विश्वासघात – शिप्पी नारंग : Emotional Hindi Stories

72 वर्षीय नवीन जी फटी फटी आंखों से अपने सामने बड़ा सा चाकू लहराते हुए अपने नौकर अशोक को देख रहे थे जो अपने साथी पवन, जो नवीन जी की 70 वर्षीय पत्नी निर्मला जी को पकड़ कर खड़ा था । नवीन जी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि 3 साल से उनका विश्वास पात्र अशोक ऐसी हरकत पर उतर आएगा । 

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हाथ पैर सुन्न हो चुके थे । उनके बेटा, बहू व बच्चे 5-6 दिन के लिए नैनीताल गए हुए थे घूमने के लिए । बच्चों ने बहुत कहा था कि आप भी हमारे साथ चलो पर नवीन जी व निर्मला जी ने अपनी उम्र और उम्र के साथ होने वाली तकलीफों का हवाला देते हुए मना कर दिया और यह भी कहा कि अशोक तो है ना उनकी देखभाल करने के लिए और विश्वास का नतीजा सामने खड़ा था । 

अशोक ने नवीन जी से  अलमारी की चाबी और घर से संबंधित  सारे दस्तावेजों की मांग रखी थी और उसी के लिए वह अपने दोस्त पवन के साथ उनके सिर पर खड़ा हुआ था । अचानक दरवाजे की घंटी बजी । सबकी नजरें दीवार घड़ी पर पड़ी । सुबह के 11:30 बजे थे।  

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पवन ने प्रश्न सूचक नजरों से अशोक को देखा।  “सीमा होगी उसी का टाइम है इस समय कूड़ा लेने आती है तू इधर संभाल मैं देखता हूं । डस्टबिन पकड़ा कर आता हूं मुझे जानती है रोज कूड़ा मैं ही  देता हूं नहीं जाऊंगा तो उसे शक हो जाएगा “कहते हुए अशोक बाहर के दरवाजे की तरफ बढ़ा ।

 पवन ने दंपति के मुंह पर टेप लगा दिया । 5 मिनट तक हलचल होती है फिर दरवाजा बंद होने की आवाज आई । अशोक अभी तक नहीं आया।  पवन.. “अशोक कहां है भाई ..?” कहता हुआ बाहर कमरे तक आया और फिर जड़वत खड़ा रह गया।  

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सामने सोसायटी के अध्यक्ष,  सेक्रेटरी और दो तीन पड़ोसी, नवीन जी के बच्चे और कूड़े वाली सीमा सब खड़े थे। अशोक को नवीन जी के बेटे ने पकड़ रखा था,  पवन कमरे में वापस भागने ही लगा तब एक दमदार आवाज आई.. ” एक कदम भी आगे बढ़ाया तो मैं  गोली चला दूंगा ।

”  यह सोसाइटी के गार्ड की आवाज थी । पवन फ्रीज हो गया । नवीन जी के बच्चे कमरे की तरफ भागे । मम्मी पापा की हालत देखकर बेटे की आंखों में खून उतर आया । बहू एकदम किचन की तरफ भागी और पानी लेकर आई।  बच्चों ने उनके मुंह से टेप उतारी,  सहारा देकर खड़ा किया । बच्चों को देखकर दंपति में जैसे बिजली दौड़ गई । सहारा देकर बच्चे उन्हें बाहर लाए ।

 अशोक और पवन को सब ने गिरफ्त में लिया हुआ था । नवीन जी ने जाकर अशोक के मुंह पर एक कसकर चांटा लगाया “नमक हराम जिस घर का नमक खाया उसी से दगा कर दिया। क्या  कमी दी थी हमने तुझे  चंद पैसों के लिए यह सब किया…?” 

अशोक चुपचाप खड़ा रहा नवीन जी ने बेटे से पूछा तुम लोग अचानक कैसे ..? तुम लोग तो 3 दिन बाद आने वाले थे ।बेटा कुछ कहता कि सोसायटी के सेक्रेटरी भसीन साहब की आवाज आई…”अंकल जी,  सीमा को धन्यवाद दीजिए इसकी वजह से आप बच गए ” 

नवीन जी ने प्रश्न वाहक नजरों से भसीन साहब को देखा।  कल नीचे पार्किंग एरिया में अशोक इस पवन के साथ प्लानिंग कर रहा था कि बुड्ढे के बच्चे नैनीताल गए हैं 5 दिन के लिए कल का दिन ठीक है तू 10:00 बजे आ जाना मैं दरवाजा खोल दूंगा बाकी दोनों बुड्ढों को हम देख लेंगे ।

 सीमा जानती थी कि आपके बच्चे ही गए हुए हैं उसे फौरन मुझे कल ही बता दिया था हमने आपके बेटे को फोन करके बोल दिया था कि अभी ही वहां से चल दो यह लोग सुबह 6:00 बजे पहुंच गए थे मैंने उन्हें पहले अपने घर में आने के लिए कहा था और सीमा को कह दिया कि रोज की तरह अपने समय पर आपके घर जाएगी और दरवाजा खुलवाएगी। 

 बाकी सब आपके सामने हुआ । निर्मला जी सीमा के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं । सीमा एकदम अचकचा गई और बोली “माता जी यह क्या कर रहीं हैं आप..? आप मेरी मां समान हैं ऐसा मत करिए । मैंने अपनी बुद्धि से जो समझ आया वही किया।” 

निर्मला जी अशोक की तरह मुड़ी और बोली “तेरी जगह अगर मैंने एक कुत्ते को पाला होता तो वह भी वफादार होता तू तो आस्तीन का सांप निकला हमें ही डसने चला था” कहते हुए उन्होंने अपनी बहू का हाथ सहारे के लिए पकड़ लिया ।

# बेटियां मंच

#मुहावरा…..आस्तीन का सांप

शिप्पी नारंग

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