प्यार और उपहार – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :.. ओ माँ… कहां है माँ…. अरे आ रही हूं बेटा …दूध एकदम से उबलने वाला था ..सोची उबल ही जाए फिर आती हूं …नहीं तो गिर जाएगा… जल्दी-जल्दी आकर रंजना ने कहा…।

देख तेरे लिए क्या लाया हूं… एक पैकेट पकड़ते हुए लक्ष्य ने कहा…अरे इसमें क्या है…? रंजना ने आश्चर्य से पूछा… मुझे भी नहीं मालूम माँ… ये पैकेट मुझे अविनाश (मेरे जूनियर) ने दिया है तेरे लिए…..

क्या…. पर क्यों…???? न जाने एक ही मिनट में रंजना कितने कौतूहल शांत करना चाहती थी….।

क्या है ना माँ ..हम सभी स्टाफ के लोग मिलकर एक साथ लंच लेते हैं …तू तो रोज भर भर के टिफिन देती है …मैं हमेशा बोलता हूं कम दिया कर पर तू मानती ही नहीं है…. तो मैं भी वहां पर खोल के रख देता हूं… तेरे हाथ की बनी सब्जी व मेरे टिफिन की वैरायटी सबको इतनी पसंद है.. सभी खूब तारीफ कर करके खाते हैं …अब आज जैसे ही टिफिन खोला.. एक छोटे से डिब्बे में वो मीठा क्या था माँ…? बहुत स्वादिष्ट था हम सब लोग चट कर गए….।

जानती हूं बेटा ….खाली समय में मैं योजना ही तो बनाती रहती हूं …क्या कुछ नया बनाऊँ… काम के व्यस्तता के बाद यदि मेरा बेटा पसंद का खाना खाएगा तो कितना खुश होगा….। और मुझे ये भी पता है तू बिना बांटे अकेले तो खाएगा नहीं…. इसीलिए तो मैं थोड़ा ज्यादा रखती हूं..

और तू शाम को जब आकर कहता है ना…. माँ आज फलाँ चीज बहुत स्वादिष्ट बना था ….सच मान बेटा सारी थकान दूर हो जाती है… और कुछ नया अच्छा बनाने का प्रोत्साहन मिलता है….।

अरे कहां खो गई माँ… पहले सुन तो पूरी बात… रंजना को मौन देखकर लक्ष्य ने कहा…. हाँ तो बता ना. .. इस पैकेट में क्या है और किसने दिया है…?

वही तो बता रहा हूं….. पता नहीं कहां खो जाती है…. हां तो सुन …पहले बता ना वो छोटे से डिब्बे में मीठा क्या था …? अरे बेटा वो तो थोड़ा मूंग का हलवा दे दिया था… हां माँ सबने हलवे की खूब तारीफ की… और उन्होंने मुझसे कहा ….सर आज हमारी तरफ से माँ को ये छोटा था उपहार दे दीजिएगा और बोलिएगा हलवा बहुत स्वादिष्ट बना था ….खोल ना माँ…देखें इसमें क्या है …पैकेट माँ की और बढ़ाते हुए लक्ष्य ने कहा…।

” …. अरे बेटा मुझे उपहार कि नहीं सिर्फ प्यार की जरूरत है….” खुश होते हुए रंजना ने कहा और पैकेट खोलने लगी…!

ये क्या ….?? चिट्टियां…?? स्टाफ के सदस्यों की पत्नियां द्वारा तारीफ की प्यारी प्यारी लाइनें लिखी हुई ….और अपने घर अपने हाथों का स्वाद चखाने का विशेष आग्रह के साथ.. प्यार भेजा था…!

और सबसे नीचे एक छोटे से पन्ने में लिखा था …..आंटी मुझे अच्छे से खाना बनाना नहीं आता ….शायद बाद में लक्ष्य को इतना स्वादिष्ट खाना खाने को ना मिले….

लक्ष्य ये लतिका कौन है …?? क्या हो गया माँ….कोई नहीं …मेरे साथ काम करती है ….

सिर्फ काम करती है या …..पर माँ तू ऐसे क्यों पूछ रही है…?

बेटा सबको प्यार देना और लतिका को मेरी तरफ से ये चिट्ठी भी दे देना… और हां तू इसे पढ़ना मत ….पर कहते हैं ना चोर की दाढ़ी में तिनका…. माँ के दूर जाते ही लक्ष्य ने वो चिट्ठी पढ़ ली….. जिसमें लिखा था ….

लतिका… जब तक मैं जीवित और स्वस्थ रही.. लक्ष्य के साथ तुम्हें भी स्वादिष्ट टिफिन मिलेगा बेटा…। और मैं जाने से पहले अपने सारे गुणों को तुम्हें सीखा कर जाऊंगी…।

समझने वालों के लिए इशारा काफी होता है… लक्ष्य ने माँ को बाहों में लेते हुए कहा …देखा ना माँ ….प्यार के साथ-साथ उपहार भी जरूरी होता है…. हां बेटा…

ऐसा प्यार रूपी उपहार तो हर माँ अपने बच्चों से लेना चाहेगी….।

स्वरचित …मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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