही दिल्ली में रहते हैं राकेश ने बोला तो हम शामिल होने आ गए थे।

यह  यह बात सुन  शर्मा जी को लगा कि  पैरो तले जमीन ही खिसक गई तनिक भी उम्मीद नहीं था कि हमारा बेटा हमारी ऐसी बेइज्जती करेगा।  आख़िर पार्टी में चले गए वहां तो उन्हें किसी ने कुछ नहीं पूछा और ना ही राकेश ने किसी से अपने मां-बाप का परिचय कराया था।  कई लोगों ने पूछा कि तुम्हारे मम्मी पापा कहाँ हैं शादी मे भी शामिल नहीं हुये थे। तो राकेश बोला पापा की तबीयत ठीक नहीं है इस वजह से नहीं आ पाए।  अनीता जी बिल्कुल ही टूट गई थी पार्टी खत्म होते ही शर्मा जी और अनीता जी घर को वापस आ गए थे।



सुबह होते ही  राकेश उनको गाड़ी में बैठने के लिए बोला अनीता जी और शर्मा जी  समझ नहीं प रहे थी कि कहां जाना है तो उन्होंने पूछा बेटे हम कहां जा रहे हैं।  पापा आप बैठो तो सही रास्ते में सब बता देंगे कुछ देर गाड़ी चलने के बाद गाड़ी नोएडा के एक वृद्धा आश्रम के सामने रुक गई थी।  शर्मा जी सब कुछ समझ गए थे जैसे ही शर्मा जी ने अपनी बेटे की तरफ नजर घुमाए।

बेटा बोला पापा यह आपके लिए सही जगह है आपको तो पता ही है कि मैं और आपके बहू दिन भर घर में तो रहते नहीं है पूरे दिन हॉस्पिटल में रहते हैं फिर आप दोनों का घर में मन भी नहीं लगेगा तो हमने सोचा क्यों ना आप लोगों को इस आश्रम में भर्ती कर दिया जाए।  यहां पर आपकी तरह के बहुत सारे लोग रहते हैं उनके साथ आपकी दोस्ती हो जाएगी और मन भी लगेगा और फिर मैं भी हर संडे को आपसे मिलने तो आता ही रहूंगा।

राकेश वृद्धा आश्रम  के अंदर गया और जो भी आश्रम की फॉर्मेलिटी होती है वह पूरा करके अपने मां-बाप को वहीं पर छोड़ कर वापस आ गया था।

शर्मा जी और अनीता जी सिर्फ एक दूसरे को गले मिलकर रोये जा रहे थे उन दोनों को कहने के लिए अब उनके पास कोई भी शब्द नहीं था क्योंकि उनका “आशियाना”  इस बार हमेशा के लिए छूट गया था।

लेखक: मुकेश कुमार

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