मेरी सास मेरी सहेली-मुकेश कुमार

उषा की शादी अगले महीने 9 जून को थी। उषा और उसके मम्मी पापा  सब शादी की तैयारी मे व्यस्त थे । एक दिन सुबह उषा की होने वाली सास नीलिमा जी का फोन उषा के पापा के पास आया। भाई साहब अगर आप बुरा न माने तो आपसे एक बात कहूँ। उषा के पापा बिनोद जी बोले ” बेहिचक बोलिए समधन जी अब तो रिश्तेदार हो गए हैं।

नीलिमा जी बोली भाई साहब कल हम ज्वेलरी खरीदने बाजार गए थे लेकिन हमे कोई ज्वेलरी पसंद ही नहीं आ रह था। मैंने फिर ये सोचा कि आखिर इसे पहनना तो उषा को ही है तो फिर उषा को क्यो न साथ बाजार ले जाऊ जो पसंद करेगी खरीद देंगे। विनोद जी बोले नीलिमा जी जरूर ले जाइए अब तो उषा आपकी बहू बनने वाली है।

अगले दिन दरवाजे पर नीलिमा अपने गाड़ी लेकर खड़ी थीं। विनोद जी बोले अंदर तो आइये। नीलिमा जी बोली भाई साहब लेट हो रहा है अब तो सीधे बारात लेकर ही आपके घर आएंगे  जल्दी उषा को भेजिये नहीं तो देर हो जाएगा चेतन भी ऑफिस से पहुंचने वाला होगा। अब शादी मे दिन ही कितने रह गए हैं। उसे घर से निकल कर आती है और गाड़ी में बैठने से पहले अपने सासू मां को पैर छूती है नीलिमा जी  ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा जीती रहो बहू।



कुछ देर के बाद बाजार में ज्वेलरी शॉप पर पहुंच गए वहां पर पहले से ही चेतन, उषा और अपने मां का इंतजार कर रहा था।  उषा चेतन को देखकर शरमा रही थी। चेतन भी नजरें चुराकर उषा को देख ले रहा था लेकिन दोनों एक दूसरे से बातचीत नहीं कर रहे थे वैसे तो फोन पर दोनों खूब बात करते थे लेकिन सामने सामने पता नहीं क्यों दोनों को एक दूसरे से इतनी शर्म आ रही थी शायद उनकी मां थी इस वजह से। नीलिमा जी ने सेल्समैन को गले का हार दिखाने के लिए कहा।सेल्समैन ने नीलिमा जी से पूछा कि मैडम किस रेंज में हार दिखाओ।  नीलिमा जी ने बोला कि तुम रेंज कि चिंता मत करो ऐसा सुंदर हार दिखाओ कि मेरी बहू बिल्कुल ही राजकुमारी दिखे।

नीलिमा जी सोच रही थी कि उषा आई हुई है तो क्यों ना साड़ी भी खरीद लेते हैं क्योंकि पहनना उसे ही  है तो अगर उसे की पसंद से खरीदा जाए तो इससे अच्छा क्या हो जाता सकता है यहां से उन्होंने ज्वेलरी खरीद कर सीधे साड़ी वाले के दुकान पर चले गए वहां जा कर उषा के पसंद के साड़ी खरीदा गया।

बाजार से और भी छोटे-मोटे जो सामान खरीदने थे  खरीद कर निलिमा जी बोली बेटी तुम भी बहुत थक गई हो चलो रेस्टोरेंट में कुछ खाकर आते हैं।

रास्ते में जाते वक्त नीलिमा जी उषा को उसके घर पर छोड़ कर अपने घर चली गई।  उस दिन के बाद से नीलिमा जी और उषा मे भी रोजाना फोन पर बातें होने लगी।

एक दिन फोन पर बात करते हुए नीलिमा जी ने उषा से कहा कि मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं जब तुम दुल्हन बनकर हमारे घर आओगी क्योंकि इतने सालों से अकेले मैंने इस घर में बिताया है तुमसे मिलने के बाद ऐसा लग रहा है कि तुम मेरी बहू नहीं बल्कि सहेली हो।



दिन बीतते बिल्कुल भी देर नहीं लगता है धीरे-धीरे शादी का दिन नजदीक आ गया उषा और  चेतन की शादी धूमधाम से हो गया था। चेतन नीलिमा जी का एकलौता बेटा था इस वजह से नीलिमा जी अपने बेटे की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी अपने बेटे के बारात के दिन नीलिमा जी इतना ज्यादा डांस कि सब लोग उनको देखकर यही सोच रहे थे कि मां हो तो ऐसा।  कभी भी अपने बेटे के साथ बेटे की तरह नहीं रही बल्कि शुरू से ही अपने बेटे को एक दोस्त के जैसा व्यवहार किया अब जब चेतन की शादी हो गई है नीलिमा जी नहीं चाहती हैं कि उनकी बहू इस घर में एक पराई लड़की की तरह नहीं रहे बल्कि एक दोस्त की तरह घर में रहे कोई भी परेशानी हो कोई भी तकलीफ हो तो खुलकर  बात करें उसे अपने मन में ना रखें किसी से भी कोई शिकायत हो तो वह बताएं।

उषा को अपने ससुराल गए हुए 1 सप्ताह से ज्यादा बीत गए थे लेकिन नीलमा जी अभी उषा से कोई भी काम नहीं करने देती थी जब भी वह किचन में जाती थी नीलिमाजी  बोलती थी बेटी तुम्हें तो अभी पूरा जिंदगी यही सब करना है अभी अपने पांव की मेहंदी तो छुट जाने दो फिर उसके बाद जो मर्जी करना।

धीरे-धीरे सच में नीलिमा और उषा में इतनी गहरी दोस्ती हो गई कि  उनको देखकर कोई कहीं नहीं सकता है यह दोनों सास बहू है। गलती से भी कभी आपस में तकरार नहीं होता था।  चेतन जैसे ही ऑफिस चला जाता था पूरे दिन उषा और निरमा जी गप्पे लगाती रहती थी अपने कॉलेज के दिनों की बातें बचपन की बातें उषा से  शेयर करके खूब हँसती थीं। नीलिमा जी उषा से अक्सर कहती थी चेतन जो है वह बिल्कुल ही तुम्हारे ससुर पर गया है तुम्हारे ससुर भी ऐसे ही थे बिल्कुल ही शर्मीले और भोले भाले।



शादी के 1 महीने बाद रात को नीलिमा जी, उषा और चेतन सब  डिनर कर रहे थे। सभी नीलिमा जी ने दो टिकट निकालते हुए बोला बहू यह स्विट्जरलैंड की दो टिकट है परसों तुम दोनों स्विट्ज़रलैंड जा रहे हो हनीमून मनाने ।  उषा बोली मम्मी आपको इतना पैसा खर्च करने की क्या जरूरत थी और अभी आप को छोड़ कर हम कहीं नहीं जाने वाले। बहुत यह पैसे मैंने नहीं जमा किए हैं बल्कि तेरे ससुर ने जमा किया था उनका बहुत मन था गुर्जर लैंड घूमने जाने की लेकिन मेरी सास भी मुझसे बहुत प्यार करती थी और वह अक्सर बीमार रहा करती थी इस वजह से तुम को मैं छोड़ कर कहीं भी नहीं जा सकती थी।  फिर चेतन इस दुनिया में आ गया उसके बाद इसकी पढ़ाई स्कूल कब टाइम बीत गया पता ही नहीं चला किशन के पापा मैं मरते-मरते क्या कहा था कि हम तो स्विट्ज़रलैंड नहीं गए लेकिन इस पैसे से चेतन हो उसकी बहू को सुख स्विट्ज़रलैंड जरूर भेजना ऐसा लगेगा हम दोनों ही स्विट्जरलैंड पर आ गए।

अगले सुबह स्विट्ज़रलैंड जाने की तैयारियां शुरू हो गई थी नीलिमा जी अपने बच्चों के बैग पैक करना शुरू कर दिया था एक एक समान उनके बैग में रखते जा रही थी।  चेतन को आंवले का मुरब्बा बहुत पसंद था वह सुबह ब्रश करके एक आंवले का मुरब्बा जरूर खाता था तो नीलिमा जी ने उसे एक डब्बे में डाल के बैग में रख रहे थे तभी चेतन ने बोला मां यह क्या रख रही हो. सफर मे कहीं लीक हो गया तो बैग मे रखे सारे कपड़े खराब हो जाएंगे। नीलिमा जी बोली। ” तेरे लिए इतने प्यार से बनाया है ले तो जाना ही पड़ेगा ही” नीलिमा जी ने अपने बहू और बेटे की पसंद की सारी खाने की चीज पैक कर दिया था।

इतना सामान देखकर उषा बोली माँ हम हनीमून पर जा रहे हैं कोई वहाँ बसने नहीं  जो इतना सारा सामान ले कर जाएंगे। चेतन भी बोल उठा माँ रोज तो घर का खाते ही हैं अब जब घूमने जा रहे हैं तो वहाँ तो बाहर का खा लेने दो।



थोड़ी देर बाद सारा सामान गाड़ी मे चेतन ने  रख दिया था। अब जाने की बारी आ गई थी। जाते समय नीलिमा जी अपने बहू के गले मिली और फिर रोने लगीं। उषा दुबारा नीलिमा जी के गले लगाते हुये कहा ” क्या माँ आप ही तो हनीमून के लिए टिकट खरीद के दिया और  फिर आप ऐसे रो रही हैं जैसे पराए घर जा रहे हैं कभी लौट के वापस ही नहीं आएंगे। चलो माँ आँसू पोछो एक सप्ताह मे तो वापस आ ही जाएंगे। दिन बितते समय ही कितना लगता है।

नीलिमा जी बोली बेटी ” ये तुम्हें लगता है मै तो दिन ही गिनुंगी”

“अरे हाँ माँ वो विडियो कॉल करना सिखाया है न मैंने, उसी से बात करेंगे।

उषा जाते हुए रास्ते मे चेतन से बाते कर रही थी की मम्मी एक सप्ताह कैसे बिताएँगी मेरा तो मन बिलकुल नहीं था पर वो जिद्द करने लगीं तो क्या करे। वैसे तो मैंने बाई को बोल दिया था की घर की सफाई अच्छे से कर देना। माँ की भी देख भाल करती रहना।

“यार उषा अब तुम हनीमून पर जा रही हो अब तो कुछ देर के लिए घर की चिंता छोड़ दो”

कैसे छोड़ दूँ सच कहूँ चेतन मुझे माँ की बहुत याद आ रही है। इस एक महीने मे हमारी इतनी गहरी बौंडींग हो गई है जैसा लगता है हम सास बहू नहीं बल्कि बचपन के दोस्त हैं”

“क्या बात है उषा पहली बार देखा एक बहू को अपनी सास की इतनी तारीफ सुनते हुये वरना ज़्यदातर  बीवियो को तो अपने सास से शिकायत ही रहती है।



उषा बोली ” चेतन, वैसे तो हम औरते हमेशा कहती हैं की मायके जैसा सुख कहीं नहीं मिल सकता ले किन मै गर्व से कह सकती हूँ की भगवान किसी को ससुराल दे तो मेरे जैसा। अगर  सारी सास हमारी मम्मी जैसी हो जाए तो कभी सास-बहू मे किसी बात को लेकर मतभेद ही न हो।

स्विट्जरलैंड पहुँच कर सबसे पहले उषा ने अपनी सास को विडियो कॉल किया और उनका हाल चाल  पूछा माँ आप कैसी हैं, आपकी याद बहुत आ रही है। नीलिमा जी बोली बेटी तुम चिंता मत करो मेरी और अपना हनीमून एंजॉय करो। लेकिन पूरे दिन मे कई बार उषा अपने  सासु माँ को कॉल करती थी। चेतन को कभी गुस्सा भी आता

की आई है हनीमून मनाने और दिल घर पर छोड़ आई है लेकिन अपने माँ के प्रति इतना केयर देखकर चुप हो जाता था। आज के जमाने ऐसी बहू कहाँ मिलता है।

स्विट्ज़रलैंड मे एक सप्ताह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। उषा और चेतन अपने घर आ चुके थे।  स्विट्ज़रलैंड से उषा और चेतन ने मां के लिए भी बहुत सारा गिफ्ट खरीदा था। नीलिमा जी भी ऐसी बहू पाकर धन्य हो गई थीं।

अगले दिन जब चेतन अपने ऑफिस चला गया तब नीलिमा जी और ऊंचा पूरे दिन हनीमून की ही बातें करती रही।  नीलिमा जी ने मजे लेते हुए कहा। ” उषा हमारा चेतन तो बहुत शर्मीला है हनीमून तो सही से मनाया ना”। उषा शरमा गई  और सिर्फ हाँ मे सिर हिला दिया।

कुछ महीने बाद उषा माँ बनने वाली थी।  अब तो नीली माजीसा को कोई भी घर का काम करने ही नहीं देती थी अपनी बहू को इतनी सेवा करती थी कि कोई मां भी अपनी बेटी की कितनी सेवा ना करें।



उषा जब भी अपनी मां से बातें करती तो अपने सासू मां के बारे में तारीफ किया करती मां ऐसा लगता है तुम ही हमारे ससुराल में चली गई हो सिर्फ शरीर ही पतला है आत्मा तो तुम्हारा ही है इतनी केयर करती है मुझे कि मैं तुम्हें क्या बताऊं।  अपनी बेटी के मुंह से अपने दोस्त की तारीफ सुनकर उसकी मां भी हो जाती थी क्योंकि मैं नहीं चाहती हैं उसकी बेटी अपने ससुराल में खुश रहे।

एक दिन चेतन की बुआ आई हुई थी हम सब से मिलने जब उन्हें यह पता चला कि चेतन आप बाप बनने वाला है तो वह बधाई देने के लिए आ गई थी।  लेकिन जब उन्होंने देखा नीलिमा जी अपनी बहू की जितनी ज्यादा सेवा कर रही है सुबह पता नहीं क्यों अंदर अंदर ही जलने लगी थी और नीलिमा को बुलाकर अकेले में कहा नीलिमा तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या कोई अपनी बहू को इतना सर पर चढ़ आता है जितना तुम कर रही हो देख लेना एक दिन ऐसी लात मारेगी कि तुम कहीं के नहीं रहोगे।  नीलिमा की बोली नहीं दीदी आप गलत सोचती हैं उषा ऐसी लड़की नहीं है बल्कि आप वह तो मेरे लिए बेटी से भी बढ़कर है। चेतन की बुआ मन मारते हुए बोली अब मैं क्या कह सकती हूं लेकिन मैं तो इतना ही कहूंगी बहू को जितना टाइट रखोगी उतना ही सही रहता है ज्यादा सर पर चढ़ाना भी सही नहीं होता है।

शाम को नीलिमा जी चेतन की बुआ को लेकर बाजार चली गईं क्योकि ड्राइ फ्रूट खत्म हो चुका था वह खरीदना था। नीलिमा जी ने काजू, बादाम, पिस्ता सब एक-एक किलो लिया। रास्ते मे वापस आते हुये चेतन की बुआ बोली। भाभी कहीं अपने बहू को पहलवान बनाने का इरादा तो नहीं है। हूँ एक हम थे जो पूरे 9 महीने मे मेवा नसीब भी नहीं हुआ था। दीदी ये मेवा मैंने बहू के लिए तो लिया है लेकिन लेने का मकसद यह है की बहू खाएगी तभी तो मेरा नाती भी  तंदुरुस्त पैदा होगा।

आखिर वो दिन आ ही गया जब उषा माँ बन गई उसने एक खूबसूरत सी बच्ची को जनम दिया। नीलिमा जी कहती थीं की ये साक्षात लक्ष्मी जी करुपा है। और बेटियाँ तो नसीब वालों को मिलती हैं। मैंने तो कितनी बार सोचा की मेरी भी एक बेटी हो पर भगवान आज जाकर मेरी मुराड पूरी की।

नीलिमा जी पूरे दिन अपनी बहू और नातिन की सेवा करती रहती थीं।

उषा कुछ महीने बाद अपने ससुराल गई तो उसकी एक सहेली बोली कैसे मैनेज कर लेती है अकेले  ससुराल मे बच्ची भी इतनी छोटी है। मेरे ससुराल वाले तो मुझे बिलकुल भी हेल्प नहीं करते हैं। उषा बोल उठी मेरी सास सिर्फ सास नहीं हैं बल्कि मेरी सहेली हैं इतना केयर करती हैं की भगवान से यही प्रार्थना  करती हूं हर जन्म में मुझे यही सास के रुप में मिले।

कॉपीराइट:मुकेश कुमार

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