बेटा होने का दर्द-मुकेश कुमार

कविता ने जैसे हि अपना ग्रेजुएशन  कंप्लीट किया। उसके मां-बाप को उसकी शादी की चिंता सताने लगी। कविता के पापा भी कोई ज्यादा अमीर नहीं थे घर मे ही एक छोटा सा किराना दुकान था  जिससे उनके घर का खर्चा चलता था। कविता के एक दूर के फूफा ने एक लड़के के बारे में बताया जो देल्ही में प्राइवेट नौकरी करता है। दिल्ली में किसी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड का जॉब करता था।  

लड़का भी देखने में ठीक-ठाक था इस वजह से कविता के मां-बाप को लड़का पहली नजर में ही पसंद आ गया उन्होंने कविता के फूफा से कविता के लिए बात चलाने को कहा। लड़के वाले  का भी कोई ज्यादा डिमांड नहीं था इस वजह से कविता की शादी सतेंद्र से ठीक हो गई।

इस शादी से कविता भी बहुत खुश थी वह शहर जाने के सपने देखने लगी थी वह सोच रही थी किस शहर में जाएगी तो वह अपना पढ़ाई भी कंटिन्यू करेगी और b.ed करके टीचर बनेगी जब तक घर में ही वह ट्यूशन पढ़ा देगी।

शादी होने के बाद 1 साल हो गया लेकिन सत्येंद्र कविता को शहर नहीं ले गया वह हमेशा अपने मां की बीमारी का बहाना बनाकर कविता को मना लेता था।



कविता बेचारी भोली सी लड़की सत्येंद्र की चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाती थी।  सत्येंद्र की मां कहीं से भी बीमार नहीं थी लेकिन वह जब बहू को देखती थी तो काम ना करना पड़े इस वजह से बीमारी का बहाना कर देती थी। कविता ने  क्या क्या सपने देखे थे सब मिट्टी में मिल गए ।

सतेंद्र को  दिल्ली गए 2 साल हो गए थे।  हमेशा छुट्टी का बहाना बनाकर वह वापस घर नहीं आता था।  अगर सत्येंद्र कुछ पैसे भी घर भेजता था तो वह उसकी मां अपने पास ही रख लेती थी बोलती थी कि तुम पैसे का क्या करोगी जो तुम्हारी जरूरत है मुझसे  बोल दिया करो।

3 सालों में कविता बिल्कुल ही कमजोर हो गई थी कितने सपने संजोए थे उसने अपने जीवन के सोचा था  बड़े शहर जाएगी B.Ed करेगी और टीचर बनेगी लेकिन ताश के महल की तरह सारे सपने एक पल में ढ्ह गए थे।

सत्येंद्र जब गांव आया तो उसने अपनी बीवी के लिए बहुत सारी गिफ्ट लेकर आया था उसके पसंद के साड़ी चूड़िया और बहुत कुछ।   कविता अपने लिए इतना सारा सामान देखकर बहुत खुश हुई । औरतें होती ही ऐसी है। थोड़ा सा कोई प्यार से बातें क्या कर दे वह पल भर में अपने सारे गम भूल जाती है और उस आदमी की हो जाती है।

यही तो एक नारी का स्वभाव है।  एक दिन रात सोए हुए थे कविता ने सत्येंद्र से दिल्ली ले जाने की बात कही।  सत्येंद्र ने कहा कि इस दिवाली में जब वापस घर आऊंगा तो मैं तुम्हें दिल्ली ले चलूंगा तब तक मैं वहां पर सेपरेट रूम ले लूंगा अभी मैं दोस्तों के साथ ही रूम शेयर करता हूं।  कविता मान गई उसे लगा 6 महीने की ही तो बात है। कुछ दिनों बाद छुट्टी समाप्त होते ही सत्येंद्र वापस शहर चला गया लेकिन कविता के पेट में अपना निशानी छोड़ गया कविता मां बनने वाली थी।  सत्येंद्र को जब यह बात पता लगा तो वह बहुत खुश हुआ वह अब पहले से ₹1000 ज्यादा भेजने लगा ताकि कविता की दवाई और खानपान के लिए कोई कमी न हो । लेकिन कविता की सास उसे कुछ भी नहीं देती थी बल्कि जो भी सामान खरीद कर लाती थी वह खुद ही खा जाती थी थोड़ा-बहुत कभी कभार काजू किसमिस कविता को दे देती थी।



एक तो कविता गर्भवती थी और उसे पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण कविता भी बहुत ही कमजोर हो गई थी जोकि उसके बच्चे के लिए हानिकारक था ।  और अंत में यही हुआ कविता ने एक बेटे को जन्म दिया लेकिन वह बेटा जन्म से ही विकलांग पैदा हुआ। और खुद भी बच्चे को जन्म देकर स्वर्ग सीधार  गई क्योंकि उसके शरीर में इतना भी खून नहीं था कि उसे बचाया जा सके।

कविता के मरने के दो-तीन साल बाद ही सत्येंद्र की दोबारा शादी हो गई थी।  कैसा भी था सत्येंद्र अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था जब उसे अपनी मां की हरकतों के बारे में पता चला कि उसकी बीवी को  उसकी मां बहुत सताती थी और जो भी वह पैसे भेजता था उसे ₹1 भी नहीं देती थी इस वजह से इस बार सत्येंद्र ने अपनी बीवी को शादी के बाद ही दिल्ली  लेकर आ गया था।

कविता का विकलांग बेटा राजेश अपनी दादी के पास ही रहता था उसके लिए सत्येंद्र शहर से पैसे भेज दिया करता था लेकिन कुछ दिनों के बाद सतेंद्र की मां भी स्वर्ग सिधार गई इस वजह से राजेश को देखभाल करने के लिए कोई नहीं बचा था।

सतेंदर ने आखिर में यही फैसला किया कि राजेश को अपने साथ ही शहर में रखेगा लेकिन उसकी नई वाली पत्नी रमिता इसके लिए तैयार नहीं थी। सत्येंद्र ने  अपनी नई पत्नी रविता के कान में बताया कि राजेश को दिल्ली ले जाने में हमें घाटा नहीं है बल्कि हमें फायदा ही है वह बोली कैसे फायदा है तो उसने बताया कि  राजेश तो विकलांग है अगर हम इसे दिल्ली में मेट्रो के गेट के नीचे बैठा दें सुबह और शाम तो लोग इसको बहुत सारा भीख दे देंगे और वह पैसा हम अपने पास रख लेंगे इससे हमारा अच्छा खासा कमाई हो जाएगा।



कहते हैं कि भगवान जब एक रास्ता बंद करता है तो दूसरे रास्ते हमारे लिए खोल  भी देता है यही बात राजेश के साथ लागू होती थी राजेश भले ही पैरों से विकलांग था लेकिन उसे पेंटिंग करने का बहुत ही शौक था वह किसी भी चीज को देखकर उसका नकल कर सकता था।  जब उसे पता चला कि बाबूजी उसे शहर ले जाएंगे और अपने साथ में रखेंगे तो बहुत खुश हुआ।

राजेश  को पढ़ने लिखने का बहुत शौक था लेकिन वह गांव में स्कूल नहीं होने के कारण पढ़ नहीं पाता था उसने सोचा कि शहर जाऊंगा तो पापा से  सरकारी स्कूल में नाम लिखवा लूंगा और धीरे धीरे बैसाखी के सहारे स्कूल चला जाऊंगा। पर उसे क्या पता था कि उसके मां बाबूजी दिल्ली उसे पढ़ने के लिए नहीं बल्कि उसे भीख मंगवाने के लिए ले जा रहे हैं।

दिल्ली ले जाने के बाद राजेश को 1 सप्ताह तो उसकी सौतेली  मां ने अच्छा से रखा खाना भी उसे टाइम से खिला दिया करती थी।  लेकिन 1 सप्ताह के बाद राजेश को उसके बाबूजी ने बताया कि कल से तुम्हें कमाने के लिए ड्यूटी जाना है।

राजेश बोला बाबूजी मैं इस उम्र में कौन सा नौकरी करूंगा कौन मुझे काम देगा और फिर मैं तो पढ़ना चाहता हूं।  राजेश की सौतेली मां ने ताने मारते हुए कहा बड़ा आए पढ़ने वाले अपने पैर नहीं देख रहे हो, चले हैं पढ़ने के लिए, पढ़ लिख कर भी क्या कर लोगे जो तुम्हारे बाबूजी कहते हैं वह कर लो।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे कौन सी जॉब करनी है।  सुबह होते ही उसकी सौतेली मां ने राजेश को पुराने कपड़े पहनने के लिए दे दिए नए कपड़े उतारकर यह वाले पुराने कपड़े पहन लो।  वह बोल रहा था यह कौन सी नौकरी है जहां पर पुराने कपड़े पहन कर जाना है राजेश के पापा ने बोला सब समझ में आ जाएगा जो तुम्हारी मां  जो कहती है वह करो।

कुछ देर के बाहर अपने साइकिल पर बैठा कर सत्येंद्र उसे मेट्रो के गेट के सामने ही एक चटाई बिछाकर बैठा दिया और हां वहीं पर एक छोटा सा कटोरा रख दिया।  राजेश को अब समझते देर नहीं लगी उसका बापू जी उसे भीख मंगवाना चाहते हैं।



बाबूजी बाबूजी मैं यह काम नहीं कर सकता मुझे बहुत शर्म लगेगी।  राजेश ने उसे डांट कर चुप करा दिया। और बोला कि वापस आते हुए मैं तुम्हें ले चलूंगा।   शाम के 6:00 बज गए थे लेकिन अभी तक उसका बाबूजी नहीं आया था राजेश काफी परेशान हो गया था।

राजेश एक रिक्शे वाले को अपने घर पहुंचाने के लिए बोला और उसे दिन भर में जो पैसे कमाए थे उसको दे दिया रिक्शे  वाले ने राजेश को उसके घर पहुंचा दिया था। राजेश की मां ने राजेश को घर पर देखते ही गुस्से में लाल हो गई और उसे डांटना और मारना पीटना शुरू कर दीजिए।

बोली  अभी तो ही कमाने का टाइम है और तुम घर चला आया शाम को जब लोग ऑफिस से घर आते हैं तो कुछ ना कुछ पैसे देते हैं और तुम चले आए घर।  राजेश ने साफ मना कर दिया कि मैं कुछ भी हो जाएगा कल से भीख मांगने नहीं जाऊंगा।

रात को  सत्येंद्र जब घर आया  तो रमिता ने राजेश के बारे में बताया  कि वह भाग कर आ गया। यह सुन सत्येंद्र भी जाकर राजेश को बहुत मारा और बोला कल से तुम अपने मन से अगर घर आ जाओगे तो उसके बाद मैं तुम्हें घर में घुसने नहीं दूंगा ध्यान रखो जब तक मैं वहां आऊं तब तक तुम्हें वहीं बैठना है और हां अगर तुम्हें भूख और प्यास लग रही है तो घर पर कल से एक बोतल पानी ले लेना।

यह सिलसिला अब रोज चलने लगा सुबह होते ही राजेश को पुराने कपड़े पहनाकर मेट्रो के नीचे छोड़ दिया जाता था रात को 9:00 या 10:00 बजे राजेश जाकर साइकल से उसे घर लेकर आता था और उसके सारे पैसे भी लेता था घर आने के बाद भी उसे उसकी मां जो भी दिन की बची खुची सब्जियां और खाना होता था वही खाने को देती थी।



मैंने पहले ही बताया है कि राजेश को पेंटिंग बनाने का बहुत ही शौक था इस वजह से दिन  में जब वह खाली रहता था तो वह ऐसे ही पेपर पर पेन से किसी किसी चीज की पेंटिंग बनाते रहता था और बाहर फेंक देता था।  एक दिन वह जब पेंटिंग बना रहा था तब तक उस पर एक मैडम की नजर पड़ी उनकी दिल्ली में ही पेंटिंग की दुकान थी। मैडम ने राजेश से बोला कि तुम इतने अच्छे पेंटिंग कर लेते हो फिर भी भीख क्यों मांगते हो राजेश ने अपनी मजबूरी बताया।

वह मैडम एक सोशल वर्कर भी थी इस वजह से राजेश को सीधे ही वहां से फोन 100 नंबर  पर कॉल करके थाने ले गई और उसे अपने पास रखने की इजाजत मांग ली। सतेन्द्र और रमिता राजेश को मैडम के पास ले जाने देना  नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें पता था कि अगर राजेश चला जाएगा तो उनका एक अच्छा खासा कमाई का जरिया भी गायब हो जाएगा।

बल्कि उल्टा उन्होंने उस मैडम पर ही आरोप लगाया कि उन्होंने उसके बेटे को बहकाकर यहां अपने पास ले जाना चाहती हैं।  लेकिन जब राजेश ने अपना शर्ट खोलकर पीठ पर लगे छाले दिखाया यह मुझे रोज रोज मारते पीटते हैं जबरदस्ती भीख मांगने के लिए मजबूर करते हैं।

तो पुलिस ने राजेश को मैडम के साथ जाने की इजाजत दे दी।  राजेश अब मैडम के यहां रखने लगा था और मैडम ने उसे स्क्रेच बूक पैंट और ब्रुश दे दिया  अपने घर पर दे दिया था।

राजेश उस पर एक से एक पेंटिंग बनाने लगा उसकी पेंटिंग की मांग मैडम की दुकान में बढ़ गई थी।

एक जगह पर पेंटिंग की प्रदर्शनी आयोजित होने वाली थी उस प्रदर्शनी में मैडम ने राजेश की पेंटिंग को भी लगाया हुआ था।  प्रदर्शनी के आखिर दिन में सर्वश्रेष्ठ पेंटर को पुरस्कार दिया जाना था। यह पुरस्कार राजेश को दिया गया था। राजेश ने इस पेंटिंग में एक औरत को हॉस्पिटल में भर्ती हुए असहाय लाचार दिखया था वह उसकी मां की पेंटिंग थी।

कुछ दिनों के बाद राजेश मैडम की सहायता से एक पेंटिंग स्कूल खोल दिया था और गरीब और असहाय बच्चों को मुफ्त में पेंटिंग सिखाता था।

दोस्तो हमारी कहानी का उद्देश्य यही है कि आप अपने आप को किसी भी तरह से कमजोर ना समझे हर इंसान के अंदर कोई ना कोई एक खूबी जरूर होता है और आप उस को पहचानने और उसी को लेकर आगे बढ़िए हमें विश्वास है कि आप अपने जीवन में एक दिन सफल जरुर होंगे।

कॉपीराइट : मुकेश कुमार

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