सोने का पिंजरा – रश्मि प्रकाश

शीना के चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे….

तभी कमरे में सुमिता जी आ गई….“ क्या कर रही हो दोनों… सोई नहीं अब तक…. ।” कह कर वो भी वहीं बैठ गई

शीना माँ को देखते उनके गले लग गई और बिलख पड़ी….ऐसा लग रहा था आज कई वर्षों बाद वह अपनी माँ के सामने बिलख पड़ी….

“ ऐ शीना ऐसे क्यों रो रही है बेटा बोल ना क्या परेशानी है…. सब कुछ ठीक तो है ना…. किसी ने कुछ कहा है क्या..? सुमिता जी बेटी को बिलखते देख पूछी

“ माँ सोने के पिंजरे में कोई खुश कैसे रह सकता है तुम ही बताओ ना…. बहुत मजबूर सी हो गई हूँ….. गलत कहते हैं लोग बेटी को ऊँचे घर ब्याहने से उसका ज़िन्दगी खुशहाल होती…. तुम्हें पता है परीक्षित तीन भाई और दो बहनें है…. सब अच्छे पढ़ें लिखे और नौकरी कर रहे…. जेठानी और देवरानी दोनों नौकर पेशा और माँ हमारे घर से उनकी हालत ज़्यादा बेहतर भी है तो उनका दबदबा भी रहता…. दोनों जब काम पर चली जाती पीछे से मेरे काम इतने बढ़ जाते क्या बताऊँ…. उपर से सास ससुर के पहचान वाले और दोस्त यार जब तब आते रहते…. जेठानी के बच्चों को स्कूल भेजना , आने पर कपड़े बदलकर खाना खिलाना ये सब भी मुझे ही देखना पड़ता….. वो एक अम्मा आती खाना बनाने के लिए पर सब कुछ उनपर भी तो नहीं छोड़ सकते…. सब की फ़रमाइश होती शीना एक सब्ज़ी तो ज़रूर बनाएँ… कभी-कभी लगता मेरे हाथों में ये हुनर ही क्यों दिया….. बस ख़ानसामा बन कर रह गई हूँ…..

सबकी फ़रमाइश ही पूरी करती रहती…. जेठानी देवरानी बात बात पर कहती सच में शीना ये गुण हम में नहीं है…. नहीं तो घर बाहर दोनों जगह काम करना बहुत मुश्किल हो जाता…. तुम हो तो हम निश्चित होकर काम कर लेते हैं….. नव्या और नेहल भी अपनी चाची के हाथों ही खाना पसंद करते…. अब इन सब को करने में मेरी कुहू नज़रअंदाज़ हो जाती …. कितनी बार ऐसा हुआ इसको खिला भी नहीं पाती वो बेचारी भूख से सो जाती….. सासु माँ को गठिया की बीमारी तो उनसे भी ज़्यादा कुछ होता नहीं वो तो बस अपने मुरली मनोहर में खोई रहती है…. अब तुम ही बताओ उसे सोने का पिंजरा ना कहूँ तो क्या कहूँ….. हाँ मुझे सब सुविधाओं से नवाज़ा गया माँ…. जो मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी




पर उस घर में बंद होकर रह गई हूँ…… तुम बोलती हो ना आती नहीं…… कैसे आ जाऊँ….. पूरे घर को सँभालने की ज़िम्मेदारी जो मेरी है…. ये शनिवार रविवार दोनों जेठानी देवरानी की छुट्टी थी किसी तरह परीक्षित को कहा राशि आई है बहुत ज़िद्द कर रही है आने को तो हो आऊँ…. बताओ ना विदा कराते समय रोते देख कर कितने उससे कह देते हैं जब मन हो मायके जा सकती हो …..पर क्या सच में हम मायके आ सकते हैं…?” शीना कलपती आवाज़ में बोली

सुमिता जी के साथ साथ राशि भी दी के गले लग गई….. उसकी आँखों में भी आँसू आ गए थे….. जिस दीदी की शादी तय होते सबने उसकी खुशहाल ज़िन्दगी के सपने देखे थे वो तो उस घर जाकर सबके काम कर रही थी…. सबको खुश रखने की घुट्टी गाँठ बाँध कर जो गई थी पर उसकी ख़ुशी…..

“ माँ मुझे तो बीमार होने का भी हक नहीं है उस घर में…. जरा कभी जो बुखार या खांसी सर्दी हुआ …. सब कहने लगते अब क्या होगा…. सास ससुर के मेहमानों के लिए चाय नाश्ता …. अम्मा तो कर नहीं पाती…. सासु माँ अपनी बीमारी की वजह से कुछ नहीं करती रही मैं घर में तो ठीकरा मेरे सिर फूटता…. तंग आ गई हूँ मैं पर वही बात है ना…. बहू हूँ ज़िम्मेदारी तो निभानी ही होगी…. गिला भी करूँ तो किससे और शिकायत की तो गुंजाइश ही नहीं…..।” शीना ने कहा

” राशि जब तेरी शादी तय हो रही थी और सब कह रहे थे शीना से दब परिवार है तो मुझे ग़ुस्सा आ रहा था ये सुन कर पर मैं खुश थी तुम्हें सोने का पिंजरा नहीं मिल रहा….. तुम्हें तो घर मिला परिवार मिला जो सब कुछ समझता है… मिल जुल कर काम करता है…. किसी एक पर बोझ तो नहीं होता….. अच्छा है तेरी क़िस्मत मेरे जैसी नहीं है….. ।” शीना राशि के गालों को थपथपाते हुए बोली




“ दीदी तुम जीजू से बात करो ना.. नहीं तो सासु माँ को बोलों एक और सहायिका रख ले जो उनके मेहमानों के आवभगत का देख सकें…. और तुम तो कितना अच्छा लिखना जानती हो….. एक एप है उसे डाउनलोड करो और मन के भावों को उधर उड़ेल दो…. देखना जब लोग तारीफ़ करेंगे ना तो मन की सारी थकान दूर हो जाएगी…. मुझे पता है तुम शुरू से जॉब नहीं करना चाहती थी पर लिखा तो कहीं से भी जा सकता है……मुझे हमेशा एहसास होता था तुम अंदर से ख़ुश नहीं हो बस हमें दिखाने को बड़े बड़े बोल बोलती रहती थी……आज भी तुम नहीं बोलती जो मैं तुमसे नहीं पूछती…… दीदी मन में रख कर खुद को बीमार मत करो…. जो ना बोल सको अब लिख कर दिल हल्का कर लेना लाओ तुम्हारे फ़ोन में एप डाउनलोड कर प्रोफ़ाइल बना दूँ ।” कह राशि ने शीना के फोन में अपनी ख़ुराफ़ाती दिखा दी

शीना का दिल इस बार हल्का हो गया था इतने दिनों से घर वाले से सच कहने की हिम्मत जुटा ही नहीं पा रही थी ससुराल में सबको खुश रखने में खुद के साथ अपनी बच्ची को भी नज़रअंदाज़ कर जा रही थी…… इस बार जब वो ससुराल गई….. पहले पति से बात की फिर सासु माँ को बोली ….. उन्हें भी लगा इस तरह तो शीना पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है अब एक सहायिका के आ जाने से शीना को भी अपने लिए वक़्त मिलने लगा …. कुहू पर भी ध्यान देने लगी थी….. जेठानी अपने बच्चों के आधे काम करने लगी थी क्योंकि शीना ने कह दिया भाभी मुझसे इतना नहीं हो पाता वो दोनों जब आएँगे फिर तो मैं देख ही लेती हूँ….. उन दोनों को देखने के चक्कर में कुहू सुबह बहुत देर तक भूखी रह जाती हैं जो अब मुझसे नहीं हो पाएगा ।

शीना जब तक चुप रही काम की ज़िम्मेदारी सब उसपर मढ़ते चले गए जब उसने कुछ कामों के लिए मना किया तो वो खुद करने लगे।

दोस्तों हम बहुत बार परिवार की बात मायके कहने से पहले सौ बार सोचते हैं पता नहीं मम्मी पापा पर क्या गुज़रेगा…. परिवार है तो काम भी होगा पर जब तक आप ना नहीं कहेंगे सब काम आपके मत्थे मढ़ा जाएगा…. फिर मुसीबत आपकी होगी…. एक बार ना कहना भी ज़रूरी है अपने लिए अपने बच्चों के लिए नहीं तो अपने ही घर में कैद हो कर रह जाएँगे……।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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