“मम्मी, विनीत का स्थानांतरण अहमदाबाद हो गया है, इसी महीने हम लोग शिफ्ट कर जाएंगे।” सुनंदा ने सरला जी को बताया
“बेटा, अभी तुम लोगों को लखनऊ आए एक साल ही हुआ है और फिर से ट्रांसफर हो गया?” आश्चर्य से सरला जी ने कहा
“मम्मी, आप तो जानती ही हों, विनीत की सेंट्रल गवर्नमेंट जॉब है तो शादी के इन छह सालों में तीन जगह स्थानांतरण हो चुका है। सोचा था लखनऊ में आप लोग भी हैं और विनीत के परिवार के सभी लोग भी तो कुछ साल रुकेंगे परंतु इतनी जल्दी अगली पोस्टिंग आ जाएगी , मालूम नहीं था।” सुनंदा ने मायूस होकर कहा
“कोई बात नहीं बेटा दिल छोटा मत कर तुम अहमदाबाद सामान सेट कर लो फिर मिलने आएंगे तुम लोगों से।” सरला जी ने सुनंदा का मूड बदलने के लिए कहा
“हां, पक्का मम्मी आप, पापा, सिया और अंकित, चाचाजी-चाचीजी सभी आना।” सुनंदा ने पुलकित हो कहा
बीस दिन बाद सुनंदा और विनीत फ्लाइट से अहमदाबाद पहुंच गए। उनका सामान पैकर्स के जरिए उसी दिन पहुंचा, दिन में विनीत के ऑफिस के हेल्पर्स ने मिलकर सभी सामान सेट करवा दिया। रसोई में भी करीब-करीब सभी सामान लगा दिया। दिन में बाहर से लंच आर्डर कर दिया, शाम को बाहर जाकर खाने का प्रोग्राम है। हेल्पर्स जा चुके हैं, विनीत भी बाथ लेने गए कि इतने में डोरबेल बोल उठी, टिंग-टांग टिंग-टांग…
“कौन होगा यहां! अभी तो किसी को जानते भी नही हम” सोचते हुए दरवाज़ा खोला तो देखा एक टीन-एजर लड़की हाथ में ट्रे लेकर खड़ी है,” जी मैं अमायरा, हम सामने वाले फ्लैट में रहते हैं। मम्मी ने आपके लिए खाना भेजा है।”
“अरे आपकी मम्मी ने बेकार ही तकलीफ की, हम लोग तो बाहर खाने के लिए निकल ही रहे हैं।” सुनंदा बोली
“दीदी, इसमें तकलीफ कैसी! सच मानिए मम्मी को जब से पता चला है कि आप लोग लखनऊ से ट्रांसफर हो कर आ रहें हैं तब से ही हमें बताएं जा रहीं हैं कि उनका लखनऊ ऐसा, उनका लखनऊ वैसा… मम्मी लखनऊ की हैं तो तारीफ बहुत करती हैं वहां की…”ट्रे बढ़ाते हुए अमायरा बोली
“अच्छा, लखनऊ में कहां से हैं आंटी जी?” सुनंदा ने उत्सुकता से पूछा
“वो तो पता नहीं क्योंकि मम्मी कभी हमें लेकर वहां गईं नहीं।” अमायरा ने बताया
“ओह ऐसा क्या! खाने के लिए आंटी को शुक्रिया बोलना। मैं उनसे कल मिलूंगी।” सुनंदा ने कहा
“ओके दीदी, मैं चलती हूॅ॑। आप मेरा मोबाइल नम्बर नोट कर लीजिए, 90**46** कोई जरूरत हो तो फोन कर लीजिएगा।” कहकर अमायरा चली गई
सुनंदा अनजान शहर में इतने बढ़िया पड़ोसी, वो भी अपने शहर लखनऊ के पाकर बड़ी खुश हुई। विनीत के आने पर सभी बातें बताई, विनीत भी अच्छा पड़ोस जानकर प्रसन्न हो गया।
थोड़ी देर बाद सुनंदा ने खाना निकाला, खाना देखकर उन दोनों के मुंह में पानी आ गया- आलू-मटर की रसेदार सब्जी, भरवां बैंगन, दही-बड़े , रोटी-चावल और साथ में मालपुआ….. देखते ही सुनंदा और विनीत खाने पर टूट पड़े।
मालपुआ खाते ही उसे मानो कोई याद आ गया, किसी के ममतामय स्पर्श का एहसास उसे अंदर तक हिला गया।
मालपुआ खाते-खाते सुनंदा के हाथ सहसा रुक गए, विनीत ने नोटिस कर लिया,” क्या हुआ सुनंदा? तुम रुक क्यों गई?”
“विनीत, ये मालपुआ, इनका स्वाद मुझे किसी का प्यार भरा स्पर्श करा गया। कहीं ये वो ही तो नहीं?”
“क्या कह रही हो, सुनंदा? साफ-साफ कहो, पहेलियां मत बुझाओ। किसका स्पर्श , किसकी याद आ गई तुम्हें मालपुआ खाकर?” प्रश्नवाचक निगाहों से विनीत ने पूछा
“विनीत, मेरी एक बुआ भी थीं, चाचा के अलावा…. “सुनंदा बोली
“पर जहां तक मुझे बताया गया तुम्हारी तो कोई बुआ नहीं हैं।” विनीत ने कहा
“जब मैं करीब बारह साल की थी तब उन्होंने अपनी पसंद के लड़के से शादी करने के लिए बाबा, दादी, पापा , चाचा सभी को बहुत मनाने की कोशिश की परंतु हमसे नीची जाति के होने के कारण घरवालों ने उनकी एक ना सुनी और उनको घर या वर में से एक चुनने को कहा। बुआ ने वर चुना , शादी के बाद वे दोनों यानि बुआ-फूफाजी घर भी आए परन्तु हमारे घर के दरवाजे उनके लिए नहीं खुले। दो-चार बार वे आए पर उनके लिए दरवाजे कभी नहीं खुले…”
“अच्छा! फिर आज ऐसा क्या हो गया कि तुमने उन्हें याद किया।”
“विनीत, बुआ बहुत अच्छे मालपुआ बनाती थीं, मुझे बेहद प्यार करती थीं। मुझे उनके हाथ के बनाए मालपुआ का टेस्ट आज भी याद है, जब मैंने यह मालपुआ खाया तो मुझे उनके स्पर्श का एहसास हुआ। मुझे ऐसा लगा कि उनका वो ममतामय स्पर्श , उनके आस-पास होने का एहसास हुआ मुझे। विनीत , कहीं अमायरा की मम्मी मेरी आस्था बुआ तो नहीं?”
“चलो अभी रात हो गई है, सुबह बर्तन देने जाना तो देख लेना।” विनीत ने कहा
“अभी चलें विनीत, मैं फौरन बर्तन धोकर लाती हूॅ॑।”सुनंदा मनुहार करती बोली तो विनीत मना नहीं कर पाया
रात का नौ ही बजा था, सामने पड़ोसी फ्लैट की डोरबेल बजाई और जिन्होंने दरवाजा खोला उन्हें देखकर सुनंदा की ऑ॑खें भर आई। महिला नहीं पहचानी क्योंकि जब आस्था बुआ ने घर छोड़ा था तब वह एक बारह साल की बच्ची थी और अब करीब तीस साल की शादी-शुदा लेडी…
“आप शायद सामने वाले फ्लैट में आए हमारे नये पड़ोसी हैं।” बर्तन पर नजर पड़ते ही वे बोल उठीं
अंदर आने तक गार्गी का भावनाओं का रुका हुआ बांध टूट गया और वह आस्था बुआ से चिपक कर बोली,” बुआ, पहचाना नहीं, मैं आपकी सुनंदा!”
आस्था बुआ पहले तो भौंचक्की खड़ी रह गईं फिर तो सुनंदा का चेहरा हाथ में भरकर जो बुआ-भतीजी का मिलन हुआ उसने सभी की ऑ॑खें नम कर दी।
फूफाजी, अमायरा भी देखकर सबकुछ समझ गए। बातें हुई, घर की भैया-भाभी सभी के हाल-चाल लिए। बाबा दादी अब नहीं रहें, सुनकर बुआ के आंसू बेसाख्ता बह निकले।
सुनंदा ने बताया कि पापा-चाचा, मम्मी-चाची सभी उन्हें याद करते हैं खास तौर से रक्षाबंधन और भैयादूज पर…
अगले दिन एक नई सुबह हुई, सुनंदा ने अपने घर फोन कर पापा – चाचा सभी को बताया, बुआ ने भी बात की और फूफाजी ने भी… गिले-शिकवे हुए, शिकायतों का दौर चला, मान हुई- मनुहार हुई, फोन पर ही ढेरों आंसू बहे और अब सभी लोग लखनऊ से कल अहमदाबाद आ रहें हैं…. बाकी सभी नाना प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों के साथ
बुआ सबके लिए मालपुआ बना रहीं हैं आखिरकार मालपुआ ने सबका मिलन करवा दिया…
आहा!सच ही अपनों के स्पर्श-एहसास में बहुत शक्ति होती है, कितने बिछुड़े हुए को मिला दिया मात्र एक व्यंजन के स्वाद से अनुभूति हुई स्पर्श की जो याद दिला गई किसी अपने के एहसास की और बरसों से बिछुड़े हुओं को मिलवाया…अपने तो अपने होते हैं, सालों बाद भी उनका स्पर्श याद दिला ही देता है जैसे सुनंदा को मालपुआ खाकर बुआ का ममतामय स्पर्श का एहसास हो आया… ज़िन्दगी एक पहेली सरीखी है कब क्या रंग दिखा जाए कहा नहीं जा सकता है…
दोस्तों, वास्तव में अपने ही अपने होते हैं, आप भी कमेंट सेक्शन में किसी अपने के स्पर्श, उसके एहसास जिसने दूर होते हुए भी उसकी याद दिला दी हों, के बारे में बताना ना भूलें। कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया लाइक और शेयर कीजियेगा। आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
मेरी यह कहानियां भी पढ़िएगा⬇️
मतलबी रिश्ते
https://betiyan.in/matlabi-rishte/
यादों का पिटारा
https://betiyan.in/yaado-ka-pitara/
भागों वाली अभागी!
https://betiyan.in/bhago-wali-abhagi1/
माॅ॑ का जाना
https://betiyan.in/maa-ka-jana/
दो मीठे बोल!
https://betiyan.in/do-methe-bol/
तुमने तो सगे रिश्तों का मान नहीं रखा!
https://betiyan.in/tumne-tosage-rishte-kamaan-nahi-rakha/
वुमन इन डेंजर
https://betiyan.in/women-in-danger/
पहली रसोई
वो गर्वीले पल!
https://betiyan.in/wo-garvile-pal/
डोंट वरी मैं हूॅ॑ ना!
https://betiyan.in/dontworry-mai-hua-naa/
इंसानियत जिंदा है अभी!
https://betiyan.in/insaniyat-zinda-hai-abhi/
सूनी गोद
कहानियां पढ़कर अपनी राय अवश्य साझा कीजिएगा। ऐसी ही खूबसूरत रचनाओं के लिए आप मुझे फॉलो कर सकते हैं।⬇️
https://betiyan.in/category/kahani/samajik-kahaniya/priyanka-saxena/
#अपने_तो_अपने_होते_हैं
धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
1 thought on “‘एहसास अपनों का!’ – प्रियंका सक्सेना”