मनहूस लड़की-मुकेश पटेल

प्रतिष्ठा और और महेश की शादी बहुत ही धूमधाम से हुई थी कुछ दिनों बाद वह अपने गृहस्थ जीवन में पूरी तरह से रम गए थे।  शादी के 3 महीने बाद ही प्रतिष्ठा को पता चला कि वह मां बनने वाली है। लेकिन वह इतना जल्दी अभी मां बनना नहीं चाहती थी।  

शाम को जब महेश ऑफिस से घर आया तो वह इस बारे में बात की  मैं अभी माँ नहीं बनना चाहती इस बात के लिए राकेश प्रतिष्ठा की बात मान गया उसने भी बोला हाँ  ठीक है लेकिन चलो एक बार मां से पूछ लेते हैं। उनका क्या मन है। अगले सुबह प्रतिष्ठा और महेश अपनी मां से इस बारे में बात किए मां हम दोनों अभी कोई बच्चा नहीं चाहते हैं तो बताओ क्या करें।  

यह बात सुन महेश की मां  मालती जी बिल्कुल ही गुस्से में हो गई उन्होंने बोला तुम्हें क्या पता बच्चे भगवान की देन होते हैं जिनको बच्चा नहीं होता है वह कहां कहां नहीं भटकता है कभी इस मंदिर कभी उस मंदिर तो कभी तांत्रिक के चक्कर काटता है।  और तुम्हें भगवान ने यह खुशी दी है तो तुम इसे इंकार कर रहे हो लेने से देखो महेश मैं तुम्हें साफ कह दे रही हूं किसी भी हाल में तुम अबॉर्शन नहीं करवा सकते हो। यह मेरा हुक्म है।



मालती जी के आगे महेश और प्रतिष्ठा कुछ नहीं बोल सके अब फैसला हुआ बच्चे को जन्म दिया जाएगा।  मालती जी भी बहुत खुश रहने लगी थी कुछ दिनों बाद इस घर में बच्चे की किलकारियां गूंजेगी। तरह तरह के सपने देखने लगी थी।  अपने मुन्ने के साथ ऐसे खेलूंगी वैसे खेलूँगी कभी मुन्ने के लिए मैं घोड़ा भी बन जाऊंगी।

धीरे धीरे 9 महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला प्रतिष्ठा को एक पास के ही निजी नर्सिंग होम में डिलीवरी के लिए भर्ती कर दिया गया। डॉ रजनी ने महेश को अपने कैबिन में बुलाया  और बोली महेश जी हमें प्रतिष्ठा का ऑपरेशन करना पड़ेगा महेश ने हामी भर दी कुछ देर के बाद प्रतिष्ठा को ऑपरेशन थिएटर के अंदर लेकर चले गए।

लेकिन कुछ देर के बाद ही डॉक्टर रजनी ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकली और महेश को  अपने कैबिन में बुलाया महेश ने डॉक्टर के चेहरे पर तनाव देखकर बोला क्या हुआ डॉक्टर रजनी आप इतना परेशान क्यों हैं ।

डॉक्टर रजनी ने तुरंत जवाब दिया सॉरी महेश जी हम आपकी पत्नी प्रतिष्ठा को नहीं बचा पाए.

इतना सुनते ही महेश सर पकड़ कर  बैठ गया और रोने लगा क्योंकि वह प्रतिष्ठा से बहुत ज्यादा ही प्यार करता था।   डॉक्टर रजनी ने उसी समय महेश को बोला लेकिन आपके लिए एक खुशखबरी है आपकी पत्नी ने जाते-जाते एक फूल सी बच्ची आप को गिफ्ट कर गई है.



यह सुन महेश को बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई बल्कि वह उल्टा यह बोला डॉक्टर  साहब इस मनहूस बच्ची को मेरे सामने लाना भी मत उस मनहूस के जन्म होते ही मेरी पत्नी इस दुनिया से चली गई।

इस जन्म में मैं उसकी शकल तक नहीं देखूंगा।  डॉक्टर रजनी ने महेश को समझाया महेश जी आप यह कैसी बात कर रहे हैं बच्चे तो भगवान के रूप होते हैं चाहे लड़का हो या लड़की और इसमें फूल सी बच्ची का क्या दोष  जो भी हो डॉक्टर साहब आप मेरी मां को बुला लीजिए और बच्ची को उन्हीं सौंप दीजिए।

यह कह कर महेश चला गया।  डॉ रजनी बाहर बैठे महेश की मां मालती जी को बच्चे के बारे में जानकारी  दी मालती जी यह सुनकर बहुत ही खुश हुई। बच्ची को गोद में लेकर मालती जी घर लेकर चली गई।   घर आते ही महेश ने साफ-साफ मालती जी को बोल दिया था कि मां तुम चाहो तो इसे अनाथ आश्रम में भेज दो लेकिन इस मनहूस लड़की को कभी भी मेरे आंखों के सामने मत लाना।

मालती जी के लाख समझाने के बाद भी महेश बच्ची को स्वीकार नहीं कर सका।  मालती जी ने प्यार से उस बच्ची का नाम दीक्षा रखा था। मालती जी ने सोचा कि मैं कब तक जीऊंगी आखिर यह बच्ची को पालने के लिए कोई तो होना चाहिए उन्होंने सोचा कि महेश कि क्यों न दोबारा से फिर से शादी कर दिया जाए यही सोच मालती जी ने अपने सारे रिश्तेदारों से महेश की शादी के बारे में बात की एक अच्छा लड़की देख कर महेश की शादी कर दी गई।



पर यह मालती जी को कहां पता था कि जो लड़की शादी करके ला रही है वह जरूरी तो नहीं कि दीक्षा को भी एक्सेप्ट कर पाएगी और वह वही हुआ वह भी महेश की तरह दीक्षा  से नफरत करने लगी। धीरे-धीरे दीक्षा बड़ी हो रही थी। उधर महेश और उसकी नई वाली पत्नी सुनीता को भी एक लड़का हो गया था लेकिन उन्होंने अपने लड़के को भी साफ मना कर दिया था  दीक्षा के साथ कि वह कभी नहीं खेलेगा और ना ही उससे बात करेगा। पर आपको तो पता ही है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं। आखिर चुपके-चुपके दीक्षा और उसकी छोटा भाई दीपू एक दूसरे के साथ खेल ही  लेते थे दिपु अपनी दीदी दीक्षा से बहुत प्यार करता था और दीक्षा भी उसे बहुत प्यार करती थी।

समय बीतता गया दीपू और दीक्षा बड़े हो गए थे।  अब तो कई बार दीपू दीक्षा के लिए घर में लड़ाई भी कर देता था वह दीक्षा को उसका हक़ दिलाना चाहता था। वह अपने मां-बाप से कई बार कह चुका था कि पापा दीदी भी तो इस घर का ही हिस्सा है फिर वह इस घर की हर सुख सुविधा से वंचित क्यों है।  लेकिन दीपू की बात का महेश पर कोई असर नहीं होता था।

कुछ दिनों के बाद दीक्षा की शादी पास के ही गांव में एक लड़के से हो गई।  लेकिन अच्छी बात यह थी कि वह लड़का दीक्षा को बहुत मानता था। लेकिन दीक्षा के सास  उसको हमेशा ताने मारती रहती थी इतनी अमीर घर की लड़की है फिर भी दहेज में कुछ नहीं लेकर आई है क्यों नहीं अपनी बाप  से दहेज में मांगती है। यह बात तो दीक्षा ही जानती है कि वह भले ही कहने को उसका बाप अमीर है लेकिन उसके लिए सिर्फ कहने का ही बाप है।



अपनी सास के ताने दीक्षा चुपचाप सुनती रहती थी उसके बदले में कुछ भी जवाब नहीं देती थी क्योंकि वह जानती थी अब जो भी है उसका यही घर है क्योंकि यहां से अगर वह लड़ाई भी कर ले या कुछ भी कर ले तो वह कहां जाएगी।

इसलिए वह अपने सास की ताने चुपचाप सुनती रहती थी। कुछ दिनों बाद दीक्षा भी मां बनने वाली थी।  दीक्षा की सास ने पास के ही सरकारी अस्पताल में दीक्षा को भर्ती कर दिया। यहां के डॉक्टर ने दीक्षा के पति राकेश को बताया कि हम मां और बच्चे में से किसी एक को ही बचा सकते हैं अब आप बताओ कि आप क्या कहना चाह रहे हो।  राकेश ने कहा डॉक्टर साहब इसमें भी सोचने वाली बात है और हम दीक्षा को ही बचाएंगे क्योंकि दीक्षा रही तो बच्चा तो फिर हो जाएगा. डॉक्टर ने राकेश को बुला राकेश जी ऐसा नहीं है क्योंकि अब इसके बाद दीक्षा कभी भी माँ नहीं बन सकती है अगर यह ऐसा कभी भी किया तो वह अपने आप को जोखिम में  डालने का काम करेगी फिर भी राकेश ने डॉक्टर को बोला कि आप दीक्षा को बचाइए आगे जो होगा देखा जाएगा।

इधर घर में दीक्षा की सास खुशी के मारे पूरा घर सजा रही थी को नाती  होगा लेकिन कुछ देर के बाद ही दीक्षा और राकेश वापस लौटे तो उनके साथ कोई बच्चा नहीं था।

दीक्षा की सास ने घबरा  के पूछा कि राकेश क्या हुआ। राकेश ने डॉक्टर की कही हुई बात को अपने मां से बता दी.  इतना सुनते ही राकेश की मां दीक्षा पर भड़क उठी तू सच में मनहूस है पैदा होते ही अपने मां को खा गई और यहां अपने बच्चे को पता नहीं क्या देखकर हमने तुम्हें शादी कर ली मेरे बेटे की तो किस्मत ही खराब है जो तुम्हारे जैसे बहू मिली.  राकेश अपने मां को डांटने लगा शिक्षा पर ऐसा इल्जाम नहीं लगा सकती हैं इसमें बेचारी दीक्षा का क्या दोष जीना मरना तो सब ऊपर वालों के हाथ है।



ऐसे ही करते करते 2-4 साल बीत गए। एक दिन राकेश की मां ने राकेश से पूछा कि तुम दोबारा बाप नहीं बनना चाहते क्या तो राकेश ने डॉक्टर की कहीं बात बता दी कि अगर दीक्षा कभी मां बनेगी तो फिर से उस पर खतरा हो सकता है इस वजह से मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता।  यह सुन राकेश की मां अब दीक्षा को हमेशा ताने मारने लगी। कैसी लड़की से शादी कर ली तुमने तो हमारे खानदान को ही डुबाने का जिम्मा ले लिया है।

एक दिन जब तक सोई हुई थी उसकी सास ने उसके चारों तरफ किरोसिन  छिड़क कर आग लगा दी उसने सोचा कि अगर यह मर जाएगी तो मैं अपने बेटे की दोबारा से शादी कर दूंगी और हमें इस घर का वारिस मिल जाएगा लेकिन  आग जलते ही दीक्षा की नींद टूट गई और वहां से भागी ।

दीक्षा ने  उसी दिन फैसला लिया कि अब वह मां बनेगी चाहे वह जिंदा रहे या ना रहे।  शाम को जैसे ही राकेश घर पर आया दीक्षा नहीं उससे बोला कि आप मेरी कसम खाओ और कहो कि  जो मैं कहूंगी आप करोगे राकेश ने बोला हां हां क्यों नहीं करूंगा। तुम बोलो तो सही पहले मेरी कसम खाओ।  राकेश बोला मैं तुम्हारी कसम खा रहा हूं बताओ क्या कह रही हो दीक्षा ने बोला राकेश मैं फिर से दोबारा मां बनना चाहती हूं।



राकेश गुस्सा हो गया तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो मैं तुम्हें किसी भी हाल में खो  नहीं सकता यह सुन लो मैंने बोला राकेश तुमने मेरी कसम खाई है अब तुम्हें मेरी इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी राकेश दीक्षा की बात को टाल नहीं सक और कुछ दिनों के बाद दीक्षा  मां बन गई.

धीरे धीरे डिलीवरी के दिन नजदीक आ गया दीक्षा ने पहले ही  राकेश को बोल दिया था अगर ऐसी स्थिति आ जाए कि मेरे और बच्चे में से कोई एक जिंदा रहे तो तुम बेशक बच्चे को जिंदा रखना।

डॉक्टर ने राकेश को देखते ही बोला मैंने तूने पहली भी समझाया था तुम्हारी पत्नी और मां नहीं बन सकती है अगर बनेगी तो उसको या बच्चे में से कोई एक जिंदा रहेगा लेकिन तुमने हमारी बात नहीं मानी राकेश ने अपनी पत्नी की कसम वाली बात डॉक्टर को बता दी।  फिर वही हुआ दीक्षा को बचाया नहीं जा सका। दीक्षा एक प्यारे से बच्चे को जन्म देकर इस दुनिया से प्यारी हो गई थी।

लेखक :मुकेश कुमार

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