रिक्त स्थान (भाग 17) – गरिमा जैन

रात के 1:00 बज चुके थे। अचानक रूपा को इंस्पेक्टर विक्रम का फोन आता है ।रूपा चौक जाती है!!

विक्रम गंभीर आवाज में कहते हैं

“रूपा क्या तुम रेखा के मां-बाप को लेकर चौराहे तक आ सकती हो? मैं यही पुलिस की गाड़ी में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं  ।

“क्या हो गया जीजू! सब ठीक तो है ना !कोई खास बात, क्या रेखा जितेंद्र मिल गए ?वह दोनों ठीक तो है ना !!

“हालात अच्छे नहीं है रूपा ,जल्दी करो 5 मिनट के अंदर मुझे चौराहे पर मिलो ।

रूपा बदहवास रेखा के घर की तरफ जाती है, साथ में रूपा के मम्मी पापा भी हैं ।सारे परेशान थे आखिर इतनी रात में इंस्पेक्टर विक्रम का फोन क्यों आया था! क्या जितेंद्र और रेखा उन्हें मिल चुके थे! 5 मिनट के अंदर सब लोग चौराहे पे थे । इंस्पेक्टर विक्रम सबको अपनी वैन में बैठाते हैं और शहर से दूर एक वीरान सड़क की तरफ चल देते हैं।

” क्या हुआ है जीजू जल्दी बताइए मेरा दिल बैठा जा रहा है!! हम इतनी सुनसान सड़क की तरफ क्यों जा रहे हैं !!”

“जल्दी मालूम पड़ जाएगा रूपा परेशान मत हो”

उनके  पीछे दो जीप और थी उसमें से कुत्ते के भौंकने की आवाज आ रही थी। डॉग स्क्वायड भी साथ जा रहे थे। सबकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी ।आखिर इतना बड़ा ऑपरेशन क्यों हो रहा था ।वह भी इतनी रात में !!क्या उन्हें नैना मिल गई थी!!

तभी रूपा कहती है “जीजू क्या नैना मिल चुकी है? क्या जितेंद्र और रेखा का पता चल गया है ?सड़क के किनारे गाड़ी रुक जाती है .पीछे की वैन से कई पुलिसकर्मी उतरते हैं , चार के हाथ में कुत्ते की जंजीरे थी। वह खोजी कुत्ते थे। इंस्पेक्टर विक्रम ने रूपा से रेखा का कोई कपड़ा लाने को कहा था। रेखा की मां उसका  एक दुपट्टा साथ लेकर आई थी। दुपट्टा कुत्ते को सुंघाया जाता है। सब बहुत परेशान हो रहे थे ।यह सब क्या हो रहा था? कुत्ते तेजी से घने जंगल की तरफ भागने लगते हैं  ।बड़ी सर्च लाइट हाथ में लिए पुलिसकर्मियों  पीछे पीछे दौड़ते हैं। तभी रूपा देखती है कि पीछे दो गुंडे जैसे आदमी वैन से उतरते हैं ।पुलिस ने उनके हाथों में हथकड़ी डाली हुई है और वह कह रहे हैं कि उन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है उन्हें फंसाया गया है!! तभी जंगल के अंदर से आवाज आती है।

” यहां पर कुछ है ” यह सुनते ही रेखा की मां बेहोश हो जाती है। रेखा के पापा और बाकी सब उन्हें होश में लाने के लिए उनके चेहरे पर पानी छिड़कने लगते हैं। रूपा के चेहरे पर ठंडा पसीना आने लगता है ।उससे रहा नहीं जाता। वह विक्रम के पीछे बेतहाशा बढ़ती चली जाती है। वह किसी की नहीं सुनती। थोड़ी देर में रूपा वहां पहुंच जाती है जहां से आवाज आई थी। खोजी कुत्ते बेतहाशा भौंक रहे थे और वहां जंगल के बीचोबीच रेखा और जितेंद्र लाश के समान पड़े थे।

रेखा के मुंह पर टेप लगा हुआ था और जितेंद्र के हाथ  बांधे गए थे ।इंस्पेक्टर विक्रम उनके हाथों को खोलते हैं और फोन करके एंबुलेंस लाने को कहते हैं ।थोड़ी ही देर में सड़क पर दो एंबुलेंस आ चुकी थी। रेखा और जितेंद्र को फौरन एंबुलेंस में अस्पताल की तरफ रवाना कर दिया जाता है ।साथ ही रेखा के मां-बाप और रूपा भी एंबुलेंस में चले जाते हैं। रेखा और जितेंद्र की हालत बहुत गंभीर है। उनके पूरे शरीर पर चोट के निशान हैं। कटे-फटे हाथ पैर हाथ कपड़े चीथरे हो चुके हैं लेकिन उनकी सांसे चल रही है। यह देखकर सब को चैन आता है ।उन्हें देखकर ऐसा मालूम होता था  जैसे उनके चेहरे की हड्डियां तक निकल कर बाहर आ गई है!! रेखा का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था  ।

अस्पताल में उन्हें स्पेक्टर विक्रम मिलते हैं वह रूपा को सारी बातें विस्तार से बताते हैं

वह बताते हैं कि नैना अभी भी फरार हैं। वे उसे नहीं पकड़ सके । रेखा और जितेंद्र की खबर उन्हें एक खबरी के हाथों लगती है ।वही खबरी जिसे इंस्पेक्टर विक्रम ने ड्रग डीलर का पता लगाने के लिए भेजा था। उस खबरी को एक ऐसे ड्रग डीलर का मालूम पड़ता है जो कुछ दिनों से उसी एरिया में ड्रग सप्लाई कर रहा था जहां पर वह घर था। पुलिस उसे तुरंत पकड़ती है और उसे बहुत पूछताछ करती है

वह बताता है कि वह तो सिर्फ ड्रग्स घर के बाहर रखता था लेकिन उस दिन वहां जो औरत रहती थी  उसने दो आदमी भी लाने के लिए कहे थे ।हर आदमी के वह पचास हजार दे रही थी। काम कोई खास नहीं था सिर्फ दो लोगों को गाड़ी में बैठाना था ।इंस्पेक्टर विक्रम यह  सुनते ही चौक जाते हैं। वह तुरंत उन दोनों लड़कों को पकड़ते हैं जिसने नैना की मदद की थी। वह दोनों गुंडे जिन्हें पुलिस ने हथकड़ी पहनाई थी वही गुंडे थे । वे ज्यादा देर तक पुलिस की मार नहीं झेल पाते और सारा सच बता देते हैं ।वह बताते हैं कि उस औरत (वे नैना का नाम नहीं जानते थे) ने  उन्हें पचास हजार दिए थे। उनको एक काम करना था कि काले रंग की गाड़ी जो उस घर के पीछे खड़ी थी उसमें एक अधमरे आदमी और एक  औरत  को बैठना था। वे दोनों भी उसी गाड़ी में बैठकर जंगल की तरफ गए थे उसके बाद इन्होंने जितेंद्र और रेखा को गाड़ी से निकालकर जंगल में लाश की माफिक फेंक दिया था इसीलिए उन दोनों गुंडों को पुलिस साथ लेकर आई थी जिससे वह पता बता सके लेकिन उसके बाद नैना कहां चली गई किसी को भी इसकी कानो कान खबर नहीं हुई।

जितेंद्र और रेखा की हालत अच्छी नहीं है ।डॉक्टर बता रहे हैं कि इनके खून में ड्रग्स की मात्रा इतनी अधिक है कि  खून को पूरा का पूरा बदलना होगा और यह काम बहुत जल्द करना होगा ।जितेंद्र के पिता अपना पूरा दम लगा देते हैं ।बड़े से बड़े डॉक्टर को दोनों को दिखाया जाता है। बड़े से बड़े अस्पताल में जितेंद्र और  रेखा का इलाज चलता है।

छह महीने बीत चुके हैं। जितेंद्र भी धीरे अपने पैरों पर खड़ा होने लगा है और स्टैंड का सहारा लेकर धीरे-धीरे चलता है।  रेखा भी धीरे-धीरे ठीक हो रही है ।वह भी सहारा लेकर चलती है ।दोनों एक ही अस्पताल में है । जब एक दिन नर्स उन्हें चला रही थी तब  दोनों एक दूसरे को देखते हैं ।आज  महीनों  बाद दोनो एक दूसरे को देख रहे है ।दोनों की शक्ल और सूरत में बहुत परिवर्तन आ चुका है ।इतनी  चोट और ड्रग्स की जानलेवा  मात्रा लेने के बाद अब वह पहले जैसे खूबसूरत और दिलकश नहीं देखते !!लेकिन दोनों के हृदय में एक दूसरे के लिए जो प्रेम उमड़ रहा है वह पहले कभी नहीं उमड़ा था । जितेंद्र को आज किसी की परवाह नहीं , ना वहां खड़े लोग ,ना नर्स  ….वह तेजी से बढ़ कर रेखा को गले लगा लेता है। रेखा भी जितेंद्र की आगोश में खो जाना चाहती है। उसे फर्क नहीं पड़ता कि वह किस जगह खड़ी है !!लोग क्या कहेंगे !!और इतने महीनों के बाद जितेंद्र फिर से रेखा के अधरों को चूम लेता है  ……

आगे क्या होगा? क्या रेखा और जितेंद्र खुशहाल जिंदगी जिएंगे या फिर इनकी जिंदगी एक नई करवट फिर से लेगी? जाने के लिए पढ़ते रहे ।

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रिक्त स्थान (भाग 16) – गरिमा जैन

गरिमा जैन 

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